उदा देवी पासी का इतिहास,उदा देवी की शौर्य गाथा,उदा देवी पासी का जन्म ,उदा देवी को सैल्यूट ,उदा पासी की मूर्ति , मक्का पासी

उदा देवी पासी का जन्म 

भारत के इतिहास में लड़ी गई कई लड़ाईयो में महिलाओं की भूमिका अहम रही है 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली एक और वीरांगना भी थी जिन्हें दुर्भाग्य से वह सम्मान नहीं मिला जिसकी वह हकदार थी शायद इसलिए कि वह किसी राजघराने या सामंती परिवार में नहीं बल्कि, एक गरीब दलित परिवार में पैदा हुई वह एक मामूली सैनिक थी उदा देवी पासी एक ऐसी वीरांगना थी

जिसने 30 से अधिक ब्रिटिश सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था इतिहास के पन्नों पर ऐसे मामूली लोगों को जगह देने की परंपरा हमारे देश में काफी कम हो रही है उदा देवी पासी का जन्म लखनऊ के “उजरियाव” गांव में हुआ था इतिहास में उनके जन्म की ठीक-ठीक तारीख कहीं पर भी दर्ज नहीं है बचपन से ही उदा देवी जुझारू स्वभाव की थी वक्त के साथ-साथ वह बड़ी हुई कम उम्र में ही इनकी शादी “मक्का पासी” नाम के एक युवक से कर दी गई इस तरह वह ससुराल पहुंची जहां उन्हें “जगरानी” नाम का एक नया नाम मिला उनके पति मक्का पासी अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पलटन में एक सैनिक थे

उस समय देसी रियासतों पर अंग्रेजों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था ब्रिटिश साम्राज्य अपने पैर भारत में जमाने के लिए भारत की रियासतों को अपने अधीन करना चाहती थी इसके मध्य नजर 1856 मे वाजिद अली शाह ने महल के रक्षा के उद्देश्य से स्त्रियों का एक सुरक्षा दस्ता बनाया तो उसकी एक सदस्य के रूप में उदा देवी को भी नियुक्त किया गया अपनी बहादुरी और तुरंत निर्णय लेने की क्षमता से नवाब की बेगम और देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम की नायिकाओं में से एक बेगम हजरत महल उनसे बहुत प्रभावित हुई

नियुक्ति के कुछ दिनों बाद ही उदा देवी पासी को बेगम हजरत महल की महिला सेना की टुकड़ी का कमांडर बना दिया महिला दस्ते के कमांडर के रूप में उदा देवी ने देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जिस अदम्य साहस, दूरदर्शिता और शौर्य का परिचय दिया था उनसे खुद अंग्रेजी सेना भी चकित रह गई थी उदा देवी की वीरता पर उस दौर में कई लोक गीत गाए जाते थे उनमें से एक गीत था-

“ उनको हप्सी कहता, कोई कहता नीचे अछूत, अबला कोई उन्हें बतलाए, कोई कहे उन्हें मजबूत” उदा देवी पासी का इतिहास

उदा देवी की शौर्य गाथा

 उदा देवी को शौर्य और बलिदान की प्रेरणा अपने पति मक्का पासी की शहादत से मिली यह वह समय था जब 10 मई 1857 को मेरठ के सिपाहियों द्वारा अंग्रेजों के विरुद्ध छेड़ा गया संघर्ष तेजी से पूरे उत्तर भारत में फैलने लगा था 10 जून 1857 को लखनऊ के कस्बा चिनहट के पास इस्माइल गंज में हेनरी लॉरेंस के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी की फौज की मौलवी अहमदुल्लाह शाह की अगुवाई वाली विद्रोही सेना के बीच ऐतिहासिक लड़ाई हुई चिनहट की इस ऐतिहासिक लड़ाई में विद्रोही सेना की विजय हुई और ईस्ट इंडिया कंपनी के हेनरी लॉरेंस की फौज हार गई और उन्हें मैदान छोड़कर भागना पड़ा

यह पहले स्वतंत्रता संग्राम की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी देश को गौरवान्वित करने वाली और स्वाधीनता सेनानियों का मनोबल बढ़ाने वाली इस लड़ाई में सैकड़ों दूसरे सैनिकों के साथ उदा देवी के पति मक्का पासी की भी शहादत हुई थी उदा देवी ने अपने पति की लाश पर उनकी शहादत का बदला लेने की कसम खाई थी अंग्रेजों की सेना चिनहट में मिली हार का बदला लेने की तैयारी कर रही थी

उन्हें पता चला कि लगभग 2000 विद्रोही सैनिकों ने लखनऊ के सिकंदर बाग में शरण ले रखी है 16 नवंबर 1857 को कॉलिंग कैंपल के नेतृत्व में अंग्रेजी सैनिकों ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत सिकंदरबाग कि उस समय घेराबंदी करी जिस समय सैनिक सो रहे थे या आसावधान थे उस किले के भीतर दो हजार से ऊपर विद्रोही सैनिक थे उदा पासी के नेतृत्व में वारिस शाह की स्त्री सेना की टुकड़ी भी इसी बाग में थी आसावधान सैनिकों की बेरहमी से हत्या करते हुए अंग्रेजी सैनिक तेजी से आगे बढ़ रहे थे हजारों विद्रोही सैनिक मारे जा चुके थे

पराजय सामने नजर आ रही थी मैदान के एक हिस्से में महिला टुकड़ी के साथ मौजूद उदा पासी ने पराजय निकट देखकर पुरुषों के कपड़े पहन लिए हाथों में बंदूक और कंधों पर भरपूर गोला बारूद लेकर वह पीपल के एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई ब्रिटिश सैनिकों को मैदान के उस हिस्से में आता देख उदा पासी ने उन पर निशाना लगाकर फायरिंग शुरू कर दी पेड़ की डालियों और पत्तों के बीच छिपकर उन्होंने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदरबाग के उस हिस्से में तब तक प्रवेश करने नहीं दिया

जब तक उनका गोला-बारूद खत्म नहीं हो गया उदा पासी ने अपनी अकेली लड़ाई में ब्रिटिश सेना के दो बड़े अफसरों और  32 अंग्रेज सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था गोलियां खत्म होने के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने पेड़ को घेर कर उस पर अंधाधुंध फायरिंग करना शुरू कर दी कोई उपाय न देख कर उदा पासी पेड़ से नीचे उतरने लगी तो उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया गया उदा देवी पासी का इतिहास

उदा देवी को सैल्यूट 

ब्रिटिश सेना के हाथ पड़ने से पहले ही वह वीरांगना वीरगति को प्राप्त हो चुकी थी लाल रंग की कसी हुई जैकेट और पेंट पहने उदा की लाश जब पेड़ से जमीन पर गिरी तो उनका जैकेट खुल गया अंग्रेजी सेना का अफसर कंपल यह देखकर हैरान रह गया कि वीरगति प्राप्त वह बहादुर सैनिक कोई पुरुष नहीं एक महिला थी कहा जाता है कि उदा देवी की स्तब्ध कर देने वाली वीरता से अभिभूत होकर अंग्रेजी सेना के अफसर कैंपल ने हेट उतारकर उन्हें सेल्यूट मारा और उनकी वीरता को सलामी और श्रद्धांजलि दी

उदा पासी के शौर्य साहस और शहादत पर देसी इतिहासकारों ने बहुत कम और अंग्रेजी अधिकारियों और पत्रकारों ने ज्यादा लिखा है भारत के इतिहास में वह वीरांगना कहीं खो गई वहीं ब्रिटिश साजन फॉर्म मिशेल ने अपने एक स्मरण में बिना नाम लिए सिकंदर बाग में पीपल के एक बड़े पेड़ के ऊपर बैठी एक ऐसी स्त्री का उल्लेख किया जो अंग्रेजी सेना के 32 से ज्यादा सिपाहियों और अफसरों को मार गिराने के बाद शहीद हुई थी

लंदन टाइम्स के तत्कालीन संवाददाता ‘विलियम हावर्ड’ ने लड़ाई का जो डिस्पैच भेजा उसमें उन्होंने पुरुष वेश में स्त्री द्वारा पीपल के पेड़ से फायरिंग कर अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुंचाने का उल्लेख प्रमुखता से किया था लंदन के कई दूसरे अखबारों ने भी उदा की बहादुरी पर लेख प्रकाशित किए थे उदा देवी पासी का इतिहास

उदा पासी की मूर्ति 

उदा देवी हमारे राष्ट्रीय गौरव और स्वाभिमान के प्रतीक है जातिवाद से ग्रस्त इतिहास ने उनके साथ न्याय नहीं किया अंग्रेजों से अपनी रियासत बचाने की लड़ाई लड़ रहे कई लोग देश के पहले स्वाधीनता आंदोलन के नायक और नायिका घोषित किए गए मगर बिना किसी स्वार्थ के देश की आजादी के लिए लड़ने और मर मिटने वाले सैकड़ों आम लोग इतिहास के अंधेरे तहखाने में घूम कर दिए गए हैं

वीरांगना ऊदा देवी पासी उनमें से ही एक है मात्र कुछ ही सालों पहले उत्तर प्रदेश के सरकार ने उदा देवी की एक मूर्ति सिकंदरबाग परिसर में स्थापित कि अब वक्त आ गया है कि भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास फिर से लिखा जाए और उसमें बलिदान देने वाले बहुजन नायक और नायिका के बलिदान को भी समाज के हर लोगों तक पहुंचाया जाए ताकि उन्हें भी सम्मान मिल सके

उदा देवी पासी का इतिहास