रानी कर्णावती का इतिहास ,हुमायूं से मदद ,रानी कर्णावती का जौहर ,हुमायूं को कर्णावती का पत्र और राखी कहां प्राप्त हुआ, रानी कर्णावती किसकी पत्नी थी
रानी कर्णावती का इतिहास
ऐतिहासिक प्रसंगों के अनुसार मुगल बादशाह हुमायूं और राजपूत रानी कर्णावती का नाम भी रक्षाबंधन के पवित्र त्यौहार से जुड़ा हुआ है चित्तौड़ के राणा संग्राम सिंह सिसोदिया वंश के राजा थे वे राणा सांगा के नाम से भी जाने जाते हैं उनकी रानी का नाम था कर्णावती रानी कर्णावती मेवाड़ की रानी थी जिस समय हुमायूं अपने राज्य विस्तार का प्रयास कर रहा था,
गुजरात का शासक बहादुर शाह भी अपनी शक्ति बढ़ाने में लगा हुआ था बहादुर शाह ने 1533 ईसवी में चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया पहले मुगल बादशाह बाबर ने 1526 में दिल्ली के सिहासन पर कब्जा कर लिया था मेवाड़ के राणा सांगा ने उनके खिलाफ राजपूत शासकों का एक दल का नेतृत्व किया लेकिन अगले वर्ष खानवा की लड़ाई में वे पराजित हुए उस युद्ध में राणा सांगा को गहरे घाव हो गए जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई थी रानी कर्णावती का इतिहास
हुमायूं से मदद
राणा सांगा के 2 पुत्र थे विक्रमादित्य और उदय सिंह आगे चलकर उदय सिंह के बड़े पुत्र प्रताप मेवाड़ के राणा बने और महाराणा प्रताप के नाम से मशहूर हुए जब राणा सांगा की मृत्यु हुई उस समय उनके दोनों पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह बहुत छोटे थे और इस लायक नहीं थे कि राजपाट संभाल सके इसलिए कर्णावती ने मेवाड़ के सिंहासन पर अपने बड़े पुत्र विक्रमादित्य को बैठाया और स्वयं राज्य को संभालने में उनकी मदद करने लगी
इस बीच गुजरात के बहादुर शाह ने मेवाड़ पर कब्जा करने के लिए उस और कूच कर दिया रानी कर्णावती को जब यह समाचार मिला तो वह बेहद चिंतित हो गई उन्होंने राजपूत राजाओं से मदद मांगी लेकिन उन लोगों ने कई शर्तें लगा दी इससे रानी सोच में पड़ गई उन्होंने काफी सोच-विचार किया और फिर मुगल सम्राट हुमायूं को राखी भेज कर उनसे मदद मांगने का निश्चय किया रानी कर्णावती के इस निर्णय को जब उनके दरबारियों ने सुना तो हैरान रह गए
इसके दो कारण पहला कारण यह था कि हुमायूं मुस्लिम था इसलिए उन्हें संदेह था कि एक मुस्लिम के विरुद्ध हुमायूं एक हिंदू रानी की मदद क्यों करेगा और दूसरा कारण यह था कि हुमायूं मुगल वंश के संस्थापक बाबर का पुत्र था और बाबर और राणा सांगा के बीच खानवा में जबरदस्त युद्ध हो चुका था इस युद्ध में घायल होने की वजह से ही राणा सांगा की मृत्यु हुई थी इसलिए रानी के किसी भी दरबारी को यह उम्मीद नहीं थी की हुमायूं अपने पिता के शत्रु की पत्नी यानी रानी कर्णावती की मदद करेगा रानी कर्णावती का इतिहास
राखी की लाज
लेकिन रानी कर्णावती अपने निश्चय पर अडिग रही वह बोली हुमायूं भले ही मुस्लिम है पर वे भारतवर्ष के 1 बड़े सुल्तान भी है मुझे पूरा यकीन है कि वे रिश्तो की अहमियत समझते होंगे और मेरी राखी की लाज रखेंगे इसके बाद रानी कर्णावती ने अपने एक सेनापति को पत्र और राखी देकर हुमायूं के पास भेजा कर्णावती की राखी लेकर जब पत्र वाहक दिल्ली पहुंचा तो उसे पता चला कि इस समय हुमायूं गवालियर में है
उस समय हुमायूं ने ग्वालियर में अपना पड़ाव डाल रखा था और वह बंगाल पर आक्रमण की तैयारी कर रहा था यह जानकर पत्र वाहक ने वापिस अपना घोड़ा मोड़ लिया और ग्वालियर जा पहुंचा इसके बाद उस सेनापति ने हुमायूं को रानी कर्णावती का पत्र और राखी दे दी रानी कर्णावती की राखी और उनका पत्र देखकर हुमायूं को आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई उस पत्र में लिखा था “कि मैं आपको भाई मानकर राखी भेज रही हूं, आशा है कि राखी की लाज रखेंगे और चित्तौड़ की रक्षा करेंगे” उसने पत्र वाहक से कहा आप अपनी रानी साहिबा से कहिए गा कि वह अपना हौसला बनाए रखें मैं जल्दी अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पहुंच रहा हूं
रानी कर्णावती का जौहर
हुमायूं ने ने बिना कोई समय गवाएं अपनी सेना की एक टुकड़ी दिल्ली में भेज दी जिससे सेना की तैयारी हो सके इसके साथ ही उसने भी दिल्ली की ओर कूच कर दिया दिल्ली पहुंचकर हुमायूं ने अपनी सेना ली और फिर चित्तौड़गढ़ की ओर बढ़ चला लेकिन उनके चित्तौड़ पहुंचने के पहले ही गुजरात के राजा बहादुर शाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया रानी कर्णावती ने अपनी छोटी-सी सेना के साथ बहादुर शाह का सामना किया
लेकिन वह ज्यादा देर तक उसके सामने टिक नहीं सकी उन्होंने अपनी हार होती देखकर 8 मार्च 1535 को जोहर कर लिया कर्णावती के जोहर करते ही चित्तौड़ की सेना का मनोबल भी टूट गया था इसके बाद बहादुर शाह ने बड़ी आसानी सकर्णावती की छोटी सी सेना को हराकर वहां पर अपना कब्जा कर लिया जब हुमायूं चित्तौड़ पहुंचा तो वहां पर बहादुर शाह का कब्जा हो चुका था
वही पर हुमायूं को रानी कर्णावती के जोहर की खबर मिली इसके बाद कर्णावती के जोहर की खबर सुनकर हुमायूं को बहुत दुख हुआ लेकिन जब उसे पता चला कि कर्णावती के दोनों पुत्र विक्रमादित्य और उदय सिंह बूंदी के किले में सुरक्षित है तो उसे थोड़ा सुकून मिला इसके बाद हुमायूं ने गुजरात पर आक्रमण कर दिया और बहादुर शाह के सेनापति को बुरी तरह हरा दिया
इसके बाद बहादुरशाह हुमायूं से युद्ध के लिए गया और मंदसौर के पास मुगल सेना से हुए युद्ध में हार गया उसकी हार की खबर सुनते ही चित्तौड़ के राजपूत सैनिकों ने चित्तौड़ पर हमला कर बहादुर शाह के सैनिकों को भगा दिया इसके बाद हुमायूं ने कर्णावती कि राखी की लाज को रखते हुए बहादुर को चित्तौड़ से मारकर भगा दिया इसके बाद उसने उनके पुत्रों को बूंदी से बुलवाया और चित्तौड़ का सिंहासन कर्णावती के बड़े पुत्र विक्रमादित्य के हवाले कर दिया रानी कर्णावती का इतिहास
भारतीय संस्कृति
हुमायूं भारतीय संस्कृति में भाई बहन के रिश्ते का महत्व तब से जानता था जब वह बुरे वक्त में अमरकोट के राजपूत शासक वीरशाल के यहां शरणागत था राणा वीर साल की पटरानी हुमायूं के प्रति अपने सहोदर भाई का भाव रखती थी
वह भाई तुल्य ही आदर करती थी हुमायूं के पुत्र अकबर का जन्म भी अमरकोट में शरणागत रहते हुए हुआ था इसलिए उसने कोशिश की कि कर्णावती की राखी का मान हर हाल में रखा जाए
रानी कर्णावती का इतिहास