राजा अभय सिंह का इतिहास, राजा अभय सिंह का जन्म, खेजड़ली की घटना, हुरड़ा सम्मेलन , अभयसिंह को तेजाजी का दर्शन, अभय सिंह की मृत्यु
राजा अभय सिंह का जन्म
राजा अभय सिंह का जन्म 7 नवंबर 1702 ईस्वी को जोधपुर मारवाड़ में हुआ था राजा अजीत सिंह के 2 पुत्र थे राजा अभय सिंह और बख्त सिंह राजा जयपुर के शासक राजा सवाई जयसिंह ने इन दोनों भाइयों को अपने पिता के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा और उन्हें मृत्यु के घाट उतारने के लिए कहा इसके बाद अभय सिंह ने यह कार्य अपने छोटे भाई बख्त सिंह को सौंप दिया था
मौका मिलने पर बख्त सिंह ने 1724 मे अपने पिताजी को मौत के घाट उतार दिया था इनके पिताजी की मृत्यु के बाद बख्तावर सिंह को नागौर की जागीर दी गई थी और अभय सिंह मारवाड़ का उत्तराधिकारी बना था राजा अभय सिंह राठौड़ ने 1724 – 1749 तक शासन किया था
1725 ईस्वी में सर बुलंद खान के साथ दक्षिण के विद्रोहियों को दबाने के लिए गुजरात गया वहां से लौट कर अपना राज तिलक उत्सव मनाया अभय सिंह का राज्याभिषेक 17 जुलाई 1724 को दिल्ली में हुआ था
खेजड़ली की घटना
यह घटना 1730 ईस्वी में घटित हुई थी इस घटना में 363 बिश्नोईयो ने खेजड़ली के वृक्षों की रक्षा करने के लिए अपना बलिदान दे दिया था उस समय जोधपुर में महलों के निर्माण के लिए चुना पकाने की आवश्यकता थी और चूना दिलाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी इसके बाद सैनिक खेजड़ली गांव में लकड़िया लाने के लिए पहुंचे खेजड़ी के वृक्ष अधिक होने के कारण इस गांव का नाम खेजड़ली पड़ा था
जब सैनिकों ने वृक्षों को काटना शुरू किया तो उनकी कटने की आवाज एक महिला ने सुनी जिसका नाम अमृता देवी बिश्नोई था जब अमृता देवी वहां पहुंचकर यह सब देखती है तो वह पेड़ से चिपक जाती है और सैनिकों से कहती है कि मैं आपको यह वृक्ष नहीं काटने दूंगी इसके लिए यदि मुझे बलिदान भी देना होगा तो मैं अपनी गर्दन कटवाने के लिए तैयार हूं लेकिन मैं आपको यह वृक्ष नहीं काटने दूंगी
इसके बाद सैनिकों ने अमृता देवी की गर्दन काट दी जब यह बात उनके पति रामू को पता चली तो वह भी दौड़ा चला गया और वृक्षों से चिपक गया और उनकी जो दो पुत्रियां थी वह भी खेजड़ी की वृक्षों से चिपक गई उस गांव में जितने भी बिश्नोई समुदाय के लोग थे वे सभी उन वृक्षों से चिपक गए थे उन्होंने कहा कि जब तक हम जीवित हैं तब तक आप को खेजड़ी के वृक्षों को नहीं काटने देंगे जब तक इस घटना के बारे में राजा अभय सिंह को पता चला, तब तक 363 बिश्नोईयों ने पेड़ों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया था
इसके बाद राजा ने आदेश दिया कि खेजड़ी के वृक्षों को नहीं काटा जाएगा बिश्नोई समुदाय में यह सांस उनके गुरु जंभेश्वर द्वारा दिए गए 29 नियमों के कारण आया था 29 नियमों में एक नियम यह था कि हमें अपने हरे-भरे वृक्षों की रक्षा करनी चाहिए इसी नियम का पालन करते हुए विश्नोईयो ने वृक्षों की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया था
सरकार द्वारा अमृता देवी बिश्नोई के सम्मान में 1994 से पुरस्कार की शुरुआत की गई थी “अमृता देवी वन्यजीव पुरस्कार” सबसे पहले गंगाराम विश्नोई को मिला था खेजड़ली गांव में प्रतिवर्ष ‘भाद्रपद शुक्ल दशमी’ को एक बहुत बड़े वृक्ष मेले का आयोजन होता है सबसे पहला खेजड़ी दिवस 12 सितंबर 1978 को मनाया गया था इस घटना की प्रेरणा से ही चिपको आंदोलन चलाया गया था
हुरड़ा सम्मेलन
यह स्थान राजस्थान के भीलवाड़ा में आता है 17 जुलाई 1734 को राजपूताना रियासतों के शासक मराठों के विरुद्ध यहां पर एकत्रित हुए थे उन्होंने यहां पर एक संगठन बनाया था इस सम्मेलन में महाराजा अभय सिंह ने भी भाग लिया था परंतु उनका यह गठन सफल नहीं हो पाया था | राजा अभय सिंह का इतिहास |
महाराजा अभयसिंह को तेजाजी का दर्शन
जोधपुर के राजा अबे सिंह को सोते समय तेजाजी का दर्शन हुआ दर्शन में तेजाजी ने कहा कि दक्षिण में मध्य प्रदेश तक के लोग मेरी पूजा करते हैं लेकिन मारवाड़ में मुझे भूल चुके हैं इसके बाद तेजाजी ने वचन दिया कि जान ले लेना खारिया तालाब में रुकी थी वहां मैं जाऊंगा राधा जी ने पूछा हम चाहते हैं कि आप हमारी धरती पर आओ पर आप के आने का कोई सुबूत जरूर देना
तेजाजी ने दर्शन में कहा कि परबतसर तालाब के पास जहां लीलण खड़ी हुई होगी, वहां जो खारिया तालाब है उसका पानी मीठा हो जाएगा एवं टीले पर जो हल का जुड़ा पेड़ के पास लटका है वह हरा हो जाएगा तथा यह खेजड़ा बनकर हमेशा खाड़ा खेजड़ा रहेगा जोधपुर महाराज ने तेजाजी की असली जमीन से निकली लाना चाहा लेकिन वह असफल रहे
बाद में तेजाजी ने अबे सिंह को दर्शन में कहा कि मैं बिना मूर्ति के ही आ जाऊंगा तब राजा ने देवली दूसरी लाकर लगाई राजा जब वहां पधारे हल का जुड़ा हरा हो गया था तथा खारिया तालाब का पानी चमत्कारी ढंग से मीठा हो गया था जोधपुर राज्य के राजा अभय सिंह को अपार खुशी हुई और लोक देवता वीर तेजाजी का मंदिर खारिया तालाब की तीर पर बनवाया था
मंदिर से सटा कर पिछवाड़े में जो खंडा खेजड़ा अभी खड़ा है यह आधा सूखा और आधा हरा भरा है इस मंदिर में तेजाजी की दो प्रतिमा स्थापित है जिन पर संस्कृत भाषा में विक्रमी संवत 1791 भादो बड़ी 6 शुक्रवार महाराज अभय सिंह के राज में प्रधान भंडारी विजय राज ने यह तेजाजी की मूर्ति बनाकर प्रतिष्ठित की थी तब से परबतसर भी तेजाजी का मुख्य स्थल बन गया है भाद्रपद की शुक्ल पक्ष में 5 से 15 तक विशाल मेला लगता है
अभय सिंह की मृत्यु
अभय सिंह की मृत्यु 18 जून 1749 में अजमेर में हुई थी उस समय उनकी आयु केवल 46 वर्ष थी
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