राजिम माता का इतिहास, राजीव माता की भक्ति, राजिम देवी का मंदिर, राजिम माता का मंदिर, राजिम क्यों प्रसिद्ध है, राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग क्यों कहते हैं
राजिम माता का इतिहास
भारत के छत्तीसगढ़ राज्य का राज्य क्षेत्र रायपुर जिले में महानदी के तट पर स्थित है यहां राजीव लोचन भगवान रामचंद्र का प्राचीन मंदिर है राजिम का प्राचीन नाम पदम क्षेत्र था पदम पुराण के पाताल खंड के अनुसार भगवान राम का इस स्थान से संबंध बताया गया है राजिम में महानदी और पेरी नामक नदियों का संगम है
संगम स्थल पर “कुलेश्वर” महादेव का प्राचीन मंदिर है इस मंदिर का संबंध राजिम की भक्ति माता से है छत्तीसगढ़ राज्य के राजिम क्षेत्र राजीम माता के त्याग की कथा प्रचलित है और भगवान कुलेश्वर महादेव का आशीर्वाद क्षेत्र को प्राप्त है
7 जनवरी को राजिम माता की जयंती मनाई जाती है राजीव लोचन मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार कलचुरी राजा जगपाल देव के शिलालेख में माता का उल्लेख मिलता है 3 जनवरी 1145 को यह शिलालेख लगाया गया था
राजीव माता की भक्ति
महानदी के श्री संगम पर स्थित राजिम एक महान और प्राचीन तीर्थ है यहां के मुख्य मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा राजीव लोचन के नाम से प्रसिद्ध है इस नगर के राजिम नामकरण का भी एक इतिहास है इस नगर में राजिम नामक एक गरीब धार्मिक स्वभाव की घरेलू महिला थी वह तेल बेच कर अपना और परिवार का पालन पोषण करती थी
एक दिन जब वह तेल बेचने जा रही थी तो भूमि में गड्ढे एक पत्थर में उसका पैर टकरा गया सिर पर रखा तेल का पात्र गिरने से तेल बह गया उसे डर था कि खाली हाथ लौटने पर उसे अपने पति और सास से बुरी तरह प्रताड़ित होना पड़ेगा इसके बाद वह भगवान से प्रार्थना करने लगी कि सास और पति के प्रकोप और दंड से उसकी रक्षा करें तभी उसने देखा कि पात्र फिर तेल से लबालब भरा हुआ है इसके बाद उस स्थान को सावधानीपूर्वक खोदकर पत्थर को भूमि से ऊपर निकाला
यह देखकर आश्चर्य में पड़ गई जिसे वह पत्थर समझ रही थी वह भगवान विष्णु की चतुर्भुजी प्रतिमा थी उसको समझ में आ गया कि यह जो चमत्कार मेरे साथ हुआ है कि तेल गिरने के बाद फिर के बर्तन में आ गया यह हो ना हो भगवान की कृपा है वह बड़ी श्रद्धा के साथ भगवान की प्रतिमा को घर ले गई इसके बाद प्रतिमा को शुद्ध जल से नहला कर एक कमरे में उसने प्रतिष्ठित कर दिया और रोज उसकी पूजा उपासना करने लग गई यही उसका नित्यक्रम हो गया
1 दिन उस समय के तत्कालीन शासक थे विलासतुंग को स्वप्न में आदेश हुआ कि राजिम में भगवान विष्णु का भव्य मंदिर निर्माण करवाए अब स्वपन के आदेश अनुसार राजा ने इसको सत्य मानते हुए और पंडितों से सलाह विमर्श करके छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से चुने हुए कलाकारों को आमंत्रित किया और शुभ मुहूर्त में मंदिर पुरा बनकर के तैयार हो गया था अब लोगों ने उन्हें बताया कि राजिम तेली के घर में एक मूर्ति पहले से विराजमान है
जब से वह सजीव मूर्ति उनके घर में प्रतिष्ठित हुई है तब से वह लोग सुखी और संपन्न रहने लगे हैं तो राजा को भी लगा कि सचमुच में इस मंदिर के लायक वही मूर्ति हो सकती हैं जो पहले से ही सजीव है, उसका प्रभाव प्रत्यक्ष है इसके बाद राजा स्वर्ण मुद्राओं का थाल भरकर राजिम के पास गया और उससे वह मूर्ति मांगी तब राजिम ने उस मूर्ति का सौदा करने से इनकार कर दिया इसके बाद राजा ने राजिम की चुप्पी को स्वीकृति समझ कर अपने सैनिकों को मूर्ति उठाने का आदेश दिया परंतु उनके भरपूर प्रयास के बाद भी वह मूर्ति टस से मस नहीं हुई
इसके बाद राजा ने हाथ जोड़कर माता राजिम को प्रतिमा ले जाने का उपाय पूछा फिर राजिम ने कहा यदि आप में श्रद्धा और भक्ति पूर्वक संपूर्ण समर्पण की भावना है तभी यह प्रतिमा आपके साथ मंदिर में जा सकती है और साथ ही राजिम ने यह भी कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए हो सके तो भगवान के इस तीर्थ के साथ मेरा नाम भी कहीं जुड़ जाए तो अच्छा हो उनकी इच्छा के अनुरूप राजा ने इस तीर्थ नगर का नाम “राजिम प्रसिद्ध” किया भगवान विष्णु की प्रतिमा राजीव लोचन के नाम से विख्यात हुई
राजिम देवी का मंदिर
राजिम देवी की स्मृति में एक मंदिर का भी निर्माण किया गया है जिसे लोग तेलीन के नाम से जानते हैं राजिम माता की इस कथा का उल्लेख रायपुर जिला गजेटियर 1909 में भी हुआ है राजिम में स्थित तेलीन मंदिर इस लोक अनुश्रुति के मूल में संभावित ऐतिहासिकता को प्रमाणित करने वाला साक्ष्य है
इस मंदिर के गर्भ गृह में पूजार्थ एक शिलापट्ट ऊंची वेदी पर पृष्ठ भित्ति से सटाकर रखा हुआ है इसके सम्मुख पटल के ऊपर भाग पर खुली हथेली, सूर्य, चंद्र, पूर्ण कुंभ की आकृतियां उत्कीर्ण है नीचे एक पुरुष और एक स्त्री की सम्मुख अभिमुख पद्मासन में बैठी हाथ जोड़े प्रार्थना की मुद्रा में प्रतिमाएं अंकित है इनके दोनों पक्षों में एक-एक परिचारिका की मूर्ति है
शीला पट्टी के मध्य भाग में जुए में जूते हुए बैल कोल्हू का रूपांकन है यह शीला पट सती स्तंभ है इसे आधार मानकर रायबहादुर हीरालाल ने व्यक्त किया है कि वह अपने आराध्या भगवान ‘राजीवलोचन’ के सामने सती हुई थी रायबहादुर हीरालाल ने जूते बैल से युक्त कोहलू को राजिम तैलिन की वंश परंपरा से चले आने वाले व्यवसाय की प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति की है
राजिम माता का मंदिर
भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल में दंडकारण्य जाने के लिए इसी मार्ग का अनुसरण किया था राजिम से कुछ ही दूरी पर चंपारण जो महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्म स्थान है जो इसके पुण्य क्षेत्र होने के प्रमाण हैं
प्राचीन काल से यहां लोमस ऋषि आश्रम ,धोम्मय ऋषि आश्रम तथा कुलेश्वर महादेव मंदिर स्थित है प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा से राजिम में 1 माह का मेला भरता है महानदी पैरी और संदूर नदियों का संगम होने के कारण महाभारत काल से इसे धार्मिक महत्व प्राप्त रहा है महाभारत में उल्लेखित बद्री तीर्थ की समता राजिम तीर्थ से की है प्राचीन ग्रंथों में इसे “पदम” क्षेत्र भी कहा गया है
| राजिम माता का इतिहास |