उल्का देवी माता का इतिहास , उल्का देवी मंदिर की विशेषता ,उल्का देवी मंदिर का रहस्य, उल्का देवी मंदिर कहां पर है
उल्का देवी माता का इतिहास
उल्का देवी माता का मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित है यह स्थान धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है पिथौरागढ़ से 1 किलोमीटर दूरी पर उल्का देवी का मंदिर स्थित है पिथौरागढ़ शहर को सूर के नाम से भी जाना जाता है इसी कारण से उल्का देवी को सूर की भगवती के नाम से भी जाना जाता है नवरात्रि के समय यहां पर भगत गण माता के दर्शन करने के लिए आते हैं
माता उल्का देवी के दर्शनों के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं उल्का देवी को शक्ति उपासना का मुख्य केंद्र भी माना जाता है यहां पर नवरात्र के प्रारंभ से ही भक्तों की भीड़ शुरू हो जाती है मां उल्का देवी अपने भक्तों की रक्षा करती है नवरात्र के समय दुर्गा अष्टमी और नवमी को मां उल्का देवी के मंदिर में हजारों श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं मां उनका देवी भगवान शिव की भक्त हैं
उल्का देवी के मंदिर में आने वाले भक्तों को यहां पर अलग ही सुकून मिलता है मनोरम पहाड़ियों में स्थित है माता का यह मंदिर प्रकृति की गोद में भक्ति की अलग ही कहानी बयां करता है मां उल्का देवी को इस क्षेत्र की रक्षा करने वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है इस मंदिर की स्थापना 18वीं शताब्दी में हुई थी
नेपाल के गोरखो द्वारा अपनी कुलदेवी के रूप में मां उल्का देवी की स्थापना पिथौरागढ़ शहर के इस ऊंची पहाड़ी पर की गई थी कुमाऊं क्षेत्र में गोरखो का आधिपत्य सन 1790 से 1815 तक लगभग 25 वर्ष रहा था इसी से इस मंदिर की प्राचीनता का अंदाजा लगाया जा सकता है इसके बाद इस मंदिर का जीर्णोद्धार मंदिर के पास स्थित शेरा गांव के मेहता परिवार द्वारा किया गया था
इस मंदिर में पानूठा गांव के पुजारी नियुक्त किए गए कहा जाता है कि कैप्टन शेर सिंह मेहता पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप के लिए सबसे पहले दान किया था वर्ष 1960 में पिथौरागढ़ अधिकारी द्वारा इस मंदिर में एक धर्मशाला का निर्माण भी करवाया गया था उन दिनों यह धर्मशाला जन गणित केंद्र के रूप में बनाई गई थी |उल्का देवी माता का इतिहास
उल्का देवी मंदिर की विशेषता
चंडाक रोड पर स्थित इस मंदिर के मुख्य द्वार पर दो शेर की मूर्तियां बनाई गई है सीढ़ियों से चढ़कर जब ऊपर जाते हैं तो ऊपर मां उल्का देवी का भव्य मंदिर स्थापित है इस मंदिर में लोग फूल के अतिरिक्त घंटी भी चढ़ाते हैं मंदिर में अनेकों घंटियां देखने को मिलती है जिनमें दान करने वालों के नाम लिखे हुए होते हैं नवरात्रि में अष्टमी और नवमी को सिद्धिदात्री देवी की पूजन के बाद हवन और कन्या पूजन में भक्तों की भीड़ जुटी हुई रहती है तथा दशमी तिथि को शांति पूजा भी की जाती है
चैत्र माह में यहां पर एक विशाल उत्सव का आयोजन होता है इस मंदिर की पिथौरागढ़ शहर में बहुत ही मान्यता है यहां प्रत्येक वर्ष नवरात्रि के समय भंडारे का आयोजन किया जाता है इस स्थान की शक्ति और मान्यताओं की वजह से दूर-दूर से यहां भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं स्थानीय लोगों की यहां मान्यता है कि मां उल्का देवी के दरबार में मांगी गई मन्नत कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है जो व्यक्ति अपनी आराधना और श्रद्धा के साथ मां उल्का देवी के चरणों में पुष्प अर्पित करता है
वह परम कल्याण का भागी बनता है मां उल्का देवी अपने भक्तों को कई बीमारियों से बचाती है और उनकी रक्षा करती है मां उल्का देवी के मंदिर से पिथौरागढ़ शहर की सुंदरता दिखाई देती है यहां पर सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा हर किसी का मन मोह लेता है यह मंदिर पिथौरागढ़ शहर का एक पर्यटन स्थल भी माना जाता है
मां उल्का का मंदिर आधुनिक शैली में निर्मित है इस मंदिर को आधुनिक तरीके से सजाया गया है पौराणिक काल में पर्वतीय क्षेत्र में आपदा सहित उल्कापात होता था जिससे अधिकांश पीड़ित के लोगों ने इससे बचने के लिए उल्का मंदिर की स्थापना की थी प्राचीन काल में इस स्थान पर छोटा मंदिर जो कि वर्ष 1975 में भव्य रूप में स्थापित हुआ इस मंदिर में मां दुर्गा की आदमकद मूर्ति स्थापित है उल्का देवी माता का इतिहास