तिमनगढ़ किले का इतिहास, तिमनगढ़ किले का निर्माण , सागर झील और पारस पत्थर , तिमनगढ़ किले को श्राप, तिमनगढ़ का किला किसने बनवाया था
तिमनगढ़ किले का इतिहास
विजयपाल की मृत्यु के बाद उसके 10 पुत्रों में तीमन पाल सबसे बड़े थे अतः तीमन पाल अपने पिता की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी हुए उसने विजय मंदिर घाट पर आक्रमण करके अब्बूवर्कर को प्राप्त किया तथा अपने पिता का खोया हुआ दुर्ग फिर से प्राप्त किया तीमन पाल तथा उसके वंशज विजय मंदिर गढ़ पर अधिक समय तक अधिकार नहीं कर सके
महमूद गोरी ने इस दुर्ग को गजनवियो से छीन लिया महमूद गौरी के उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले पर अधिकार किया फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में भी यह दुर्ग दिल्ली के मुसलमान शासकों के अधिकार में रहा दक्षिणी विजय के बाद फिरोजशाह तुगलक इस किले में कई माह तक रुका था लोदी वंश के शासन काल में सिकंदर लोदी के अधिकार में रहा था बाद में मुगलों ने इस पर अधिकार कर लिया वर्तमान में यह दुर्गा बयाना के नाम से प्रसिद्ध है | तिमनगढ़ किले का इतिहास |
तिमनगढ़ किले का निर्माण
तिमनगढ़ राजस्थान के करौली जिले में स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक दुर्ग है यह किला हिंडौन सिटी के पास मासलपुर तहसील में है इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण 1100ईसवी में करवाया गया था जिसे जल्द ही मोहम्मद गोरी ने नष्ट कर दिया इस किले पर 1196 से 1244 के बीच मोहम्मद गौरी का कब्जा था
1244 ईसवी में यदुवंशी राजा तीमनपाल ने अपने पूर्वज द्वारा निर्मित इस किले को दोबारा बनवा कर इसका उद्धार किया राजा तिमान पाल के के नाम पर ही इस किले का नाम तिमनगढ़ पड़ा इस किले में बने मंदिरों की दीवारों छतों और स्तंभों पर सुंदर ज्यामितीय कलाकारी से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि अपने समय में यह किला कितना सुंदर और कितना वैभवशाली रहा होगा लेकिन यह दुर्ग अधिक समय तक अपना अस्तित्व बचाकर नहीं रख सका
इसके उजड़ने के पीछे एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार इस किले को एक नथनी ने श्राप से नष्ट किया था आज भी इस किले में अष्टधातु की प्राचीन मूर्तियां, मिट्टी की विशाल और छोटी मूर्तियों को इस किले के मंदिर के नीचे छुपाया गया है इस मंदिर के स्तंभों पर अलग-अलग देवी-देवताओं की तस्वीरें भी बनाई गई है जो प्राचीन कला का एक बेमिसाल नमूना है राजस्थान के अन्य किलो की तुलना में तिमनगढ़ किले की वास्तुकला अद्वितीय है और पर्यटकों को आकर्षित करती है
किले में 80 से अधिक प्राचीर है मुख्य द्वार को ‘जगनपोल’ के नाम से जाना जाता है असामाजिक तत्वों ने पैसे और मूर्तियों को निकालने के लिए इस किले को खंडहर बना दिया है मुगल शासन के दौरान इस किले पर मुगलों का नियंत्रण और शासन था तिमनगढ़ किले की वास्तुकला भारत के अन्य किलो से बिल्कुल अलग है यह किला देश के प्राचीन इतिहास की अनूठी निशानी है इस किले की सबसे खास बात यह है कि इसमें 5 प्रवेश द्वार हैं | तिमनगढ़ किले का इतिहास |
सागर झील और पारस पत्थर
इस किले का राजा पारस पत्थर से लोहे को बदलने में बदलता था यही कारण है कि यह राजा अपनी प्रजा से कर के रूप में नगद रुपैया ना लेकर लोहा लिया करता था और उसे सोने में बदल लेता था स्वर्ण को सुरक्षित रखने के लिए किले के गर्भ में अनेकों तलघर बने हैं जहां सवर्ण रूपी खजाना रखा जाता था तिमनगढ़ किले की तलहटी में सागर झील स्थित है
लोगों का मानना है कि सागर झील के तल पर पारस पत्थर मौजूद है जिसके स्पर्श से कोई भी चीज सोने की हो सकती है उसी पारस के लिए इस किले को खोदकर देखा गया और इस तलाश में किले की सभी प्राचीन संपदाओं को लूट कर बेच दिया गया पारस पत्थर जिसके बारे में यह कहना मुश्किल है कि उसका अस्तित्व है भी या नहीं उस पारस की लालसा में यहां के असली पारस, यहां की धरोहर को मिटा दिया गया
जब आसपास के राजाओं को पारस पत्थर के बारे में पता चला तो उन्होंने उसे पाने के लिए कई बार तिमनगढ़ पर आक्रमण किया था परंतु वह हर बार सफल रहे थे जब तिमनगढ़ के राजा को यह पता चला कि वह इस युद्ध में मरने वाला है तो उसने मरने से पहले उस पारस पत्थर को सागर झील में फेंक दिया था राजा की मृत्यु के कुछ समय बाद ही महल वीरान हो गया था और यह पारस पत्थर महल में ही कहीं गुम हो गया क
ई राजाओं ने महल को खोदकर इस पत्थर को ढूंढने की कोशिश की थी परंतु वह सब असफल रहे कई लोग पारस पत्थर की खोज में रात को इस महल में खुदाई करते हैं कई लोग जादू टोना का भी सहारा लेते हैं आसपास के लोगों का मानना है कि कई बार यहां लोग इस पत्थर की तलाश में आए और वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठे क्योंकि पारस पत्थर की सुरक्षा एक जिन्न करता है | तिमनगढ़ किले का इतिहास |
तिमनगढ़ किले को श्राप
एक बार नटनी नाम की एक कलाकार थी कहा जाता है कि एक बार राजा ने उस नटनी को एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर रस्सी के सहारे जाने के लिए कहा था राजा ने कहा यदि तुम यह कारनामा करने में सफल रही तो मैं तुम्हें अपने राज्य का आधा हिस्सा दे दूंगा इसके बाद नटनी ने राजा की शर्त को मान लिया और उसने रस्सी पर चलना शुरू कर दिया
जब राजा के बेटों को यह बात पता चली तो उन्होंने सोचा कि हमारे पिताजी हमारे हिस्से का राज्य उस नटनी को दे देंगे इस बात से वह क्रोधित होकर पहाड़ी पर पहुंचे और उन्होंने एक तरफ से रस्सी को काटना शुरू कर दिया रस्सी कटने से वह नटनी चट्टान पर जाकर गिर जाती है और वह मरने से पहले राजा को श्राप देती है कि तुम्हारा राज्य बर्बाद हो जाएगा इसके बाद राजा के साथ वही हुआ उसका पूरा राज्य है तहस-नहस हो गया | तिमनगढ़ किले का इतिहास |