राजा दक्ष प्रजापति का इतिहास , दक्ष प्रजापति के वंशज, दक्ष महादेव शिव से घृणा क्यों करते थे, दक्ष प्रजापति की उत्पत्ति कैसे हुई, दक्ष प्रजापति की कितनी पुत्रियां थी, दक्ष प्रजापति जयंती

राजा दक्ष प्रजापति का इतिहास 

दक्ष प्रजापति को अन्य प्रजापतियों के समान ब्रह्मा जी ने अपने मानस पुत्र के रूप में उत्पन्न किया दक्ष प्रजापति का विवाह स्वयंभू मनु के तृतीय कन्या प्रसूति के साथ हुआ था दक्ष राजाओं के देवता थे राजा दक्ष और प्रसूति की 16 पुत्रियां थी इन 16 पुत्रियों में सबसे छोटी पुत्री का नाम सती था

शिव पुराण के अनुसार दक्ष को जब बकरे का सिर प्राप्त हुआ था तब उन्होंने काशी जाकर अपनी पत्नी प्रसूति के साथ महामृत्युंजय का जप प्रस्तुत करते हुए किया जब माता पार्वती का विवाह शिवजी से संपन्न होता है तब उनकी बारात कैलाश जाती है उस समय माता पार्वती भगवान शिव से आग्रह करती है कि काशी चलिए फिर वह दोनों काशी जाते हैं

पार्वती वहां पर अपने पहले जन्म के माता पिता दक्ष प्रजापति और प्रसूति से मिलने की इच्छा प्रकट करते हैं वे उनसे मिलती है और आशीर्वाद प्राप्त करती है अपने पिछले जन्म के ऋण मुक्ति के लिए वह महादेव से प्रार्थना करती है कि मेरे माता-पिता को क्षमा कर दीजिए पार्वती की बात मान कर शिव जी प्रजापति दक्ष को उनका पूर्व मुख दे देते हैं

फिर प्रस्तुति माता पार्वती को शिव समेत दारुकवान जाने का आग्रह करती है फिर शिव-पार्वती के साथ दारू को बन जाते हैं फिर से वहां के साधुओं का घमंड तोड़ कर कैलाश जाते हैं दक्ष के प्रजापति बनने के बाद ब्रह्मा ने उसे एक काम सौंपा जिसके अंतर्गत शिव और शक्ति का मिलाप करवाना था

उस समय शिव तथा शक्ति दोनों अलग थे इसलिए ब्रह्मा जी ने दक्ष से कहा कि वे तब करके शक्ति माता को प्रसन्न करें तथा पुत्री रूप में प्राप्त करें तपस्या के उपरांत माता शक्ति ने दक्ष से कहा मैं आपकी पुत्री के रूप में जन्म लेकर भगवान शिव की पत्नी बनूंगी जब आपकी तपस्या का पुण्य क्षीण हो जाएगा और आपके द्वारा मेरा अनादर होगा तब मैं अपनी माया से जगत को वींमोहित करके अपने धाम चली जाऊंगी इस प्रकार सती के रूप में शक्ति का जन्म हुआ था

दक्ष प्रजापति के वंशज 

दक्ष प्रजापति परम पिता ब्रह्मा के पुत्र थे जो कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी प्रस्तुति और वीरणी प्रसूति से दक्ष की 24 पुत्रियां थी और वीरणी से 60 पुत्रियां थी इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां थी समस्त दैत्य, गंधर्व, अप्सराएं, पक्षी, पशु सब सृष्टि इन्हीं कन्याओं से उत्पन्न हुई दक्ष की यह सभी कन्या देवी, यक्षिणी, पिशाचिनी, आदि कहलाई उनकी पुत्रियों को ही किसी न किसी रूप में पूजा जाता है 

दक्ष महादेव शिव से घृणा क्यों करते थे

दक्ष और प्रसूति की 16 पुत्रियां थी इन 16 पुत्रियों में सबसे छोटी पुत्री का नाम सती था ब्रह्मा ने दक्ष से इस पुत्री का विवाह महादेव शिव के साथ करने के लिए कहा क्योंकि सती आदिशक्ति का रूप थी और शिव देवताओं में सर्वोच्चय दक्ष शिव की जीवन शैली को पसंद नहीं करते थे परंतु ब्रह्मा जी के आदेश का पालन करते हुए उन्होंने सती का विवाह शिव जी के साथ किया

एक बार ब्रह्मा जी ने एक यज्ञ का आयोजन किया जहां शिव और दक्ष दोनों ही आमंत्रित थे प्रजापति दक्ष के पधारने पर उनके मुख पर तेज को देख उनके सम्मान में शिव के अतिरिक्त सभी उपस्थित गण खड़े हुए शिव ने दक्ष को प्रणाम भी नहीं किया यह देख दक्ष को बहुत अपमानित अनुभव हुआ और उन्होंने शिवजी के लिए अपशब्द कहे

दक्ष ने कहा कि शिव को शिष्टाचार का कदापि ज्ञान नहीं है मैंने अपनी पुत्री का दान किया है इसका अर्थ यह नहीं कि यह मेरा सम्मान ना करें सभ्यता भूलकर इसने अपने अपवित्र होने की पुष्टि की है एक श्मशान में निवास करने वाला, भूतों को अपना मित्र बनाने वाला, नग्न रहने वाला ,अपनी देह पर भस्म लगाने वाला और हड्डियों की माला पहनने वाला यह शिव केवल नाम से ही पवित्र है और कर्मों से पूर्णतया अपवित्र अपनी पुत्री का विवाह इसके साथ करने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी

अपने पिता ब्रह्मा के आदेश का पालन करते हुए मैंने इसे अपना संबंधी बनाया है और उसने मेरे साथ यह व्यवहार किया ऐसा कहते हुए दक्ष ने शिव को श्राप दिया कि शिव जो देवताओं में सबसे निम्न है के अतिरिक्त सभी देवता इस यज्ञ में भाग लेंगे सभी उपस्थित गणों की प्रार्थना करने पर भी दक्ष ने क्रोध में आकर शिव को श्राप दिया और वहां से प्रस्थान कर गए

जब “नंदीश्वर” को दक्ष द्वारा शिव को दिए गए श्राप का ज्ञात हुआ तो उनके नेत्र क्रोध से लाल हो गए तब नंदीश्वर ने दक्ष समेत उन सभी ब्राह्मणों को श्राप जो शिव के लिए प्रयोग हुए कठोर शब्दों को सुन रहे थे श्राप दिया कि वह सभी आध्यात्मिक ज्ञान अर्थात इस ब्रह्मांड के सर्वोत्तम और सर्वोच्च ज्ञान से वंचित रहेंगे क्योंकि इन सभी ने दक्ष को महत्व देते हुए शिव का अपमान किया है

क्योंकि अहंकार के कारण दक्ष विष्णु गति को भूल चुके हैं और भौतिक जगत से आसक्त हो चुके हैं उन्हें बकरे का रूप प्राप्त होगा जो ब्राह्मण केवल शरीर के संरक्षण हेतु वैदिक ज्ञान प्राप्त करते हैं, अथवा तपस्या करते हैं, वह यह निर्णय लेने में भी असमर्थ होंगे कि किस प्रकार का भोजन ग्रहण करना चाहिए और किस प्रकार के वस्त्र धारण करना चाहिए

केवल शरीर की संतुष्टि के लिए एक द्वार से दूसरे द्वार भिक्षा मांगेंगे जिन लोगों ने शिव का अपमान किया है वे इस भौतिक जगत के कर्मों के परिणामों की इच्छा रखने वाले हैं, वे सभी जीवन और मृत्यु के चक्र में फंसे रहेंगे नंदीश्वर के कटु शब्दों को सुनकर “ऋषि भृगु” क्रोधित हो उठे और श्राप दिया कि वे सभी जो शिव का अनुसरण नहीं अपितु अनुकरण करते हुए उनके जैसा रूप धारण करते हैं जो मदिरापान और मांसाहारी भोजन ग्रहण करते हैं वे सभी बुद्धिहीन है मैं श्राप देता हूं कि यह सभी नास्तिकता के निम्नतम पदों को ग्रहण करेंगे यह सब देखकर शिव कुपित हो उठे और प्रांगण से प्रस्थान कर गए | राजा दक्ष प्रजापति का इतिहास  |