उदयगिरि किले का इतिहास, उदयगिरि किले का निर्माण , उदयगिरी किले की विशेषता , उदयगिरि किले की वास्तुकला
उदयगिरि किले का इतिहास
उदयगिरि को पहले ‘निंजा’ नाम से जाना जाता था 10 वीं शताब्दी में जब यह किला परमारो के अधिकार में आया तब राजा भोज के पोत्र उदयादित्य ने अपने नाम से इस जगह का नाम उदयगिरी रख दिया था उदयगिरि पहाड़ी पर कुल 20 मंदिर स्थित है यह सभी मंदिर प्राचीनतम हिंदू मंदिरों में से सबसे भव्य और शानदार दिखाई देते हैं
जब गुप्त काल में इन पत्थरों को काटकर इन गुफाओं का निर्माण किया गया तब इन पत्थरों पर कुछ जानकारियां भी लिखी गई थी जो आज भी इन चट्टानों पर देखने को मिलती है इन शिलालेखों को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि गुप्त शासकों को कला और शिल्प में काफी रूचि थी 1875 में ब्रिटिश “अलेक्जेंडर कलिंगम” ने अपनी खोज के दौरान यहां पर 10 गुफाओं को ढूंढा था लेकिन बाद में यहां पर 10 गुफाएं और भी मिली थी
यह गुफाएं शिव, शक्ति और विष्णु को समर्पित है इन गुफाओं में शिव और विष्णु का खास स्थान है उदयगिरि किले में जो अंतिम गुफा है उसमें केवल जैन मूर्तियां स्थापित है यह सभी मूर्तियां कला और शिल्प का शानदार नमूना है उदयगिरि की 20 गुफाओं में सबसे लोकप्रिय पांच नंबर की गुफा है
यहां पर विष्णु के अवतार वराह की 12 फीट ऊंची मूर्ति स्थापित है और इसमें पृथ्वी की मुक्ति को दर्शाया गया है माना जाता है कि भूदेवी को हिरण्यकश्यप ने बंदी बनाकर कैद कर लिया था जब सभी देवताओं ने मिलकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब उन्होंने वराह का रूप धारण कर के पृथ्वी को बचाया था विष्णु के अवतार वराह की इस मूर्ति से शक्ति की झलक दिखाई देती है इस मूर्ति की खास बात यह है कि हजारों वर्ष पहले लगाया गया लाल रंग आज भी चमकता हुआ नजर आता है | उदयगिरि किले का इतिहास |
उदयगिरि किले का निर्माण
उदयगिरि किला नेल्लोर जिले के उदयगिरि मंडल का एक शहर है यह शहर भारत के आंध्र प्रदेश राज्य में आता है और दक्षिण भारत के प्राचीन शहरों में गिना जाता है जहां कभी शक्तिशाली दक्षिण शासकों का राज हुआ करता था यह शहर बंगाल की खाड़ी के दक्षिण पूर्वी हिस्से के साथ बसा हुआ है यह शहर कला और व्यापार के लिए भी काफी प्रसिद्ध है
अतीत से जुड़े पन्ने बताते हैं कि यह नगर पुराने वक्त से ही सांस्कृतिक रूप से काफी आगे रहा है, जिसके उदाहरण यहां देखने को मिलते हैं लगभग 3079 फीट की ऊंचाई पर स्थित उदयगिरी का किला यहां के प्रसिद्ध आकर्षणों में गिना जाता है इस शहर का इतिहास 14वी शताब्दी से शुरू होता है यह किला “लागुला गजपति” ने बनवाया था यह उदयगिरि का किला पूरी तरह से सुरक्षित था
उदयगिरि किले में कोई भी इतनी आसानी से आ नहीं सकता था पूर्व की ओर जंगल से और पश्चिम के रास्ते से ही उदयगिरी किले के अंदर जाना आसान था इस किले को अपने अधीन करने के लिए ‘कृष्णदेव राय’ ने करीब 18 महीने लड़ाई लड़ी और गणपति के प्रताप रूद्र को युद्ध में हरा दिया था गणपति और विजय नगर के साम्राज्य के दौरान किले को और भी बड़ा बनाने का काम किया गया था पूरा शहर और उसके आस-पास की हजार फिट की पहाड़ी को सभी तरफ से दीवारों से सुरक्षित किया गया था | उदयगिरि किले का इतिहास |
उदयगिरी किले की विशेषता
इस किले में 13 इमारतें थी जिनमें से 8 इमारतें पहाड़ी पर थी और बाकी की 5 इमारतें नीचे वाले हिस्से में थी इस किले में बहुत सारे सुंदर मंदिर और बाग भी थे विजयनगर का साम्राज्य खत्म होने के बाद यह किला गोलकुंडा के मुखिया के हाथ में चला गया था पहाड़ी के ऊपर एक मस्जिद है जिसमें दो फारसी शिलालेख मिले हैं जिससे यह पता चलता है कि “शेख हुसैन” ने इस मस्जिद का निर्माण करवाया था वह गोलकुंडा के सुल्तान अब्दुल्लाह के मुखिया थे
इसके बाद यह किला ‘अर्काट’ के नवाब के नियंत्रण में चला गया था उसने ‘मुस्तफा अली खान’ को जागीर का खिताब दिया था सन 1839 तक इस किले पर नियंत्रण उसके वंशज के हाथों में था लेकिन उनके देशद्रोह के कारण नवाब ने उन्हें निकाल दिया था और उन्हें चेंगलपेट भेज दिया था इस जगह को इतिहास में बहुत ही महत्व दिया गया है जो दीवारें इस शहर के चारों और थी वह आज लगभग गायब हो चुकी हैं
लेकिन इनमें से कुछ दीवारें आज भी पश्चिम की पहाड़ी में देखने को मिलती है इस किले में कुल 13 इमारतें थी जिनमें से आठ पहाड़ी पर थी और बाकी के 5 पहाड़ी के नीचे थी इन दीवारों में अंदर के हिस्से में कई पुराने मंदिर, महल और कब्रों के अवशेष पाए जाते हैं पहाड़ी का हिस्सा काफी ऊंचा होने के कारण वहां तक पहुंचना किसी के लिए आसान काम नहीं था क्योंकि पहाड़ी लगभग 1000 फीट की ऊंचाई पर थी और किले पर पहुंचने के लिए हर रास्ते पर सैनिक तैनात किए गए थे
इस किले में चिन्ना मस्जिद और पैद्य मस्जिद भी है 18 वीं शताब्दी एक महान सूफी “संत रहमतुल्लाह नायाब रसूल” ने इसी जगह पर समाधि ली थी हर साल यहां पर रबी उल अव्वल महीने के 26 वें दिन संडल का त्यौहार मनाया जाता है | उदयगिरि किले का इतिहास |
उदयगिरि किले की वास्तुकला
किले को एक बड़े से पत्थर पर बनाया गया है और उसके आसपास में दूर-दूर तक फैली हुई छोटी पहाड़ी है “एक डच एडमिरल यूसताचीस डे लानोय” और उसकी बीवी और बच्चे की कब्र आज भी किले में देखने को मिलती है डे लानोय को किले में दफनाया गया था और बाद में उसके लिए वहां पर एक चर्च भी बनवाया गया था
डे लानोय के कब्र के ऊपर का पत्थर आज भी वहां पर देखने को मिलता है उसकी कब्र पर तमिल और लैटिन भाषा में कुछ लिखा है उसकी पत्नी और लड़के की कब्र भी वहां पर ही है पुरातत्व विभाग के लोगों ने कुछ ही समय पहले किले के अंदर भूमिगत रास्ता भी खोजा है तमिलनाडु बूट्स कार्यालय ने किले को कुछ ही समय पहले बाग में परिवर्तित कर दिया है
डे लानोय की कब्र को भारतीय पुरातत्व विभाग ने पुरातत्व स्थलों में स्थान दिया है उदयगिरि किले में एक रानी गुफा है जो दो मंजिला है यह गुफा ध्वनि संतुलन की विशिष्टता के लिए प्रसिद्ध है इसका प्रयोग मंत्र उच्चारण के लिए और नाट्य प्रदर्शनों के लिए किया जाता है यहां पर रथ पर सवार सूर्य देवता की मूर्ति है यहां पर तोरण भी है जिन्हें सर्प और कमल की तरह जैन धर्म का पवित्र प्रतीक माना जाता है इनके अलावा शंकुतला के साथ राजा दुष्यंत की पहली बहस और नृत्य कला के भी दृश्य है | उदयगिरि किले का इतिहास |