विष्णु गणेश पिंगले का जीवन परिचय , इंग्लैंड और जर्मनी के बीच युद्ध ,पिंगले जी का बलिदान,विष्णु गणेश पिंगले का जन्म ,विष्णु गणेश पिंगले शिक्षा
विष्णु गणेश पिंगले का जीवन परिचय
ब्रिटेन जर्मनी के साथ पहले विश्वयुद्ध में उलझा हुआ था तब सन 1915 में भारत में ब्रिटिश शासन को उखाड़ने का एक व्यापक षड्यंत्र दगाबाजो के विश्वासघात से खुल गया वह स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में “गदर” विद्रोह के नाम से विख्यात है उसकी व्यापकता देख कर सरकार को सन 1857 का समरण हुआ था कि यदि प्रत्यक्ष रूप में यह विद्रोह होता तो ब्रिटिश शासन का बने रहना मुश्किल था इस विद्रोह का आयोजन करने वाले प्रमुख क्रांतिकारियों में एक विष्णु गणेश पिंगले भी शामिल थे
विष्णु गणेश पिंगले 1888 में पुणे के निकट तालेगांव धमधेरे नाम के छोटे से देहात में पैदा हुए वासुदेव बलवंत, चाफेकर बंधु आदि की कहानियां सुनकर उनके मन में बचपन में ही स्वतंत्रता की लहर उमड़ पड़ी स्वतंत्र वीर सावरकर जी जैसे तेजस्वी नेता के परिसस्पर्श से उनके मन में क्रांति की चिंगारियां जाग उठी सन 1905 में सावरकर जी ने पुणे में सारे देश में से पहली विलायती कपड़ों की होली, दशहरे के शुभ मुहूर्त पर सुलुगाई थी उसमें पिंगले जी ने काफी अगुवाई की थी उस समय देश में क्रांतिकारी आंदोलन बड़े जोर से चल रहा था
जंक्शन हत्या का और साथ ही बाबा राव सावरकर जी के ऊपर का मुकदमा आदि का उन दिनों देश में बोलबाला था इसलिए पीले जिन का क्रांतिकारी घटकों में प्रवेश होना कुछ आश्चर्य की बात नहीं थी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के अध्ययन को क्रांतिकारियों का ही एक हिस्सा मानकर पिंगले जी ने उस हेतु अमेरिका जाना तय किया 1911 में हांगकांग से होकर अमेरिका चले गए इसके बाद 1911 की दूसरी छमाही में प्रवेश परीक्षा देकर उन्होंने इंजीनियरिंग के प्रवेश की तैयारियां शुरू की थी असीम कष्ट उठाए
उन्होंने, जून 1913 में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग कॉलेज में उन्हें प्रवेश मिला अमेरिका जाने के लिए कोशिश करते समय और इंजीनियरिंग के प्रवेश की तैयारियां करते समय भी उन्हें अपने देह का विस्मरण नहीं हुआ था पंडित काशीराम एवं सोहन सिंह मकाना इन्होंने अमेरिका में स्थापित किए हुए “हिंदुस्थानी एसोसिएशन ऑफ पेसिफिक कोस्ट” नामक संस्था में पिंगले जी शामिल हुए आगे चलकर विष्णु गणेश पिंगले इस संगठन के नेता भी बने यही संस्था बाद में “इंडियन इंडिपेंडेंस लीग” नाम से विख्यात हुई
लाला हरदयाल जी के ‘गदर’ समाचार पत्र के मराठी संस्करण का काम उन्होंने स्वीकार किया था लाला हरदयाल के साथ इन्होंने अमेरिका का दौरा किया इन्होंने वहां रहते हुए कई स्थानों पर जाकर भाषण दिए थे इनका व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था जो कि सामने वाले पर प्रभाव डालने वाला था उसके फल स्वरुप इन्होंने अमेरिका में निवास किए हुए हजारों भारतीयों को स्वतंत्रता के भाव से प्रेरित किया इसी अवधि में इन्होंने बंदूक एवं पिस्तौल चलाना सीख लिया और साथ ही बम तथा विस्फोटक तैयार करने का ज्ञान भी अर्जित कर लिया था विष्णु गणेश पिंगले का जीवन परिचय
इंग्लैंड और जर्मनी के बीच युद्ध
कुछ समय बाद सर्वियाके राजपूत्र की हत्या हुई और उस चिंगारी से दिनांक 4 अगस्त 1914 को इंग्लैंड और जर्मनी के बीच युद्ध भड़क उठा इसके बाद पहला विश्वयुद्ध छिड़ गया क्रांतिकारी 1857 के सपने देखने लगे भारत में जाकर स्वाधीनता के लिए आंदोलन छेड़ने की घड़ी आ चुकी है इसका ख्याल कर पिंगले जी ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी इसके बाद SS सलामीस नाम के जहाज से दिनांक 20 नवंबर 1914 को पिंगले जी छिप कर कोलकाता पहुंच गए कोलकाता पहुंचने पर इन्होंने क्रांतिकारियों के साथ संपर्क किया बाद में वे संयुक्त प्रांत में गए पिंगले जी मराठी और अंग्रेजी काफी अच्छी तरह बोलते थे
पर वे गुजराती ,हिंदी, उर्दू, पंजाबी, बंगाली भाषाओं में बिल्कुल साफ बोल सकते थे वेषातर करने में वे बड़े प्रवीण थे उससे किसी भाषा से मिलती-जुलती पोशाक पहन और नाम धारण कर वे सभी और घूमा करते थे साधु वेश धारण करके वे पूरे हिंदुस्तान में घूमते रहते थे इनके यहां आने से उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारियों को बड़ा ही हर्ष हुआ था इनके कार्यों को नया बल प्राप्त हुआ इसके बाद पिंगले जी ने रासबिहारी बोस से उत्तर भारत के क्रांतिकारियों का परिचय करा दिया करतार सिंह जैसे साथी को साथ लेकर वे विभिन्न हिंदी सेना की विभिन्न छावनीयो में पहुंचने लगे
सैनिकों के मन में देशभक्ति की ज्योति प्रज्वलित कर उन्हें स्वाधीनता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करने लगे उन्हें प्रतिज्ञा दिलाकर गदर में सम्मिलित करने लगे विश्व युद्ध के कारण यूरोप में सेना की गजब बढ़ती जाने से लगभग सारी गौरी सेना इस के पूर्वी यूरोप के लिए रवाना हो चुकी थी उस समय हिंदुस्तान में बिल्कुल नाम के लिए ही इतनी थोड़ी गोरी सेना थी हिंदी सेना की दिनांक 1 मार्च 1915 को और उसके बाद यूरोप रवाना होने वाली थी अपनी अपनी छावनी में प्रयाण करने की दृष्टि से पूरी तरह तैयार थी
दिनांक 21 फरवरी 1915 का यह दिन सर्वाधिक विद्रोह के लिए पिंगले ने एवं रासबिहारी बोस ने निश्चित किया उसके हेतु स्थान स्थान पर शस्त्र ,बम आदि जमा कर रखे गए ध्वज तैयार किए गए रेल की पटरियां उखाड़ डालने के लिए टेलीग्राफ के तार तोड़ डालने के लिए औजार एवं प्रशिक्षित लोग जगह-जगह तैयार रखे गए लाहौर, काशी, जबलपुर, रावलपिंडी, डाका आदि सभी छावनीयों में से एक ही समय की दृष्टि से और निर्दोष योजना बनाई गई परंतु भारत माता का दुर्भाग्य की कृपाल सिंह नामक एक घरभेदी इन क्रांतिकारियों में निकला उसने षड्यंत्र की पुलिस को जानकारी दी
वह इतनी आश्चर्य कारक थी कि शुरू में तो पुलिस उस पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं थी लेकिन उसने हर तरह उन्हें भरोसा जताया इसके बाद उसके द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार लाहौर के क्रांतिकारियों के अड्डे पर छापा मारा वहां की तैयारी देखकर तो पुलिस चौक गई
अड्डे पर हाजिर क्रांतिकारियों को उसी जगह हिरासत में लिया गया सौभाग्य से पिंगले जी और रासबिहारी बोस वहां से भाग निकलने में सफल हुए इतना होने पर भी पिंगले जी का सैनिक छावनी में आना-जाना जारी रहा सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए बड़े-बड़े इनाम घोषित किए एक बार बनारस से कुछ विस्फोटक और बम लेकर में भारत की ओर चले साथ में नादिर खान नामक असर्वारोही दल का एक सैनिक था विष्णु गणेश पिंगले का जीवन परिचय
पिंगले जी का बलिदान
पिंगले जी नासिर खान के साथ मीरत की 12वीं रेजीमेंट की छावनी में पहुंचे वही बराक में उनका निवास था दिनांक 23 मार्च 1915 के दिन वहां के पुलिस सुप्रिडेंट ने छापा मारकर बम बारूद के साथ उन्हें हिरासत में ले लिया उनके साथ रहे बम बारूद आधे से अधिक रेजिमेंट को ध्वस्त कर डालने के लिए काफी थे
ऐसा दर्ज किया गया कि नाजिर खान ने दगाबाजी की थी इसके बाद पिंगले जी के साथ 82 क्रांतिकारियों पर सरकार को उखाड़ डालने का इल्जाम रखकर अभियोग दर्ज किया गया “लाहौर षड्यंत्र” का अभियोग इस नाम से यह अभियोग पहचाना जाता है
इस अभियोग की सुनवाई अप्रैल से सितंबर 1915 तक लाहौर सेंट्रल जेल में हुई पिंगले जी और 6 अन्य क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गई दिनांक 16 नवंबर 1915 के दिन पिंगले जी को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी पर चढ़ाया गया फांसी पर जाने से पहले उन्होंने भगवान से अंतिम प्रार्थना की कि हे भगवान जिस पवित्र कार्य के लिए हम अपने प्राणों की बलि चढ़ा रहे हैं उसे तुम ही अब पूरा कर दो यही मेरी तुम्हारे चरणों में आखिरी प्रार्थना है
विष्णु गणेश पिंगले का जीवन परिचय