राजा मोरध्वज का इतिहास , आरंग नगरी, ताम्रध्वज की परीक्षा , राजा मोरध्वज की परीक्षा , राजा मोरध्वज द्वारा दान
राजा मोरध्वज का इतिहास
आरंग नगरी
राजा मोरध्वज श्रीकृष्ण के परम भक्तों में से एक थे कृष्ण भी मोरध्वज को अपना परम भक्त मानते थे मोरध्वज कौशल राज्य की राजधानी आरंग थी मोरध्वज की कहानी पुराणों में मिलती है जिसे कृष्ण ने आदेश दिया था कि वह अपने बेटे ताम्रध्वज को चीर कर उसका मांस शेर के सामने पेश करें आरे से चीरने की कहानी के कारण ही इस नगरी का नाम आरंग पड़ा था राजा मोरध्वज आरंग देश के राजा थे
यह आरंग नगरी छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है राजा मोरध्वज की कहानी महाभारत काल से शुरू होती है जब पांडवों द्वारा श्री कृष्ण की सहायता से महाभारत का युद्ध जीत लिया गया और युद्ध में विजय होने के बाद श्री कृष्ण के कहने पर पांडवों ने अश्वमेघ यज्ञ किया यह अश्वमेध यज्ञ संपन्न होने के बाद पांडवों द्वारा एक घोड़ा छोड़ा गया
अश्वमेध यज्ञ के अनुसार छोड़ा गया घोड़ा जहां पर भी जाता है वहां तक उस राजा का राज हो जाता है यदि कोई राजा अश्वमेध यज्ञ की दास्तां को स्वीकार नहीं करता है तो उन्हें युद्ध करना पड़ता है इसके बाद वह घोड़ा निकल पड़ता है पांडवा को विश्व विजेता बनाने के लिए परंतु कोई भी राजा उस घोड़े को रोकने की कोशिश नहीं करता है इस प्रकार घोड़ा आगे बढ़ता रहा और लोग पांडवों की दास्तां स्वीकार करते रहे
कई राज्यों को पार करने के बाद वह घोड़ा रतनपुर राज्य की सीमा में जा पहुंचा उस समय रतनपुर राज्य के राजा मोरध्वज क्या करते थे राजा मोरध्वज बहुत ही धर्मात्मा, दानवीर और सहनशील व्यक्ति थे | राजा मोरध्वज का इतिहास |
ताम्रध्वज की परीक्षा
राजा मोरध्वज भगवान विष्णु के परम भक्त थे राजा मोरध्वज के एक ही पुत्र था जिसका नाम था ताम्रध्वज इनका पुत्र बचपन से ही विलक्षण बालक था वह अपनी अल्पायु में ही युद्ध कला में निपुण हो चुका था जब वह घोड़ा रतनपुर राज्य में आया तब ताम्रध्वज ने उस घोड़े को रोक लिया जब अर्जुन को पता चला कि उनके घोड़े को एक बालक ने रोक लिया है तब अर्जुन सेना के साथ वहां पहुंचे
इसके बाद अर्जुन ने ताम्रध्वज से कहा कि है बालक तुमने जिस घोड़े को रोका है वह घोड़ा चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर के अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा है इसकी रक्षा का जिम्मेदारी मेरे पर है अर्जुन ने उस बालक से कहा कि जिस राज्य में भी घोड़े ने अपने पैर रखे हैं उसी राज्य ने युधिष्ठिर की दास्तां को स्वीकार किया है इसके बाद अर्जुन ने कहा कि मैं तुम्हें बच्चा समझ कर माफ करता हूं और तुम इस घोड़े को छोड़ दो इसके बाद ताम्रध्वज ने कहा मैं सम्राट मोरध्वज का पुत्र हूं और मेरी माता विद्याधरनी है तुम्हारी ही तरह मैं भी एक क्षत्रिय पुत्र हूं
क्षत्रिय कभी किसी का दास नहीं होता है इसलिए मैं इस घोड़े को नहीं छोड़ने वाला इसके बाद अर्जुन ताम्रध्वज से युद्ध करने लगते हैं और ताम्रध्वज अपने एक ही तीर से अर्जुन को मूर्छित कर देते हैं इसके बाद ताम्रध्वज उस यज्ञ के घोड़े को लेकर अपने नगर आ गए वहां पर उनका भव्य स्वागत किया गया जब अर्जुन को होश आया तब उन्होंने देखा कि उनके सामने भगवान श्री कृष्ण बैठे हुए थे
इसके बाद अर्जुन ने श्री कृष्ण से कहा कि यह सब आपकी माया है वरना एक बालक मुझसे युद्ध में नहीं जीत सकता था इस पर भगवान श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा कि अर्जुन तुम इस भ्रम में हो कि इस धरती पर तुम से बड़ा कोई योद्धा और तुम से बड़ा कोई मेरा भगत नहीं है तुम से बड़ा योद्धा तुमने अभी देख ही लिया है और तुमसे बड़ा मेरा भगत भी है | राजा मोरध्वज का इतिहास |
राजा मोरध्वज की परीक्षा
इसके बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि यदि तुम्हें तुमसे बड़ा दानी और भगत देखना है तो वह बताओ इसके बाद अर्जुन ने कहा कि मैं अवश्य ही उस भगत के दर्शन करना चाहूंगा जो मुझसे भी बड़ा आपका भगत है इसके बाद श्री कृष्ण ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और अर्जुन को भी ब्राह्मण का वेश धारण करवाया और यमराज से आह्वान किया कि वह शेर का रूप धारण करें इसके बाद श्री कृष्ण, अर्जुन और यमराज राजा मोरध्वज की परीक्षा लेने के लिए निकल पड़े
इसके बाद श्री कृष्ण, अर्जुन और शेर के रूप में यमराज को लेकर राजा मोरध्वज के महल में गए और वहां उनके महल के बाहर खड़े हो गए जब राजा मोरध्वज को पता चला कि दो साधु उनके राज दरबार में आए हैं तो वह उनके स्वागत के लिए दौड़े चले गए इसके बाद राजा मोरध्वज ने उन दोनों साधुओं को प्रणाम किया और उनका आने का प्रयोजन पूछा ब्राह्मण रूप में श्री कृष्ण ने राजा मोरध्वज से कहा कि हे राजन हमने तुम्हारे दान की बहुत प्रशंसा सुनी है
आज तक कोई भी याचक तुम्हारे दरबार से खाली हाथ नहीं गया है इसके बाद ब्राह्मण रुपी श्री कृष्ण ने राजा मोरध्वज से कहा कि हम तीन हैं हम दोनों ने तो कंदमूल खाकर अपना पेट भर लिया है परंतु हमारे साथ जो शेर है वह अभी भूखा है यह केवल मनुष्य का मांस ही ग्रहण करता है तब राजा मोरध्वज ने श्री कृष्ण से कहा कि मैं अपने आपको आपके शेर के समक्ष पेश करता हूं यदि वह मेरा भक्षण करेंगे तो मैं खुद को धन्य समझूंगा
इसके बाद श्री कृष्ण ने कहा कि इस धरती पर स्वयं का दान करने वालों की कमी नहीं है यदि ऐसा होता तो हम तुम्हारे पास क्यों आते हैं इसके बाद राजा मोरध्वज ने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि अब आप ही बताइए कि मैं आपके शेर की भोजन की व्यवस्था कैसे करूं इसके बाद ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने राजा मोरध्वज से कहा कि हमें आपका पुत्र ताम्रध्वज चाहिए आपको अपनी पत्नी के साथ मिलकर आपके पुत्र को आरा से काटकर दो भागों में विभाजित करना होगा तभी हमारा शेर उसका भोजन कर सकेगा
उनकी बात को सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया इसके बाद राजा मोरध्वज ने कहा कि धन्य है मेरा पुत्र ताम्रध्वज जिसको आपने अपने शेर के आहार के लिए चुना है इसके बाद श्री कृष्ण ने कहा कि यदि पुत्र को काटते समय माता-पिता में से किसी की आंखों में आंसू आ गए तो सिंह राज उसका भोजन नहीं करेगा इसके बाद राजा मोरध्वज ने अपने पुत्र और पत्नी को समझाया और उनसे भी वचन ले लिया
राजा मोरध्वज की वचनबद्ध बातों को सुनकर अर्जुन आश्चर्यचकित रह गया इसके बाद राजा मोरध्वज ने आरा उठाया और अपनी पत्नी के साथ मिलकर अपने बेटे को दो भागों में चीर दिया ऐसा दृश्य देखकर अर्जुन वहीं पर मूर्छित हो गये | राजा मोरध्वज का इतिहास |
राजा मोरध्वज द्वारा दान
इस प्रकार राजकुमार ताम्रध्वज का शरीर दो भागों में बट गया इसके बाद राजा मोरध्वज ने कहा कि ब्राह्मण आप अपने शेर को भोजन करवाइए इसके बाद श्री कृष्ण के इशारा करने पर सिंह राज आगे बढ़े और ताम्रध्वज का दाहिना भाग खा लिया और ताम्रध्वज का बायां हिस्सा छोड़ दिया तभी ताम्रध्वज की माता की बाय आंख से आंसू टपक पड़ा
तब श्री कृष्ण ने ताम्रध्वज की माता से पूछा तब उन्होंने कहा कि आपने हमारे पुत्र के दाहिने हिस्से को तो स्वीकार कर लिया परंतु बाया हिस्सा छोड़ दिया इसी कारण से मेरी बाईं आंख से आंसू निकल पड़ा रानी की इस बात को सुनकर अर्जुन का सारा घमंड चूर-चूर हो गया इसके बाद ब्राह्मणों के लिए सात्विक भोजन की व्यवस्था की गई
भोजन करने के बाद श्री कृष्ण ने राजा मोरध्वज से कहा तुम्हारे पुत्र को बैकुंठ में स्थान मिलेगा ईश्वर तुम्हारी दान और भक्ति से अति प्रसन्न रहते हैं इसके बाद श्री कृष्ण ने रानी से अपने पुत्र को आवाज लगाने के लिए कहा तब रानी ने अपने पुत्र ताम्रध्वज को आवाज लगाई तब उन्हें दाएं तरफ अपना पुत्र जीवित खड़ा मिला अपने पुत्र को जीवित देखकर रानी ने उसे गले लगा लिया
इसके बाद राजा मोरध्वज ने ब्राह्मण रूपी कृष्ण से कहा कि महात्मा आप कौन हैं जिन्होंने मेरी इतनी कठिन परीक्षा ली है इसके बाद वह तीनों अपने असली रूप में आ गए और भगवान श्री कृष्ण को सामने देखकर राजा मोरध्वज उनके चरणों में गिर गए इस दृश्य को देखकर अर्जुन उस महादानी राजा के पैरों में गिर गया ऐसा दृश्य देखकर अर्जुन का घमंड दूर हो गया राजा मोरध्वज की नगरी रतनपुर बाद में आरंग के नाम से प्रसिद्ध हुई इस घटना के बाद आज भी यहां पर आरा उपयोग में नहीं लिया जाता है
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