प्रफुल्ल चाकी का इतिहास,प्रफुल्ल चाकी का जन्म ,मुजफ्फरपुर कांड,प्रफुल्ल चाकी की मृत्यु, प्रफुल्ल चौकी की जीवनी, प्रफुल्ल चाकी की मौत कैसे हुई
प्रफुल्ल चाकी का इतिहास
प्रफुल्ल चाकी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे चाकी ने क्रांतिकारियों के युगांतर समूह के साथ खुद को जोड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था इन क्रांतिकारियों का मुख्य उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या करना था
प्रफुल्ल चाकी को जिला न्यायधीश मिस्टर किंग फोर्ड की हत्या की योजना बनाने के लिए जाना जाता है जो उस गाड़ी में यात्रा करने वाले थे जिसमें प्रफुल्ल चाकी और उनके साथी खुदीराम बोस ने बम फेंकने की योजना बनाई थी 1 मई 1908 को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा हिरासत में लिए जाने से ठीक पहले प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मार ली उनके साथी खुदीराम बोस को पुलिस अधिकारियों ने दो ब्रिटिश महिलाओं की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था प्रफुल्ल चाकी की मौत का बदला लेने के लिए दो युवा क्रांतिकारियों ने अधिकारी नंदलाल बनर्जी को मार डाला था प्रफुल्ल चाकी का इतिहास
प्रफुल्ल चाकी का जन्म
प्रफुल्ल का जन्म 10 दिसंबर 1888 को उत्तरी बंगाल के बोगरा जिले के बिहारी गांव में हुआ था इनके पिता जी का नाम “राजनारायण” था जब प्रफुल्ल 2 वर्ष के थे तभी इनके पिताजी का निधन हो गया था इनके माता ने अत्यंत कठिनाई से प्रफुल्ल का पालन पोषण किया विद्यार्थी जीवन में प्रफुल्ल का परिचय स्वामी महेश्वरानंद द्वारा स्थापित गुप्त क्रांतिकारी संगठन से हुआ
इन्होंने स्वामी विवेकानंद के साहित्य का और क्रांतिकारियों के विचारों का अध्ययन किया था बंगाल विभाजन के समय अनेक लोग इसके विरोध में उठ खड़े हुए अनेक विद्यार्थियों ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया प्रफुल्ल ने भी इस आंदोलन में भाग लिया था उस समय रंगपुर जिला स्कूल में कक्षा 9 के छात्र थे प्रफुल्ल को आंदोलन में भाग लेने के कारण उनके विद्यालय से निकाल दिया गया इसके बाद प्रफुल्ल का संपर्क क्रांतिकारियों की युगांतर पार्टी से हुआ
मोगरा के नवाब के यहां नौकरी करने वाले इनके पिता और मां ने भी सोचा ना होगा कि इनका बेटा इंकलाब के रास्ते पर चलते हुए देश की आजादी के लिए कम उम्र में ही शहीदों की टोली में जा मिलेगा जब प्रफुल्ल 17वर्ष के थे तभी बंगाल का विभाजन हुआ और वह उसके विरोध में उठ खड़े हुए इसके बाद किंगफोर्ड पर हमले के बड़े अभियान में इन्हें खुदीराम बोस का साथ मिला था प्रफुल्ल चाकी का इतिहास
मुजफ्फरपुर कांड
उन दिनों कोलकाता का चीफ प्रेसिडेंट मजिस्ट्रेट किंग फोर्ड राजनीतिक कार्यकर्ताओं को अपमानित कर और दंडित करने के लिए बहुत बदनाम था क्रांतिकारियों ने उसे समाप्त करने का काम पर फूल जाती और खुदीराम बोस को सपा सरकार ने क्यों छोड़ के प्रति लोगों के आक्रोश को देखकर उसकी सुरक्षा की दृष्टि से उसे जज बनाकर मुजफ्फरपुर भेज दिया पर दोनों क्रांतिकारी भी उसके पीछे-पीछे पहुंच गए
किंग फोर्ड की गतिविधियों का अध्ययन करने के बाद उन्होंने 30 अप्रैल 1908 को यूरोपियन क्लब से बाहर निकलते ही किंग फोर्ड की बग्गी पर बम फेंक दिया किंतु दुर्भाग्य से समान आकार प्रकार की बग्गी में दो यूरोपियन महिलाएं बैठी थी जो कि पिंगले केनेडी एडवोकेट की पत्नी और बेटी थी, वह मारी गई इसके बाद दोनों क्रांतिकारी किंग फोर्ड को मारने में सफलता समझकर वे उस स्थान से भाग निकले इसके बाद पर फूल समस्तीपुर पहुंचकर कपड़े बदले और टिकट खरीद का ट्रेन में बैठ गए
दुर्भाग्यवश उसी डिब्बे में पुलिस सब इंस्पेक्टर नंदलाल बनर्जी बैठा था बम कांड की सूचना चारों ओर फैल चुकी थी इंस्पेक्टर को प्रफुल्ल पर कुछ संदेह हुआ तो उसने चुपचाप अगले स्टेशन पर सूचना भेजकर प्रफुल्ल चाकी को गिरफ्तार करने का प्रबंध कर लिया पर स्टेशन आते ही जब पुलिस वालों ने प्रफुल्ल को गिरफ्तार करना चाहा तो वह बच निकलने के लिए दौड़ पड़े पर जब देखा कि चारों ओर से गिर गए हैं तो उन्होंने अपनी बंदूक से अपने आप को गोली मार ली और मोकामा के पास प्राण आहुति दे दी प्रफुल्ल चाकी का इतिहास
प्रफुल्ल चाकी की मृत्यु
यह घटना 1 मई 1908 को गठित हुई थी मृत्यु के समय प्रफुल्ल चाकी की उम्र केवल 20 वर्ष की थी कालीचरण घोष ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ “रोल ऑफ ऑनर” में प्रफुल्ल कुमार का विवरण अन्य प्रकार से दिया है उनके अनुसार प्रफुल्ल ने खुदीराम बोस के साथ किंग फोर्ड से बदला लेते समय अपना नाम दिनेश चंद्र रॉय रखा था घटना के बाद जब उन्होंने अपने हाथों अपने प्राण ले लिए तो उनकी पहचान नहीं हो सकी इसलिए अधिकारियों ने उनका सिर धड़ से काटकर स्पिरिट में रखा और उसे लेकर पहचान के लिए कोलकाता ले गए
वहां पता चला कि यह दिनेश चंद्र और कोई नहीं, रंगपुर का प्रसिद्ध क्रांतिकारी प्रफुल्ल कुमार चाकी था इसके बाद खुदीराम बोस को भी गिरफ्तार कर लिया गया और11 अगस्त 1908 को खुदीराम बोस को फांसी दी गई और वह खुशी-खुशी फांसी पर झूल गए खुदीराम बोस के अंतिम संस्कार में 18000 लोग इकट्ठे हुए थे और उन्होंने खुदीराम बोस को सह दिल से श्रद्धांजलि दी खुदीराम बोस ने लोगों के दिल में अपनी जगह बना ली थी
इसके बाद नौजवान खुदीराम बोस का नाम छपी हुई धोती पहनने लगे खुदीराम बोस एक ऐसे क्रांतिकारी थे जो इतनी कम उम्र में फांसी के फंदे पर झूले थे उस समय उनकी आयु केवल 18 वर्ष थी पुलिस से गिरा हुआ देख प्रफुल्ल कुमार चाकि ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी इस प्रकार इन दोनों क्रांतिकारी वीरों ने अपनी जान देश के लिए निछावर कर दी |
प्रफुल्ल चाकी का इतिहास