प्रीतिलता वाडियार का जीवन परिचय, प्रीतिलता वाडियार का जन्म, इंडियन रिपब्लिकन आर्मी का गठन, प्रीति लता वाडियार की मृत्यु

प्रीतिलता वाडियार का जीवन परिचय 

यह कहानी एक ऐसी वीरांगना की है जो अपने देश की स्वाभिमान की रक्षा के लिए मात्र 21 साल की उम्र में ही शहीद हो गई थी मगर इस शहादत ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए थे प्रीति लता वाडियार 1857 के विद्रोह के बाद स्वतंत्रता के लिए हुए किसी सशस्त्र विद्रोह में शहीद होने वाली पहली महिला थी 

प्रीतिलता वाडियार का जन्म

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की महान क्रांतिकारी प्रति लता वाडियार का जन्म 5 मई 1911 को तत्कालीन पूर्वी भारत और अब का बांग्लादेश में स्थित चटगांव के एक गरीब परिवार में हुआ था इनका बचपन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ झुकाव था उनके पिता नगरपालिका के क्लर्क थे उन्होंने सन 1928 में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की इसके बाद सन् 1929 में इन्होंने ढाका के ईडन कॉलेज में प्रवेश किया और इंटरमीडिएट परीक्षा में पूरे ढाका में पांचवें स्थान पर आई

2 वर्ष बाद प्रीति लता ने कोलकाता के बैतूल कॉलेज से दर्शनशास्त्र से स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण की, कॉलेज में आने के बाद उनके विचार और भी अधिक मजबूत हो गए थे इसके बाद क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों के चलते कोलकाता विश्वविद्यालय के ब्रिटेन अधिकारियों ने उनकी डिग्री को रोक दिया 1932 में अंग्रेजों द्वारा प्रीति लता की रोकी गई तब की डिग्री 2012 में जाकर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम.के. नारायण की पहल पर इन्हें 80 वर्ष बाद मरणोपरांत डिग्री प्रदान की गई इसके बाद प्रीति लता वापस अपने चटगांव में लौट आई थी

शिक्षा उपरांत उन्होंने परिवार की मदद के लिए एक पाठशाला में नौकरी शुरू की थी पाठशाला की नौकरी करते हुए इनकी भेंट प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्यसेन से हुई थी इन्हीं के नेतृत्व में रहकर इन्होंने बंदूक आदि चलाने का विधिवत प्रशिक्षण लिया प्रीति लता उनके दल के सक्रिय सदस्य बनी प्रीति लता जब सूर्य सेन से मिली तब वह अज्ञातवास में थे उनका एक साथी रामकृष्ण विश्वास कोलकाता के अलीपुर जेल में था उनको फांसी की सजा सुनाई गई थी उनसे मिलना आसान नहीं था लेकिन प्रीति लता उनसे कारागार में लगभग 40 बार मिली और किसी अधिकारी को उन पर संशय भी नहीं हुआ यह था उनकी बुद्धिमता और बहादुरी का प्रमाण | प्रीतिलता वाडियार का जीवन परिचय 

इंडियन रिपब्लिकन आर्मी का गठन 

18 अप्रैल 1930 को अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के लिए इंडियन रिपब्लिकन आर्मी का गठन किया गया प्रीति लता सूर्य सेन के नेतृत्व की इंडियन रिपब्लिकन आर्मी में महिला सैनिक बनी आई. आर. ए. के गठन से पूरे बंगाल में क्रांति की ज्वाला भड़क उठी पूर्वी बंगाल के गलघाट में क्रांतिकारियों को पुलिस ने घेर लिया था घिरे हुए क्रांतिकारियों में अपूर्व सेन, निर्मल सेन, प्रीति लता और सूर्य सेन आदि थे इसके बाद सूर्य सेन ने लड़ाई करने का आदेश दिया अपूर्व सेन और निर्मल सेन इस लड़ाई में शहीद हो गए थे

क्रांतिकारियों के दस्ते के साथ मिलकर प्रीति लता ने कई मोर्चों पर अंग्रेजों से लोहा लिया वह रिजर्व पुलिस लाइन पर क्रांतिकारियों के कब्जे और टेलिफोन ऑफिस पर हुए आक्रमणों में भी शामिल थी सूर्यसेन की गोली से एक ब्रिटिश कैप्टन मारा गया इसके बाद सूर्य सेन और प्रीति लता लड़ते-लड़ते भाग गए क्रांतिकारी सूर्यसेन पर ₹10000 का इनाम घोषित था इसके बाद दोनों एक सावित्री नाम की महिला के घर गुप्त रूप से रहे वह महिला क्रांतिकारियों को आश्रय देने के कारण अंग्रेजों का कोप भाजन बनी सूर्य सेन ने अपने साथियों का बदला लेने की योजना बनाई उनकी योजना यह थी कि  पहाड़ी की तलहटी में यूरोपीय क्लब पर धावा बोलकर नाच गाने में मगन अंग्रेजों को मृत्यु का दंड देकर बदला लिया जाए

प्रीति लता के नेतृत्व में कुछ क्रांतिकारी वहां पहुंचे 24 सितंबर 1932 की रात इस काम के लिए निश्चित की गई हथियारों से लैस प्रीति लता ने आत्म सुरक्षा के लिए पोटेशियम साइनाइड नामक विष भी रख लिया था इसके बाद वह इसके बाद वह पूरी तैयारी के साथ क्लब पहुंची बाहर से खिड़की में बम लगाया कल्ब की इमारत बम से फटने और पिस्तौल की आवाज से कांपने लगी नाच रंग के वातावरण में एकाएक चीख सुनाई देने लगी 13 अंग्रेजी जख्मी हो गए और बाकी भाग गए | प्रीतिलता वाडियार का जीवन परिचय 

प्रीति लता वाडियार की मृत्यु

 इस घटना में एक यूरोपीय महिला मारी गई थोड़ी देर बाद उस क्लब से गोलीबारी होने लगी प्रीति लता के शरीर में गोली लगी इसके बाद वह घायल अवस्था में वहां से भागी लेकिन फिर गिरी और पोटेशियम साइनाइड खा लिया उस समय उनकी उम्र महज 21 साल थी इतनी कम उम्र में उन्होंने झांसी की रानी का रास्ता अपनाया और उन्हीं की तरह अंतिम समय तक अंग्रेजों से लड़ते हुए स्वयं ही मृत्यु का वरण कर लिया प्रीति लता के आत्म बलिदान के बाद अंग्रेज अधिकारियों की तलाशी लेने पर जो पत्र मिले उनमें छपा हुआ पत्र था इस पत्र में छपा था कि चटगांव शस्त्रागार कांड के बाद जो मार्ग अपनाया जाएगा वह विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा यह संघर्ष भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगा 

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