राजमाता जिया रानी का इतिहास ,मायापुर पर हमला ,जिया रानी का जन्म कब हुआ, जिया रानी की मृत्यु कब हुई, जिया रानी के माता पिता का नाम
राजमाता जिया रानी का इतिहास
जिया रानी मायापुर के राजा “अमरदेव पुंडीर” की पुत्री थी इनका बचपन का नाम “मौला देवी” था यह बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र की विद्या में निपुण थी उस समय हरिद्वार को ही मायापुर कहा जाता था जब अफ़गानों ने 1384 में दिल्ली से मायापुर की ओर कूच किया हरिद्वार सहारनपुर के राजा अमरदेव पुंडीर ने कुमाऊं के राजा प्रीतम देव के पास अपना एक दूत भेजा और उन्होंने मुगलों से लड़ने के लिए सैन्य सहायता मांगी थी
इसके बाद प्रीतम देव ने सहारनपुर के राजा अमरदेव पुंडीर को सहायता देने के लिए अपने भतीजा ब्रह्मदेव को उनके पास भेजा इसके बाद दोनों सेनाओं के सामर्थ्य से मुगल सेना युद्ध के मैदान में भाग खड़ी हुई और उनकी इस युद्ध में पराजय हुई इस पराजय के बाद मुगल सेना मैदान छोड़कर वापस दिल्ली की ओर भाग गई इसके बाद अमर देव पुंडीर ने अपनी पुत्री मौला देवी का विवाह कुमाऊं के राजा प्रीतम देव से करने का निश्चय किया
इसके बाद अमरदेव पुंडीर ने शादी का प्रस्ताव प्रीतम देव के पास भेजा जिसे प्रीतम देव ने सम्मान सहित स्वीकार कर लिया मौला देवी प्रीतम देव की दूसरी रानी थी मौला रानी से 3 पुत्र प्राप्त हुए जिनका नाम धाम देव, दूल्हा देव और ब्रह्मदेव था
जिनमें ब्रह्मदेव को कई इतिहासकार प्रीतम देव की पहली रानी का पुत्र मानते है कुछ समय बाद प्रीतम देव की पहली पत्नी का देहांत हो गया इसी बीच मुगल सेना ने कुमाऊं के ऊपर आक्रमण कर दिया था
इसके बाद मौला देवी ने अपने पति प्रीतम देव से कहा कि मैं भी आपके साथ युद्ध में चलूंगी और आपका युद्ध में साथ दूंगी इस युद्ध में मौला देवी ने सेना का संचालन भी किया था मौला देवी का शस्त्र संचालन और वीरता देखकर सभी हैरान रह गए इस युद्ध में मुगलों की बुरी तरह से हार हुई थी और वह पीठ दिखाकर इस युद्ध से भाग खड़े हुए इस युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद मौला देवी को पिथौरागढ़ में सम्मान सहित “राजमाता का दर्जा” दिया गया था
उस क्षेत्र में माता को जिया कहा जाता था इसी कारण से उनका नाम राजमाता जिया रानी पड़ गया कुछ समय बाद विपरीत परिस्थितियों के कारण मौला देवी और प्रीतम देव के बीच का संबंध खराब होने लगा था
इसके बाद मौला देवी अपने दो पुत्रों के साथ राजकाज छोड़कर काठगोदाम के पास तराई क्षेत्र के गोलाघाट चली गई जहां पर उन्होंने एक खूबसूरत रानी बाग का निर्माण किया यहां पर जिया रानी ने 12 साल तक निवास किया था राजमाता जिया रानी का इतिहास
मायापुर पर हमला
जब 1398 में मध्य एशिया के शासक तैमूर भारत के कई राज्यों में हमला करता हुआ मायापुर पहुंचा उस समय वहां अमरदेव पुंडीर के पुत्र राजदेव शासन कर रहे थे उन्होंने बड़ी वीरता से तैमूर का सामना किया परंतु मुगलों की सेना इतनी बड़ी थी
कि उन्हें हार का सामना करना पड़ा क्योंकि तैमूर के पास राजदेव से 3 गुना अधिक सैन्य शक्ति थी पूरे हरिद्वार और सहारनपुर में नरसंहार हुआ था इसके बाद तैमूर ने अपनी सेना की कुछ टुकड़ियों को अलग-अलग राज्यों में हमला करने के लिए भेजा था इनमें एक टुकड़ी काठगोदाम की ओर बढ़ रही थी
जब यह सूचना राजमाता जिया रानी को मिली तो उन्होंने इस सेना का सामना करने के लिए आसपास के राजपूतों के साथ गठन किया इसके बाद तैमूर की सेना की टुकड़ी और जिया रानी के बीच रानी बाग में भयंकर युद्ध हुआ
जिसमें मुस्लिम सेना टुकड़ी की हार हुई इस जीत के बाद जिया रानी के सैनिक खुश हो गए और वह मस्ती से झूमने लगे तभी वहां तैमूर की दूसरी सेना आ पहुंची अचानक हुए आक्रमण के कारण जिया रानी की इस युद्ध में हार हुई इसके बाद जिया रानी मुगलों से बचने के लिए एक गुफा में जाकर छिप गई
जब रानी जिया के पति प्रीतम देव को इस हमले की सूचना मिली तब वह स्वयं सेना लेकर काठगोदाम आ पहुंचे और मुस्लिम सेना को वहां से मार भगाया इसके बाद प्रीतम देव अपनी पत्नी जिया रानी को पिथौरागढ़ ले आए कुछ समय बाद प्रीतम देव की मृत्यु हो जाती है
और उनके स्थान पर उनके बेटे धाम देव को राजगद्दी पर बिठाया जाता है उस समय जिया रानी अपने पुत्र की संरक्षिका बनकर उसका साथ देती है जिया रानी राजकाज के सभी निर्णय स्वयं लेती थी इसके बाद मुस्लिम सेना के जासूसों ने मुस्लिम सेनापति इब्राहिम को सारी खबर पहुंचा दी कुछ समय बाद मुस्लिम सेना ने जिया रानी को घेर लिया और अचानक उन पर आक्रमण कर दिया
अचानक हुए हमले के कारण जिया रानी को संभलने का मौका भी नहीं मिला परंतु फिर भी वह अंतिम समय तक युद्ध करती रही इस युद्ध में जिया रानी के बहुत से सैनिक मारे जा चुके थे वह अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए इस युद्ध से अपने घोड़े के साथ गोला नदी की ओर भाग गई वहां पहुंचकर जिया रानी नदी के बीच जाकर खड़ी हो गई जिया रानी भगवान शिव की परम भगत थी
वहां पर खड़ी होकर उन्होंने अपने आराध्य देव की आराधना की और गोला नदी के बीच वह पत्थरों में ही समा गई इसके बाद मुस्लिम सेना ने उन्हें बहुत ही ढूंढा परंतु है कहीं पर भी नहीं मिली माना जाता है कि भगवान शिव के वरदान से उन्होंने अपने आप को अपने ही आंचल में छुपा लिया था माना जाता है माना जाता है कि वह भगवान शिव की भक्ति करने के लिए जिस अवस्था में बैठी थी
वह उसी अवस्था में पत्थर बन गई थी काठगोदाम के बीच गोला नदी के बीचो-बीच आज भी एक ऐसा पत्थर मौजूद है जिसका आकार एक घागरे के समान दिखाई देता है इस शिला के रंग-बिरंगे पत्थर देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने नदी के बीचो-बीच रंगबिरंगा घाघरा बिछा दिया हो यह पत्थर आज भी जिया रानी का स्मृति चिन्ह माना जाता है राजमाता जिया रानी का इतिहास
जिया रानी की गुफा
जिया रानी को काठगोदाम के बीच गोला नदी के बीच का स्थान बहुत ही प्रिय था उन्होंने यहीं पर अपना बाग लगाया था और अपने जीवन की आखिरी सांस ली थी जिया रानी अपने अस्तित्व की रक्षा करते हुए सदा के लिए चली गई
तब से जिया रानी की स्मृति में यह स्थान रानी बाग के नाम से विख्यात हुआ कुमाऊ के प्रवेश द्वार काठगोदाम स्थित रानी बाग में जिया रानी की गुफा का ऐतिहासिक महत्व है कुमाऊं क्षेत्र के साथ संपूर्ण उत्तराखंड के क्षेत्रीय राजपूत आज भी भारतीय वीरांगना नारी जिया रानी पर बेहद गर्व करते हैं
राजमाता जिया रानी का इतिहास