राजपूत खेत सिंह का जीवन परिच, महाराजा खेत सिंह का जन्म, महाराजा खेत सिंह का स्वयंवर, पृथ्वीराज चौहान की सहायता , महाराजा खेत सिंह का निधन
राजपूत खेत सिंह का जीवन परिच
महाराजा खेत सिंह बहुत ही पराक्रमी थे महोबा का युद्ध पृथ्वीराज चौहान और खेत सिंह की साझेदारी में लड़ा गया इस युद्ध में उदल मारे गए और आल्हा रण छोड़कर कहीं चले गए थे कंगारू का शासन काल में बुंदेलखंड का नाम “जिझौतिखण्ड” था जब महाराजा पृथ्वीराज चौहान ने सिरसागढ़ पर आक्रमण किया था
उस समय इस युद्ध के सेनापति महाराजा खेत सिंह खंगार थे यह युद्ध उन्हीं के नेतृत्व में हुआ था इसलिए सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने विजय के बाद यह राज्य महाराजा खेत सिंह खंगार को सौंप दिया और उनका राज्याभिषेक कर उन्हें यहां का राजा घोषित कर दिया था
महाराजा खेत सिंह का जन्म
महाराजा खेत सिंह एक हिंदू क्षत्रिय राजा थे इनका जन्म गुजरात राज्य के जूनागढ़ के कटाव द्वितीय के परिवार में 27 दिसंबर 1140 ईस्वी में हुआ था इनकी माता का नाम “किशोर कुंवर बाई” था महाराजा पृथ्वी चौहान अपनी युवावस्था में गिरनार के जंगल में शिकार खेलने जाया करते थे एक बार जब वह आखेट में चक्कर में घूम रहे थे तभी उनकी नजर एक युवक पर पड़ी जो जंगल के राजा शेर से कुश्ती लड़ रहा था
यह जंग काफी देर तक चलती रही और पृथ्वीराज चौहान इस दृश्य को देखकर हैरान रह गए कुछ ही देर में खेत सिंह ने उस शेर को मौत के घाट उतार दिया यह जन समाप्त होने के बाद पृथ्वीराज चौहान खेत सिंह के पास गए और उनसे उनका परिचय पूछा तब खेत सिंह ने पहले महाराज पृथ्वीराज चौहान को अपना परिचय देने के लिए कहा
तब महाराज पृथ्वीराज चौहान ने अपना परिचय दिया और कहा कि मैं दिल्ली का प्रशासक हूं यह बात सुनते ही खेत सिंह खंगार महाराज पृथ्वीराज चौहान के सामने नतमस्तक हो गए इसके बाद खेत सिंह ने अपना परिचय दिया और कहा कि मेरे पिता राजा उदल जी खंगार थे उन्हें यादव वंशी राजाओं ने धोखे से मार डाला और सत्ता छीन ली हमारा परिवार छिन्न-भिन्न हो गया
अधिकांश लोग प्रदेश चले गए और मेरे पिता श्री रूढ़ देव खंगार परिवार सहित पास में रहते हैं और मेरा नाम खेता खंगार है यहां शिकार को आया तो वनराज ने हमला कर दिया था इसके बाद पृथ्वीराज ने उनके पिता से मिलने की इच्छा जाहिर की थी इसके बाद उनके पिता से मिलने के बाद पृथ्वीराज चौहान ने उनके पिता से कहा कि मैं आपके जेष्ठ पुत्र खेत सिंह खंगार को मांगता हूं मुझे इनके जैसे योद्धा की जरूरत है क्योंकि हमारी मातृभूमि की रक्षा के लिए ऐसे शूरवीर का होना बहुत ही आवश्यक है इसके बाद खेत सिंह के पराक्रम को देखकर पृथ्वीराज चौहान ने खेत सिंह खंगार को अपने दरबार में सेनापति के रूप में नियुक्त किया
महाराजा खेत सिंह का स्वयंवर
बलवान और वीर पराक्रमी सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने सबसे करीबी सामंतों में से होने के कारण उस समय के चर्चित राज्यों में से एक थे उस समय तारागढ़ के महाराज ने अपनी पुत्री का स्वयंवर रखा और उसमें सौराष्ट्र के सभी राजपूत राजाओं को आमंत्रित किया था उस सभा में महाराजा खेत सिंह भी पहुंचे और वहां पर एक शीला को अपनी 62 किलो की तलवार से एक बार में ही दो भागों में कर दिया और स्वयंवर जीत लिया था
महाराजा खेत सिंह के चार रानियां थी हाडा रानी तारावती, रानी आलनबेल, गहरवार रानी राजल दे, बघेल रानी तेजसी महाराजा खेत सिंह खंगार ने बाल्यावस्था 12 वर्ष की उम्र में एक गाय को बचाने में बिना किसी हथियार के खूंखार जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था महाराजा खेत सिंह खंगार मध्यकालीन भारत के ऐसे शासक थे जिन्होंने वर्तमान बुंदेलखंड में स्वतंत्र हिंदू राष्ट्र की घोषणा की थी गढ़कुंडार नरेश महाराजा खेत सिंह जी के शासनकाल में मुगल आक्रांता बुंदेलखंड की सीमाओं में घुसने से पहले कांपती थी
पृथ्वीराज चौहान की सहायता
दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने जब बुंदेलखंड पर आक्रमण किया था तब सम्राट पृथ्वीराज चौहान की सेना का नेतृत्व उनके मित्र खेत सिंह खंगार जी कर रहे थे सन 1182 ईस्वी में गढ़कुंडार पर विजय प्राप्त करने के बाद सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने गढ़कुंडार को अपने मित्र खेत सिंह खंगार को सौंप दिया था
1192 ईस्वी में जब दिल्ली पति सम्राट पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गौरी से पराजित हो गए और मोहम्मद गोरी उन्हें बंदी बनाकर गजनी ले गया और वहां उन्हें मार डाला तब महाराज खेत सिंह खंगार ने गढ़कुंडार को स्वतंत्र राज घोषित कर इसका विस्तार सुदूर बुंदेलखंड तक किया था महाराज खेत सिंह खंगार बहुत पराक्रमी बलवान और प्रजा पालक राजा थे
उनकी कई पीढ़ियों ने गढ़कुंडार पर राज किया था जिसमें राजा खूब सिंह, राजा मानसिंह जिनकी पुत्री राजकुमारी की “केसर खंगार” थी जिन्होंने हजारों खंगार क्षत्रियों के साथ जोहर किया था जो बुंदेलखंड का प्रथम जोहार था खंगार राजाओ द्वारा संचालित कुछ परंपराएं बुंदेलखंड में आज भी प्रचलित है जैसा कि यह ‘रकाश’यह एक परंपरा होती है जब कोई पुत्र जन्म लेता है तो उसे गांव से बाहर ले जाते हैं एवं उसके कमर में काला धागा बांध देते हैं क्योंकि अब धागे का चलन है इसलिए
अब धागा बांधा जाता है परंतु जब यह परंपरा बनी थी उस समय छोटी तलवार उसकी कमर में बांधी जाती थी और तभी से उन्हें अपनी राज्य की सीमा को सुरक्षित करने की जिम्मेदारी सौंप दी जाती थी इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य कुमारों में बचपन से ही राज भक्ति जागृत करना और हमेशा अपनी मातृभूमि को खुद से ऊपर रखने की भावना डालने के लिए की जाती थी
प्रसिद्ध खंगोरिया का जेवर राजवंश की देन है इस आभूषण को विवाहित स्त्रियां अपने गले में धारण करती थी यह आभूषण सोने का बना हुआ था जिस पर तलवारे बनी रहती थी जिसका मुख्य उद्देश होता था जब भी खंगार कुल में बेटा या बेटी जन्म लेती थी और जब उनकी मां उन्हें स्तनपान कराती थी तो यह बच्चे उस आभूषण पर बनी तलवारों को देखते थे जो उनमें बाल्यकाल से ही वीरता के गुण निर्मित करते थे
बुंदेलखंड पर जब रवानी वंश की शाखा के चंदेल क्षत्रिय राजाओं का राज था तब उनकी राजधानी महुआ हुआ करती थी और उनकी हिंडोरिया लोधी राजाओं सेघनिष्ठ मित्रता थी खंगार क्षत्रिय राजाओं की राजधानी गढ़कुंडार थी और जब बुंदेला राजपूतो का आगमन होता है तब बुंदेला राजपूत राजाओं की पहली राजधानी गढ़कुंडार बनी थी जिसे उन्होंने खंगार क्षत्रियों से हल करके के जीता था क्योंकि उनकी रणभूमि में बुंदेला राजपूतों का खंगार क्षत्रियों से जीतना नामुमकिन था
क्योंकि खंगार क्षत्रियों की सेना विशाल मजबूत और शक्तिशाली थी फिर बुंदेला राजपूत राजा रूद्र देव सिंह ने अपनी राजधानी को गढ़कुंडार से ओरछा स्थानांतरित लिया था खंगार राजवंश सौराष्ट्र की चूड़ासामा यदुवंशि क्षत्रियों से निकली हुई है एक शाखा है जिन्होंने बुंदेलखंड के गढ़कुंडार पर 165 वर्षों तक राज किया था
महाराजा खेत सिंह का निधन
महाराजा खेत सिंह की मृत्यु 20 अगस्त 1212ईस्वी में हुई थी इनके बाद इनके पुत्र राजा नंदपाल, छत्रसाल, खूब सिंह एवं मान सिंह ने बुंदेलखंड पर शासन किया था
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