राजा तीमनपाल का इतिहास, राजा तिमनपाल का जन्म , पारस पत्थर का दान , तिमनगढ़ दुर्ग की स्थापना , राजा तिमनपाल का विवाह
राजा तिमनपाल का जन्म
महाराजा विजयपाल की मृत्यु के बाद उसके 10 पुत्रों में तिमनपाल सबसे बड़े थे अतः तिमनपाल अपने पिता की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी हुए उसने विजय मंदिर गढ़ पर आक्रमण करके अबू बकर को प्राप्त किया तथा अपने पिता का खोया हुआ दुर्ग फिर से प्राप्त किया तिमनपाल तथा उसके वंशज विजय मंदिर गढ़ पर अधिक समय तक अधिकार नहीं कर सके महमूद गोरी ने इस दुर्ग को गजनवियो से छीन लिया था
महमूद गौरी के उत्तराधिकारी कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस किले पर अधिकार किया फिरोजशाह तुगलक के शासन काल में भी यह दुर्ग दिल्ली के मुसलमान शासकों के अधिकार में रहा दक्षिणी विजय के बाद फिरोजशाह तुगलक इस किले में कई माह तक रुका था यह किला लोदी वंश के शासन काल में सिकंदर लोदी के अधिकार में रहा था बाद में मुगलों ने इस पर अधिकार कर लिया वर्तमान में यह दुर्ग “बयाना” के नाम से प्रसिद्ध है विजय मंदिर दुर्ग हाथ से निकल जाने के बाद राजा तिमनपाल लगभग 2 साल तक वेश बदलकर जंगलों में भटकता रहा
राजाजी तिमनपाल एक दिन डांग क्षेत्र में सूअर का पीछा करते हुए एक पहाड़ी की गुफा में पहुंचे थोड़ी देर बाद गुफा के द्वार पर इंतजार करने के बाद गुफा से एक साधु निकला और तिमनपाल से कहा कि तुम हमारी गाय के पीछे क्यों पड़े हो तिमनपाल को समझते देर नहीं लगी कि यह कोई चमत्कारी पुरुष है उस साधु का नाम “मेंडकी” दास था
उसने साधु से क्षमा मांगते हुए अपनी बर्बादी की कहानी सुनाई और सहायता मांगी तिमनपाल के चेहरे को देखकर साधु को राजा पर रहम आ गया और उसने आशीर्वाद देते हुए पारस पत्थर भी दिया पारस पत्थर एक विशेष पत्थर होता है जो किसी लोहे को छूकर उसे सोने में बदल देता है साधु मेंडकी दास ने तिमनपाल को आशीर्वाद के साथ अपना ‘भाला’ देते हुए कहा कि अपने घोड़े पर सवार होकर सीधी दिशा में चले जाओ और जहां तुम्हारा घोड़ा रुक जाए वहां ‘भाला गाड़ देना
वहां अघात जल की प्राप्ति होगी इसके उपरांत पारस पत्थर की सहायता से उसी जल के किनारे अपने नवीन राज्य की नींव डालना इसके बाद तिमनपाल ने ऐसा ही किया था उसने ‘भाला गाडा और वहां जल स्त्रोत उमड़ पड़ा उस स्थान को सागर झील का नाम दिया गया इसके बाद सागर झील के किनारे तिमनपाल ने किला बनवाया राजा के नाम पर ही इस दुर्ग का नाम तिमनगढ़ रखा गया था कभी इस दुर्ग को त्रिपुरा नगरी के नाम से भी जाना जाता था | राजा तीमनपाल का इतिहास |
पारस पत्थर का दान
स्थानीय लोक कथाओं के अनुसार एक बार राजा तिमनपाल किसी बात से अपने पुरोहित पर बहुत खुश हुआ और राजा ने पारस पत्थर को कपड़े में लपेटकर उस पुरोहित को दान कर दिया
पुरोहित वह दान लेकर बहुत खुश हुआ और खुशी से किले से बाहर आया जब उसने सागर किनारे खड़े होकर बड़ी खुशी के साथ लिपटे दान को देखने के लिए पोटली खोली तो उसमें एक पत्थर का टुकड़ा पाया और पत्थर को देखकर बहुत क्रोधित हुआ उसने गुस्सा खाते हुए वह पत्थर सागर नामक झील में फेंक दिया
राजा को जब इसका पता चला तब उन्हें बड़ी वेदना हुई और उन्होंने पारस पत्थर जैसी अमूल्य नीति की तलाश हेतू तुरंत हाथियों को लोहे की जंजीरों से बांधकर सागर जलाशय उतारा पारस पत्थर को तलाशने में सफलता तो नहीं मिली पर कहा जाता है कि हाथियों से बंधी जो लोहे की जंजीरे थी वह पारस पत्थर को छूने से सोने में बदल गई थी स्थानीय लोगों को भरोसा है कि राजा का वह पारस पत्थर आज भी जलाशय में मौजूद है | राजा तीमनपाल का इतिहास |
तिमनगढ़ दुर्ग की स्थापना
तिमनगढ़ दुर्ग की स्थापना तिमनपाल ने 1048 ईस्वी में विजय मंदिर गढ़ से 22 किलोमीटर दूर त्रिभुवन पहाड़ी पर तिमनगढ़ नामक दुर्ग बनवाया इस दुर्ग को तैयार करने में लगभग 10 साल का समय लगा था उसने तिमनगढ़ को अपनी राजधानी घोषित कर दिया उसने तिमनगढ़ एवं चंबल नदी के आसपास के क्षेत्रों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया तथा शीघ्र ही निकटवर्ती मुसलमानी सरदारों के क्षेत्रों पर भी अधिकार करने लगा
उसने वर्तमान अलवर का आधा भाग बयाना, कामा, करौली, मथुरा, महावन ,गुड़गांव, आगरा एवं ग्वालियर के आसपास का क्षेत्र जीत लिया तिमनगढ़ से प्राप्त एक शिलालेख में राजा तिमनपाल तथा विक्रमी संवत 1142 अर्थात 1085 अंकित है अर्थात इस तिथि पर राजा तिमनपाल तिमनगढ़ पर शासन कर रहा था तिमनपाल ने अपने राज्य में अच्छी शासन व्यवस्था लागू की थी
उसने दुर्ग के अंदर बाजार, मंदिर, तालाब, ननंद भोजाई कुआं,नटनी की छतरी,तेल कुंड एवं सड़कों आदि का निर्माण करवाया था वह एक धर्म प्रिय शासक था और हिंदू धर्म का रक्षक था हिंदू धर्म कथा के अनुसार उन्होंने “अश्वमेध यज्ञ” किया जिसमें उन्होंने ब्राह्मणों,निर्धनों एवं असहयो को भूमि, धन तथा पशु दान किए थे वह एक न्याय प्रिय शासक था तथा विवेकपूर्ण ढंग से न्याय करता था वह वैष्णो धर्म का उपासक था तथा जैन धर्म के प्रति भी मान रखता था तथा जैनियों के कहने से वन्यजीवों के शिकार पर प्रतिबंध भी लगाया था | राजा तीमनपाल का इतिहास |
राजा तिमनपाल का विवाह
राजा तिमानपाल ने 20 विवाह किए थे उनके 12 पुत्र थे उन्होंने 1093 से 1159 इसवी तक लगभग 66 वर्ष तक राज किया था उसने महाराजाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की थी
यह समय परम प्रतापी प्रतिहारों के पतन का काल था उस काल में जो राजा किसी प्रतिहार राजा को परास्त कर देता था वह प्रतिहार शासक की उपाधि धारण करने लगता था इसलिए अनुमान लगाया जाता है तिमानपाल ने कि किसी प्रतिहार राजा को परास्त कर के महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी तिमनगढ़ दुर्ग वर्तमानघने जंगलों के बीच निर्जन अवस्था में आज भी खड़ा है
इस दुर्ग में मूर्ति तथा जानवरों के अंग तस्कर के द्वारा मुख्य केंद्र बनाने के कारण चर्चा में रहा है यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि आज भी इस किले में स्वर्ण वस्तुएं अष्टधातु की मूर्तियां, मिट्टी की विशाल और छोटी मूर्तियों के भंडार इस किले के तहखानो में छुपाए गए हैं | राजा तीमनपाल का इतिहास |