रूस की क्रांति का इतिहास , रूस की सामाजिक स्थिति , रूसी साम्राज्य, 2 अक्टूबर 1917 की क्रांति 

रूस की क्रांति का इतिहास 

सन 1917 की रूस की क्रांति विषय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है इसके परिणाम स्वरूप रूप से जार के स्वेच्छाचारी शासन का अंत हुआ तथा रूसी सोवियत संघात्मक समाजवादी गणराज्य की स्थापना हुई थी रूस की क्रांति दो भागों में हुई थी मार्च 1917 में तथा अक्टूबर 1917 में,

1917 की रूस की क्रांति बीसवीं शताब्दी की सबसे विस्फोटक राजनीतिक घटनाओं में से1917 की रूस की क्रांति बीसवीं शताब्दी की सबसे विस्फोटक राजनीतिक घटनाओं में से एक थी यह एक हिंसक क्रांति थी और इस हिंसक क्रांति में सदियों से चले आ रहे रुसी राजवंश और साम्राज्य का अंत हुआ 

 1914 में रूस और उसके पूरे साम्राज्य पर जार निकोलस द्वितीय का शासन था बीसवीं सदी की शुरुआत में रूस की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा खेती-बाड़ी से जुड़ा हुआ था रूसी साम्राज्य के किसान अपनी जरूरतों के साथ-साथ बाजार के लिए भी पैदावार करते थे और रूस अनाज का एक बड़ा निर्यातक था रूस में बहुत सारे कारखाने 1890 के दशक में चालू हुए थे

जब रूस के रेल नेटवर्क को फैलाया जा रहा था 1900 तक कुछ इलाकों में कारीगरों और कारखाना मजदूरों की संख्या बराबर हो चुकी थी उस समय ज्यादातर कारखाने उद्योगपतियों की निजी संपत्ति थे जब किसी को नौकरी से निकाल दिया जाता था या उन्हें मालिकों से कोई शिकायत होती थी तो मजदूर एकजुट होकर हड़ताल भी कर देते थे 1896-97 के बीच कपड़ा उद्योग में और 1902 में धातु उद्योग में ऐसी हड़ताल काफी बड़ी संख्या में आयोजित की गई थी | रूस की क्रांति का इतिहास |

रूस की सामाजिक स्थिति 

1914 से पहले रूस में सभी राजनीतिक पार्टियां गैरकानूनी थी इसके बाद समाजवादियों ने 1898 में “रशियन सोशल डेमोक्रेटिक वर्कर्स पार्टी” का गठन किया था सरकारी आंतक के कारण इस पार्टी को गैरकानूनी संगठन के रूप में काम करना पड़ा था इस पार्टी का एक अखबार भी निकलता था, जिसने मजदूरों को संगठित किया था और हड़ताल आदि कार्यक्रम आयोजित किए थे

19वीं सदी के आखिर में रूस के ग्रामीण इलाकों में समाजवादी काफी सक्रिय थे उन्होंने “सोशलिस्ट रिवॉल्यूशनरी पार्टी” का गठन कर लिया इस पार्टी ने किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और मांग की कि सामंतों के कब्जे वाली जमीन किसानों को सौंपी जाए रूस एक निरंकुश राजशाही था अन्य शासकों के विपरीत 20वी सदी की शुरुआत में भी जार राष्ट्रीय संसद के अधीन नहीं था

उदारवादियों ने इस स्थिति को खत्म करने के लिए बड़े पैमाने पर मुहिम चलाई 1905 की क्रांति के दौरान उन्होंने संविधान की रचना के लिए सोशल डेमोक्रेट और समाजवादी क्रांतिकारियों को साथ लेकर किसानों और मजदूरों के बीच काफी संघर्ष किया था राष्ट्रवादी और इस्लाम के आधुनिकरण के समर्थक इलाकों का भी समर्थन मिला था

उस समय सारे देश में हड़ताल होने लगी, जब नागरिक स्वतंत्रता के अभाव का विरोध करते हुए विद्यार्थी अपनी कक्षाओं का बहिष्कार करने लगे, तो विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों और अन्य मध्यवर्गीय नागरिकों ने संविधान सभा के गठन की मांग करते हुए ‘यूनियन ऑफिस यूनियंस’ की स्थापना कर दी क्रांति के समय कुछ दिन तक फैक्ट्री मजदूरों की बहुत सारी ट्रेड यूनियनों और फैक्टरी कमेटियां भी अस्तित्व में रही | रूस की क्रांति का इतिहास |

रूसी साम्राज्य 

1914 में दो यूरोपीय गठबंधनो के बीच युद्ध छिड़ गया एक खेमे में जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और तुर्की थे तो दूसरे खेमे में फ्रांस, ब्रिटेन और रूस थे इन सभी देशों के पास विशाल वैश्विक साम्राज्य थे इसलिए यूरोप के साथ-साथ यह युद्ध यूरोप के बाहर भी फैल गया था इसी युद्ध को पहला विश्व युद्ध कहा जाता है शुरू में इस युद्ध में जार को काफी समर्थन मिला

जनता ने जार का साथ दिया लेकिन जैसे-जैसे युद्ध लंबा चला तो जार ने ड्यूमा में मौजूद मुख्य पार्टियों से सलाह लेना बंद कर दिया जिसके कारण जनसमर्थन कम होने लगा “प्रथम विश्वयुद्ध” के पूर्वी मोर्चे पर चल रही लड़ाई ‘पश्चिमी मोर्चे’ की लड़ाई से अलग थी पश्चिम में सैनिक पूर्वी फ्रांस की सेना पर बनी खाइयो से लड़ाई लड़ रहे थे, जबकि पूर्वी मोर्चे पर सेना ने काफी बड़ा फासला तय कर लिया था

इस मोर्चे पर बहुत सारे सैनिक मौत के मुंह में जा चुके थे सेना की पराजय ने रूसीयों का मनोबल तोड़ दिया था 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय झेलनी पड़ी थी इस युद्ध में 70 लाख लोग मारे जा चुके थे पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फसलों और इमारतों को नष्ट कर डाला ताकि दुश्मन की सेना वहां टिक ना पाए फसलों और इमारतों के विनाश में रूस में 30 लाख से ज्यादा लोग शरणार्थी हो गए थे

इस युद्ध में सरकार और जार दोनों को अलोकप्रिय बना दिया इस युद्ध से सिपाही भी तंग हो चुके थे वह भी लड़ना नहीं चाहते थे इस युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा असर पड़ा था क्योंकि प्लास्टिक समुंदर में जिस रास्ते से विदेशी औद्योगिक समान आते थे उस पर जर्मनी का कब्जा हो गया था यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले रूस के औद्योगिक करण ज्यादा तेजी से बेकार होने लगे थे

22 फरवरी को दाएं तट पर स्थित एक फैक्ट्री में तालाबंदी घोषित कर दी गई अगले दिन इस फैक्ट्री के मजदूरों के समर्थन में 50 फैक्ट्रियों के मजदूरों ने भी हड़ताल का ऐलान कर दिया बहुत सारे कारखानों में हड़ताल का नेतृत्व औरतें कर रही थी इसी दिन को बाद में “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” का नाम दिया गया था अगले दिन एक प्रतिनिधिमंडल जार से मिलने गया सैनिक कमांडरों ने उसे सलाह दी कि वह राज गद्दी छोड़ दें

उसने कमांडरों की बात मान ली और 2 मार्च को गद्दी छोड़ दी सोवियत और ड्यूमा के नेताओं ने देश का शासन चलाने के लिए एक अंतरिम सरकार बना ली, तय किया गया कि रूस के भविष्य के बारे में फैसला लेने की जिम्मेदारी संविधान सभा को सौंप दी जाए और उसका चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर किया जाए फरवरी 1917 में राजसाही को गद्दी से हटाने वाली क्रांति का झंडा  जनता के हाथों में था | रूस की क्रांति का इतिहास |

2 अक्टूबर 1917 की क्रांति 

क्रांति का दूसरा अध्याय ‘नवंबर की क्रांति’ कहलाता है जिसे “बोल्शेविक क्रांति” भी कहते हैं यह नवंबर 1917 में हुई और इसके फलस्वरूप मजदूर जनतंत्र का जन्म हुआ अक्टूबर 1917 की रूसी क्रांति को हम लोग बोल्शेविक क्रांति इसलिए कहते हैं क्योंकि बोल्शेविक नामक राजनीतिक समूह ने इस क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इस क्रांति की दशा एवं दिशा निर्धारित की थी

इस क्रांति का नेतृत्व लेनिन ने किया था रूस का जार निकोलस द्वितीय का स्वेच्छाधारी शासन इस आंदोलन का मुख्य कारणों में से एक था जैसे-जैसे अंतरिम सरकार और बोलशेविको के बीच टकराव बढ़ता गया लेनिन को अंतरिम सरकार द्वारा तानाशाही थोप देने की आशंका दिखाई देने लगी सितंबर में उन्होंने सरकार के खिलाफ विद्रोह के बारे में चर्चा शुरू कर दी

सेना और फैक्टरी सोवियतो में मौजूद बोलशेविको को इकट्ठा किया गया 16 अक्टूबर 1917 को लेनिन ने पेत्रोंग्राद सोवियत और बोल्शेविक पार्टी को सत्ता पर कब्जा करने के लिए राजी कर लिया इसके बाद 24 अक्टूबर को विद्रोह शुरू हो गया इस युद्ध के बाद बोल्शेविक निजी संपत्ति की व्यवस्था के पूरी तरह खिलाफ थे ज्यादातर उद्योगों और बैंकों का नवंबर 1917 में ही राष्ट्रीयकरण किया जा चुका था

उनका स्वामित्व और प्रबंधन सरकार के नियंत्रण में आ चुका था जमीन को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया किसानों को सामंतों की जमीनों पर कब्जा करने की खुली छूट दे दी गई शहरों में बोल्शेविको ने मकान मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़कर उनके बड़े मकानों के छोटे-छोटे हिस्से कर दिए ताकि जरूरतमंद लोगों को भी रहने की जगह दी जा सके | रूस की क्रांति का इतिहास |