सूर्य सेन का जीवन परिचय,सूर्य सेन का जन्म ,गुरिल्ला युद्ध का निश्चय ,अंग्रेज सैनिकों से संघर्ष,सूर्य सेन की गिरफ्तारी,सूर्य सेन की शहादत 

सूर्य सेन का जीवन परिचय

सूर्य सेन भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारियों और अमर शहीदों में गिने जाते हैं भारत भूमि पर अनेकों शहीदों ने क्रांति की वेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर आजादी की राहों को रोशन किया है इन्हीं में से एक सूर्यसेन नेशनल हाई स्कूल में उच्च स्नातक शिक्षक के रूप में कार्यरत थे जिस कारण लोग उन्हें प्यार से ‘मास्टर दा’ कहते थे

चटगांव के नायक मास्टर सूर्य सेन ने अंग्रेजी सरकार को सीधे चुनौती दी थी सरकार उनकी वीरता और साहस से इस प्रकार हिल गई थी कि जब उन्हें पकड़ा गया तो उन्हें ऐसी अमानवीय यातनाएं दी गई जिन्हें सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं सूर्य सेन का जीवन परिचय

सूर्य सेन का जन्म 

सूर्य सेन का जन्म 22 मार्च 1894 को बंगाल में हुआ था इनके पिता जी का नाम रामनिरंजन था जो पेशे से शिक्षक थे और चटगांव के नोआपरा इलाके में पढ़ाते थे सूर्य सेन की शिक्षा बजट गांव में हुई थी फिर आगे BA की पढ़ाई बहरामपुर कॉलेज में पूरी हुई सूर्य सेन आगे चलकर शिक्षक बने और लोग इन्हें प्यार से मास्टर दा के नाम से पुकारते थे

जब सूर्यसेन इंटरमीडिएट में थे तभी अपने शिक्षक की प्रेरणा से अनुशीलन समिति के सदस्य बने बी.ए. की पढ़ाई के दौरान वह बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारी संगठन “युगांतर पार्टी” से जुड़े शिक्षक बनने के बाद उन्हें “राष्ट्रीय कांग्रेस” के चटगांव जिला शाखा के अध्यक्ष चुना गया आजादी के दीवाने सूर्य सेन ने अंग्रेजी सरकार को चटगांव से उखाड़ फेंकने के लिए युवाओं और छात्रों के एक संगठन का गठन किया जिसका नाम “इंडियन रिपब्लिक आर्मी” था सूर्य सेन का जीवन परिचय

गुरिल्ला युद्ध का निश्चय 

वर्ष 1923 तक मास्टर दा ने चटगांव के कोने कोने में क्रांति की अलख जगा दी साम्राज्यवादी सरकार क्रूरता पूर्वक क्रांतिकारियों के दमन में लगी हुई थी साधनहीन युवक एक और अपनी जान हथेली पर रखकर निरंकुश साम्राज्य से सीधे संघर्ष कर रहे थे तो वहीं दूसरी और उन्हें धन और हथियारों की कमी भी सदा बनी रहती थी

इसी कारण सूर्य सेन ने सीमित संसाधनों को देखते हुए सरकार से गुरिल्ला युद्ध करने का निश्चय किया और अन्य क्रांतिकारी घटनाओं को अंजाम दिया उन्हें पहली बार सफलता तब मिली जब उन्होंने दिनदहाड़े 23 अप्रैल 1923 को चटगांव में आसाम बंगाल रेलवे के ट्रेजरी ऑफिस को लूटा, किंतु उन्हें सबसे बड़ी सफलता “चटगांव आर्मरी रेड” के रूप में मिली जिसने अंग्रेज सरकार को झकझोर कर रख दिया यह सरकार को खुला संदेश था कि भारतीय युवा मन अब अपने प्राण देकर भी दासता की बेड़ियों को तोड़ देना चाहता है 

अंग्रेज सैनिकों से संघर्ष

18 अप्रैल 1930 को सूर्य सेन के नेतृत्व में 500 से अधिक युवाओं और विद्यार्थियों के साथ मिलकर चटगांव के सहायक सैनिक शस्त्रागार पर कब्जा कर लिया क्रांतिकारियों ने चटगांव के सारे टेलीफोन और टेलीग्राफ से तारों को काट दिया रेल मार्ग को भी रोक दिया गया 1930- 32 के बीच लगभग 22 ब्रिटिश अधिकारी और 220 ब्रिटिश सहायक की हत्या हुई इन सभी के मास्टर माइंड “मास्टर दा” सूर्य सेन थे चटगांव में उस समय ब्रिटिश राज के शासन का अंत हो गया था एक प्रकार से चटगांव पर क्रांतिकारियों का अधिकार हो गया

तत्पश्चात यह दल पुलिस शस्त्रागार के सामने इकट्ठा हुआ, जहां मास्टर सूर्य सेन ने अपने इस सेना से विधिवत सैन्य सलामी ली, राष्ट्रीय ध्वज फहराया और भारत की अस्थाई सरकार की स्थापना की थी अंग्रेजों में सूर्य सेन के नाम का दहशत ऐसा था कि कोई अधिकारी चटगांव आना नहीं चाहता था सूर्य सेन को “द हीरो ऑफ चटगांव” के नाम से जाना जाने लगा इस दौरान उन्होंने अनेक संकटों का भी सामना किया 22 अप्रैल 1930 को हजारों अंग्रेजी सैनिकों ने जलालाबाद पहाड़ियों को घेर लिया, जहां क्रांतिकारियों ने शरण ले रखी थी ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी क्रांतिकारियों ने समर्पण नहीं किया और हथियारों से लैस अंग्रेज सेना से गोरिल्ला युद्ध छेड़ दिया

क्रांतिकारियों की वीरता और गोरिल्ला युद्ध कौशल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस जंग में जहां 80 से भी ज्यादा अंग्रेज सैनिक मारे गए, वहीं मात्र 12 क्रांतिकारी शहीद हुए इसके बाद मास्टर सूर्यसेन किसी प्रकार अपने कुछ साथियों सहित पास के गांव में चले गए इनके कुछ साथी कोलकाता चले गए लेकिन इनमें से कुछ दुर्भाग्य से पकड़े भी गए थे इस क्रांति में उनके संगठन के विनायक बोस बादल गुप्ता, दिनेश गुप्ता, प्रीतीलता वाडियार और बिना दास आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी अंग्रेजों ने अपनी सत्ता डगमगाते देख बर्बरता की सारी हदें पार कर दी बच्चे, बूढ़े और महिलाओं को भी नहीं छोड़ा गया इंडियन रिपब्लिक आर्मी के क्रांतिकारियों को पकड़ पकड़ कर फांसी दी जाती थी सूर्य सेन का जीवन परिचय

सूर्य सेन की गिरफ्तारी

अंग्रेज सूर्य सेन की तलाश में भी जुटी थी अंग्रेजों ने सूर्य सेन का पता बताने वाले को ₹10000 इनाम की घोषणा की थी अंग्रेज पुलिस किसी भी तरह से सूर्य सेन को पकड़ना चाहती थी वह हर तरफ उनकी तलाश कर रही थी जब सूर्य सेन पाटिया के पास एक विधवा स्त्री सावित्री देवी के यहां शरण ले रखी थी

तभी 13 जून 1932 को कैप्टन कैमरून ने पुलिस व सेना के साथ उस घर को घेर लिया दोनों ओर से गोलीबारी शुरू हुई जिसमें कैप्टन मारा गया और सूर्य सेन अपने साथियों के साथ इस बार भी सुरक्षित निकल गए इतना दमन और कठिनाइयां भी इन क्रांतिकारी युवाओं को डिगा नहीं सकी और जो क्रांतिकारी बच गए थे उन्होंने दोबारा खुद को संगठित कर लिया और अपनी साहसिक घटनाओं द्वारा सरकार को परेशान करते रहे फरवरी इसके बाद 1933 में सूर्य सेन अपने एक मित्र नेत्र सेन के घर पर थे

नेत्र सेन इनामी राशि के लालच में अंग्रेजों को उनके बारे में बता दिए और इस तरह एक धोखेबाज साथी के कारण 16 फरवरी 1933 को सूर्य सेन गिरफ्तार कर लिए गए हालांकि अगले ही दिन उस धोखेबाज साथी का किसी क्रांतिकारी ने गला काट दिया सूर्य सेन का जीवन परिचय

सूर्य सेन की शहादत 

गिरफ्तार करने के बाद सूर्य सेन को बुरी तरह प्रताड़ित किया गया हथोड़े से मारकर उनके सारे दांत तोड़ दिए गए, नाखून उखाड़ दिए गए, शरीर के कई हड्डियों को भी तोड़ दिया गया इतने बर्बरता के बाद भी सूर्य सेन ने अपने साथियों के बारे में नहीं बताया अंग्रेजों में सूर्य सेन का खौफ इस कदर था कि बेहोशी की हालत में ही 12 जनवरी 1934 को चटगांव सेंट्रल जेल में उन्हें फांसी दे दी गई ताकि वह मरते समय ‘वंदेमातरम’ ना बोल सके इसके बाद सूर्यसेन के मृत शरीर को एक बक्से में बंद कर बंगाल की खाड़ी में फेंक दिया गया

सूर्य सेन का जीवन परिचय