सेठ राम दास जी गुड़वाल का इतिहास, जगत सेठ की उपाधि,सेठ राम दास जी की वीरता,सेठ राम दास जी की मृत्यु ,महान क्रांतिकारी सेठ रामदास जी गुड़वाले

सेठ राम दास जी गुड़वाल का इतिहास 

सेठ राम दास जी गुड़ वाले 1857 के महान क्रांतिकारी दानवीर थे जिन्हें फांसी पर चढ़ने से पहले ही अंग्रेजों ने उन पर शिकारी कुत्ते छोड़ें जिन्होंने जीवित ही उनके शरीर को नोच खाया रामदास जी गुड़ वाला दिल्ली के अरबपति सेठ और बैंकर थे और अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के गहरे दोस्त भी थे इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था

इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े कि मिल की स्थापना की थी इनके अमीरी की एक कहावत थी सेठ राम दास जी गुड़ वाले के पास इतना सोना, चांदी,जवाहरात है की वह इनकी दीवारों से गंगा का पानी भी रोक सकता है सेठ राम दास जी मातृभूमि को अंग्रेजों की दासता से मुक्त करवाना चाहते थे

उन्होंने करोड़ों रुपए बहादुर शाह जफर को दिए ताकि वह उसकी सहायता से एक विशाल सेना का निर्माण कर अंग्रेजों से लोहा ले सके और भारत माता को उनके चुगल से आजाद करवाएं उन्होंने गुप्तचर विभाग का निर्माण किया था जो अंग्रेजों और भारतीय देशद्रोहियों के समाचार लाकर देता था सेठ राम दास जी गुड़वाल का इतिहास

 जगत सेठ की उपाधि 

जगत सेठ यह उपाधि सन 1723 में सेठ फतेह चंद को मुगल बादशाह, मोहम्मद शाह ने दी थी इसके बाद से ही यह पूरा घराना “जगत सेठ” के नाम से प्रसिद्ध हो गया सेठ रामदास जी के पिता “मानिकचंद” इस घराने के संस्थापक थे

यह घरना उस वक्त का सबसे धनवान बैंकर घराना माना जाता था और जगत सेठों में से एक मेहताब राय उस समय के पूरी दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे इन जगत सेठों ने समय-समय पर अंग्रेजों और मुगलों को भी उधार में पैसा दिया था उनकी अमीरी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उस समय की ब्रिटिश की सभी बैंकों से ज्यादा पैसा जगत सेठों के पास था

सेठ मानिकचंद 17वीं शताब्दी में राजस्थान के नागौर जिले के एक मारवाड़ी परिवार में हीरानंद साहू के घर जन्मे थे मानिकचंद के पिताजी हीरानंद जी बेहतर व्यवसाय की खोज में बिहार रवाना हो गए फिर पटना से होते हुए बंगाल और दिल्ली और उत्तर भारत के प्रमुख बड़े शहरों में इनका बिजनेस चलता था सेठ राम दास जी गुड़वाल का इतिहास

सेठ राम दास जी की वीरता

 यह बात तब की है जब 1857 मे मेरठ से आरंभ होकर क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुंची तो मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को 1857 की सैनिक क्रांति का नायक घोषित कर दिया गया दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया इसके बाद उनके भोजन और वेतन की समस्या पैदा हो गई बादशाह का खजाना खाली था

एक दिन उन्होंने अपनी रानियों के गहने मंत्रियों के सामने रख दिए राम दास गुड़ वाले बादशाह के गहरे मित्र थे रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई उन्होंने करोड़ों की संपत्ति बादशाह के हवाले कर दी और कह दिया मातृभूमि की रक्षा होगी ,तो धन फिर से कमा लिया जाएगा

रामजी दास ने केवल धन ही नहीं दिया बल्कि सैनिकों को सत्तू, आटा, अनाज बैलों, ऊंट वह घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था तक की थी सेठ रामदास जी जिन्होंने अभी तक केवल व्यापार ही किया था

उन्होंने सेना व खुफिया विभाग के संगठन का कार्य प्रारंभ कर दिया उनकी संगठन की शक्ति को देखकर अंग्रेज सेनापति भी हैरान हो गए सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया और अनेक सैनिक छावनीयो से गुप्त संपर्क किया उन्होंने अंदर ही अंदर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संगठन का निर्माण किया

इसके बाद सेट रामदास जी ने देश के कोने-कोने मे अपने गुप्त चर भेजें और उन्होंने छोटे से छोटे राज्यों से प्रार्थना की, की इस संकट काल में बहादुर शाह जफर कि मदद कर देश को स्वतंत्र करवाएं राम जी की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधियों से अंग्रेज शासन व अधिकारी बहुत परेशान होने लगे

सेठ राम दास जी की मृत्यु 

एक दिन अचानक कुछ कारणों से दिल्ली पर अंग्रेजो का कब्जा होने लगा एक दिन उन्होंने चांदनी चौक की दुकानों के आगे जहर मिश्रित शराब की पेटियां रखवा दी इसके बाद अंग्रेज सेना उस शराब से अपनी प्यास बुझाती और वही लेट जाती

अंग्रेजों को समझ आ गया कि भारत पर शासन करना है तो रामदास जी का अंत बहुत जरूरी है इसके बाद सेट रामदास जी गुड़ वाले को धोखे से पकड़ा गया और जिस तरह से मारा गया वह क्रूरता की मिसाल है

पहले उन्हें रस्सीयो से खंभे में बांधा गया इसके बाद उन पर शिकारी कुत्ते छुड़वाए गए उसके बाद उन्हें उसी अर्धमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने 1858मे फांसी पर लटका दिया गया है सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक “हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट” में लिखा है रामदास गुड़ वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे

अंग्रेजों के विचार से उनके पास असंख्य मोती, हीरा व जेवरात व अकूत संपत्ति थी वह मुगल बादशाहो से भी अधिक धनी थे यूरोप के बाजारों में भी उनकी अमीरी की चर्चा होती थी लेकिन भारत के इतिहास में उनका जो नाम है वह उनकी अतुल्य संपत्ति की वजह से नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व निछावर करने की वजह से है जिसे आज बहुत ही कम लोग जानते हैं

सेठ राम दास जी गुड़वाल का इतिहास