प्रताप सिंह बारहट का जीवन परिचय,प्रताप सिंह बारहठ का जन्म ,अंग्रेज अधिकारी को मारने की योजना ,प्रताप सिंह बारहट की गिरफ्तारी ,प्रताप सिंह बारहट की मृत्यु
प्रताप सिंह बारहट का जीवन परिचय
महज 25 वर्ष की उम्र में प्रताप सिंह भारत सेंट्रल जेल में शहीद हो गए थे कड़ी प्रताड़ना के बाद भी आजादी के इस दीवाने ने अंग्रेजों के आगे घुटने नहीं टेके थे अपने चाचा जोरावर सिंह भारत के साथ वायसराय लार्ड होर्डिंग पर बम फेंकने के चलते सेंट्रल जेल में बंदी बनाया गया था बारहट की याद में लेखक सुधीर विद्यार्थी ने लंबे संघर्ष के बाद एक पार्क का नामकरण कराया उन्होंने अपने खर्च पर बारहट का शहीद स्मारक भी बनवाया प्रताप सिंह बारहट का जीवन परिचय
प्रताप सिंह बारहठ का जन्म
भारत की आजादी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कई विचारधाराओं की साझा प्रतिकार का परिणाम थी उसमें महात्मा गांधी के अहिंसा और निर्भीकता के आदर्शों के साथ-साथ भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों का खून भी शामिल है तो उसमें सुभाष चंद्र बोस के सशस्त्र संघर्ष की चेतना भी शामिल है
राजस्थान की पावन धरती ने 19वीं सदी में ऐसे ही एक क्रांतिकारी सपूत को पैदा किया नाम था कुंवर प्रताप सिंह बारहठ 24 मई 1893 उदयपुर में क्रांतिवीर ठाकुर केसरी सिंह बारहठ की हवेली में एक बच्चे की किलकारी गूंजी थी परिवार में उल्लास छा गया बड़े प्यार से बच्चे का स्वागत हुआ और नाम रखा प्रताप परिवार में देशभक्ति तो सांसो में खुली हुई थी और मातृभूमि पर सब कुछ न्योछावर करना तो बाद में परिवार की शान थी इसलिए अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ क्रांति की घुट्टी तो बालक ‘प्रताप’ परिवार में देशभक्ति तो सांसो में घुली हुई थी
और मातृभूमि पर सब कुछ न्योछावर करना बारहट परिवार की शान थी इसलिए अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ क्रांति की गुटी बालक प्रताप ने बचपन में ही पी ली थी इनकी शुरुआती शिक्षा हरबर्ट स्कूल कोटा और डीएवी हाई स्कूल अजमेर में हुई इसके बाद उन्हें क्रांतिकारी ‘अर्जुन लाल सेठी’ के वर्धमान जैन विद्यालय जयपुर में भेजा गया
जब श्री सेठी जी ने अपना विद्यालय इंदौर स्थानांतरित कर लिया तो इनके पिताजी ने इन्हें और इनकी बहनोई ईश्वरदान आशिया को प्रसिद्ध क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद के यहां देश सेवा के लिए प्रशिक्षण हेतु भेज दिया इतिहास में गुरु गोविंद सिंह जी के बाद ठाकुर केसरी सिंह बारहट दूसरा उदाहरण है जिन्होंने अपना संपूर्ण परिवार मातृभूमि को दासता से मुक्त करवाने के लिए विद्रोह और क्रांति के कठिन पद पर समर्पित किया
अंग्रेज अधिकारी को मारने की योजना
क्रांतिकारी मास्टर अमीर चंद्र ने कुंवर प्रताप सिंह और उनके चाचा श्री जोरावर सिंह की मुलाकात ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारत की आजादी की लड़ाई के एक महान क्रांतिकारी श्री रासबिहारी बोस से करवाई श्री रासबिहारी बोस बारहट परिवार की देशभक्ति और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ क्रांति के लिए उनके समर्पण से बहुत प्रभावित थे उन्होंने कुंवर प्रताप सिंह और जोरावर सिंह को दिल्ली बुला लिया योजना थी
तत्कालीन ब्रिटिश वायसरॉय लॉर्ड हार्डिंग पर हमला ताकि सात समंदर पार बैठी अंग्रेजी सत्ता का सिंहासन कांप उठे 23 दिसंबर 1912 हाथी के ओदे में सवार लॉर्ड हार्डिंग अपने जुलूस के साथ आगे बढ़ रहे थे तभी पास एक इमारत पर खड़े जोरावर सिंह ने अपने भतीजे कुंवर प्रतापसिंह बारहठ के सहयोग से वायसरॉय पर बम फेंक दिया इसके बाद भीषण धमाका हुआ और हाथी के औदे के टुकड़े टुकड़े हो गए दुर्भाग्य से शरीर पर भारी जख्म खाकर भी लॉर्ड हार्डिंग बच गया
लेकिन उसका एक नौकर उसी दौरान मारा गया इसके बाद दोनों क्रांतिकारी बड़ी समझदारी से अपना कर्तव्य पूरा कर वहां से फरार हो गए इसके बाद कुंवर प्रताप छंदो वेश धारण करते हुए सिंध जा पहुंचे वहां एक डिस्पेंसरी में उन्होंने कंपाउंडर का कार्य शुरू कर दिया और साथ ही साथ वहां के युवाओं को राष्ट्रभक्ति के लिए प्रेरित करने लगे इस दौरान एक तरफ उन्हें पुलिस ढूंढ रही थी तो दूसरी तरफ से साथी क्रांतिकारी और रिश्तेदार भी ढूंढ रहे थे तभी राजपूताना के क्रांतिकारी “श्री राम नारायण चौधरी” उन तक पहुंचने में कामयाब रहे प्रताप सिंह बारहट का जीवन परिचय
प्रताप सिंह बारहट की गिरफ्तारी
श्री श्री राम नारायण चौधरी ने उनसे कहा कि हमारा संगठन चाहता है कि आप राजपूताना पधारें और वहां रहकर देश के लिए कार्य करें इसके बाद कुंवर प्रताप ने उनके उस फैसले को स्वीकार कर लिया था इसके बाद दोनों ने तय किया कि चौधरी राजधानी में रहकर कार्य करेंगे और कुंवर प्रताप देहात में रहकर कार्य करेंगे उचित अवसर पर दोनों फिर से मिलकर आगे के कार्य की योजना बनाएंगे जोधपुर के निकट आशा नाडा रेलवे स्टेशन का मास्टर उनके दल में सहयोगी रह चुका था
इसलिए प्रताप वहां उतर गए लेकिन दुर्भाग्य से आशा नाडा स्टेशन पर कुछ ही दिन पहले एक बम का पार्सल पकड़ा जा चुका था इसलिए खुद को बचाने के लिए स्टेशन मास्टर पुलिस का मुखबिर बन गया था उसने प्रताप की सूचना पुलिस को दे दी और धोखे से उन्हें गिरफ्तार करवा लिया बनारस कॉन्फ्रेंस केस में इनके खिलाफ वारंट जारी हो चुका था और इन्हें 5 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी इसके बाद कुंवर प्रताप सिंह को बरेली की सेंट्रल जेल ले जाया गया जहां उन्हें काल कोठरी में रखा गया यह कालकोठरी इतनी छोटी थी कि एक आदमी के लिए इसमें करवट लेना भी बहुत मुश्किल था
शुरुआत में अंग्रेजी सरकार ने इन्हें प्रलोभन देने का प्रयास किया उनसे कहा गया कि यदि वे सरकार का सहयोग करें तो सरकार उनके परिवार के सभी केस वापस ले लेगी, उनकी जागीर और सारी संपत्ति वापस कर दी जाएगी और उन्हें तत्काल जेल से रिहा भी कर दिया जाएगा फिर जब इससे बात नहीं बनी तो अंग्रेजों ने जज्बातों का सहारा लिया
उनसे कहा गया कि तुम्हारी मां को बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता है हर पल रोती रहती है लेकिन प्रताप जरा भी विचलित नहीं हुए और उनका जवाब क्रांतिकारी इतिहास की धरोहर बन गया उन्होंने कहा “मैं अपनी एक माता को हंसाने के लिए इस देश की करोड़ों माताओं को रुलाना नहीं चाहता” इसके बाद पुलिस प्रशासन ने सोचा शायद पिता की दशा उनके विचार बदल दें इसलिए उन्हें हजारीबाग जेल ले जाया गया जहां उनके पिता ठाकुर केसरी सिंह बारहठ सजा काट रहे थे प्रताप सिंह बारहट का जीवन परिचय
प्रताप सिंह बारहट की मृत्यु
इसके बाद अपने पुत्र को वहां देखते ही उन्होंने गुस्से में आकर कहा कि यदि तुम पथभ्रष्ट हुए तो शायद सरकार तुम्हें माफ कर दें लेकिन मैं नहीं, इस पर कुंवर प्रताप सिंह ने कहा कि क्या आपको अपने खून पर भरोसा नहीं रहा यह मुलाकात तो अंग्रेजों की चाल है मुझे तो यहां जबरदस्ती लाया गया है
अब अंग्रेज सरकार की सहनशक्ति जवाब दे चुकी थी उन्होंने कुंवर प्रताप को घोर अमानवीय यातनाएं देना शुरू कर दी अंग्रेजों के जुल्मों सितम ने जब हदें पार कर दी तो नश्वर शरीर उन्हें बर्दाश्त नहीं कर पाया 24 मई 1918 को क्रांतिकारी प्रतापसिंह बारहठ ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया देशभक्ति के अमर इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अपना नाम अंकित कर उन्होंने मातृभूमि ईदार्थ अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया ऐसे वीर क्रांतिकारी को हमारा शत शत नमन
प्रताप सिंह बारहट का जीवन परिचय