वीरांगना वीरमती का इतिहास,वीरांगना वीरमति का विवाह,कृष्ण राव का वध , वीरांगना वीरमती की शौर्य गाथा,वीरमति के माता पिता का नाम, वीरमति ने कृष्ण राव का वध क्यों किया
वीरांगना वीरमती का इतिहास
वीरांगना वीरमति देवगिरी नरेश के प्रधान सेनापति की कन्या थी इसके पिता एक वीर तेजस्वी सेनापति थे जिनके हृदय में देश प्रेम तथा स्वामी भक्ति का अभाव कूट-कूट कर भरा था इसलिए जब जब यवनों ने देवगिरी पर आक्रमण किया तब तब उन्हें मुंह की खानी पड़ी थी14वीं शताब्दी में देवगिरी पर यादवों का राज्य था वहां के राजा रामदेव यादव पर अलाउद्दीन खिलजी ने चढ़ाई की थी भारत विजय पर निकला खिलजी मेवाड़ गुजरात आदि के सभी हिंदू राजा फतेह कर संपूर्ण भारत पर विजय प्राप्त करने का ख्वाब देख रहा था इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा कोई था
तो उस समय भारतवर्ष का महानतम हिंदू साही क्षेत्रीय यादव वंश का देवगिरी साम्राज्य था खिलजी जानता था कि जब तक अखंड हिंदू ध्वज को देवगिरी के यादवों की बलिष्ठ भुजाओं ने थाम रखा है तब तक महान सनातन धर्म का वह बाल भी बांका नहीं कर पाएगा खिलजी यह भी जानता था कि देवगिरी के अबीर और निर्भीक यादव से भिड़ना खूंखार शेर के मुंह में हाथ डालने जैसा है खिलजी यादों से खिलजी यादवों से इसलिए भी नफरत करता था क्योंकि जब उसने गुजरात पर चढ़ाई की थी तो वहां के एक छोटी सी रियासत के सूर्यवंशी राजा करण सिंह को परास्त कर उनकी सुंदर रानी और सुपुत्री पर बुरी नजर डाली थी
राजा कर्ण सिंह कुशल अपनी रानी और पुत्री को लेकर उस समय हिंद के सबसे ताकतवर छत्रिय हिंदू शासक देवगिरी नरेश महाराजा रामदेव यादव की शरण में चले गए और सारी व्यथा बतलाई धर्म रक्षक, न्याय प्रिय शासक महाराजा रामदेव यादव ने उन्हें आश्वासन दे अपने राज्य में शरण दी और पूरे हिंदुस्तान में पैगाम लिख भिजवाया कि राजा कर्ण सिंह परिवार सहित देवगिरी के शरण में है और उनकी पुत्री हमारी पुत्री समान है यदि खिलजी या उस के चमचों ने आंख भी उठा कर देखा इनके परिवार की स्त्रियों पर तो ध्यान रहे इसका अंजाम कितना महंगा पड़ेगा
राजा कर्ण सिंह की पुत्री आज से समस्त यादव की पुत्री है और यादवों की बेटी पर आंख उठाने का अंजाम क्या होगा यह सब जानते हैं इस पैगाम के बाद अलाउद्दीन खिलजी क्रोधित हो गया और उसने कूटनीति का सहारा ले कर महाराजा रामदेव के पास संधि स्वीकार करने के लिए संदेश भेजा, किंतु सच्चे यदुवंशी क्षत्रिय अधर्मी दुश्मनों से संधि और उनकी गुलामी करने से अच्छा युद्ध में हंसते-हंसते मर जाना अधिक उत्तम मानते हैं
इसके बाद महाराज रामदेव यादव ने अलाउद्दीन खिलजी को बहुत ही कड़ा उत्तर दिया जिसके बाद अलाउद्दीन खिलजी अपनी विशाल सेना के साथ देवगिरी पर चढ़ाई करने लगा लेकिन दुख की बात यह है कि हमारे ही हिंदू राजवंश के कुछ धूर्त और लालची राज परिवारों ने डरकर खिलजी की गुलामी से स्वीकार कर रखी थी वे सभी कायर सियार उस असभ्य असुर अलाउद्दीन खिलजी की सेना के साथ मिल हिंदू सूर्य देवगिरि के यादव क्षत्रियों से लोहा लेने आ रहे थे लेकिन देवगिरि के यादव सैनिकों की शक्ति के सामने खिलजी और उसकी नापाक भारी सेना टिक नहीं सकी अलाउद्दीन के बहुत से सैनिक मारे गए थे हार कर वह पीछे लौट पड़ा इधर देवगिरी में विजय का उत्सव मनाया जाने लगावीरांगना वीरमती का इतिहास
वीरांगना वीरमति का विवाह
महाराज रामदेव के भी एक कन्या थी जिसका नाम गौरी था गौरी और वीरमति साथ साथ खेलती थी उन दोनों में बहुत प्रेम था कुछ दिनों बाद गोरी तथा वीरमति दोनों विवाह के योग्य हो गई गौरी देवी का विवाह एक योग्य वर के साथ कर दिया गया और वीरमति का विवाह संबंध एक वीर मराठा सरदार कृष्णराव के साथ, जो उसी दरबार का एक सुंदर युवक था, तय हो गया था वीरमति जैसा वीर, रूपवान तथा गुणवान वर चाहती थी
उसे स्वामी भी ऐसा ही मिला वह इस संबंध से बहुत प्रसन्न हुई जब अलाउद्दीन खिलजी ने दूसरी बार देवगिरी पर चढ़ाई की तब भी उसकी हार हुई इसके बाद उसने कूटनीति का सहारा लेना उचित समझा इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने कृष्णराव को अपनी और मिलाया और सेना को लौटने की आज्ञा दी देवगिरी नरेश ने अलाउद्दीन को लौटते देख बहुत प्रसन्न हुए सभी जगह पर खुशी मनाई जाने लगी
जब हिंदू सेना उत्सव आदि मनाने में लगी थी तब अलाउद्दीन बड़ी तैयारी से देवगिरी के चारों और मोर्चाबंदी कर रहा था अलाउद्दीन की इस चढ़ाई को सुनकर रामदेव बड़े चिंतित हुए उन्होंने एक दरबार किया जिसमें राज्य के सभी प्रधान, कर्मचारी गण सम्मिलित हुए रामदेव ने सभी से अलाउद्दीन की कपट नीति का बदला लेने का उपाय पूछा कृष्णराव के हृदय में बहुत दिनों से देवगिरी के राज्य सिहासन पर बैठने की प्रबल इच्छा थी इसलिए वह अपनी मनोकामना को पूर्ण करने की ताक में लगा रहता था सब ने अपना अपना सुझाव दिया परंतु कृष्णराव ने सर्वप्रथम किसी गुप्त चर को भेजकर शत्रु का भेद लेने का ही परामर्श दिया
यह विचार सब ने स्वीकार किया और कृष्णराव पर ही यह भार सौंपा गया कृष्णराव अपनी मनोकामना की सिद्धि का इच्छा अवसर देख मन ही मन प्रसन्न होता हुआ शत्रु सेना में जा मिलने की तैयारी करने लगा वीरांगना वीरमति कृष्ण राव के मन के भाव को पहले से ही समझ गई थी इसलिए इतनी प्रसंता से उसे तैयार होते हुए देख वीरमति के हृदय में संदेह उत्पन्न हो गया उसने अपने पति को रोकने का प्रयत्न किया परंतु वह असफल रही इसके बाद वीरमति का संदेह और अधिक बढ़ गया और जब कृष्ण राव तैयार होकर घर से निकल गए तब वीरमति ने भी पुरुष वेश धारण कर, तलवार कमर में बांध, घोड़े पर सवार हो अपने भावी पति का अनुसरण किया वीरांगना वीरमती का इतिहास
कृष्ण राव का वध
वीरमति ने देखा कि कृष्णराव एक झाड़ी के पीछे छिपकर अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति को अपनी सेना के भेद दे रहा था इसके बाद वीरमति क्रोध से पागल हो उठी उसने झपट कर कृष्ण राव की छाती में तलवार घोंप दी
यह सब देख कर वह सेनापति भाग गया कृष्णराव ने आंखें खोलकर वीरमति की ओर देखा तब उसकी आंखें शर्म से झुक गई और उसने वीरांगना वीरमति से कहा कि मैं सचमुच पापी हूं मुझे माफ कर देना इसके बाद वीरमति ने कहा जो वीरमति धर्म को जानती है वह अपना कर्तव्य भी समझती है आपके बिना मेरा संसार सुना है यह कहते हुए उसने अपनी छाती में भी तलवार घोंप ली और मृत्यु को प्राप्त हो गई
वीरांगना वीरमती का इतिहास