माता कैला देवी का इतिहास, मां कैला देवी के मंदिर का निर्माण, माता कैला देवी के मंदिर की विशेषता, मां कैला देवी की कथा 

माता कैला देवी का इतिहास 

द्वापर युग में जब कंस को आकाशवाणी से यह पता चला कि उसकी बहन देवकी की आठवीं संतान उसके मौत का कारण बनेगी तब उसने अपने बहन और वासुदेव को बंदी बना लिया था इसके बाद देवकी की हर संतान को जन्म लेने के बाद उसने मारना शुरू कर दिया था जब देवकी की आठवीं संतान के रूप में भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया

उसी समय गोकुल में यशोदा और नंद के घर एक बेटी का जन्म हुआ था इसके बाद वासुदेव जी श्री कृष्ण को नंद गांव छोड़ आते हैं और उनकी बेटी को मथुरा ले आते हैं जब कंस को यह पता चला कि देवकी की आठवीं संतान जन्म ले चुकी है तब वह उसे मारने के लिए कारागार में गया जब कंस है उसे मारने के लिए अपने हाथों में उठाता है और उसे एक शीला पर फेकता है तो वह लड़की एक देवी के रूप में प्रकट होती है

वह देवी “योगमाया” होती है उस योग माया ने कंस को बताया कि तुम्हें मारने वाला इस धरती पर जन्म ले चुका है पौराणिक कथा के अनुसार त्रिकूट के आसपास का क्षेत्र घने जंगलों से घिरा हुआ था इस इलाके में नरकासुर नाम का एक भयानक राक्षस रहा करता था उसने अपने आसपास के इलाके में काफी आंतक मचा रखा था उसके आतंक से आम जनता काफी परेशान थी

जब उन लोगों ने मां दुर्गा की पूजा की मां दुर्गा ने वहां पर प्रकट होकर उनकी रक्षा की थी माना जाता है कि आम जनता की रक्षा के लिए माता योग माया ने यहां पर प्रकट होकर नरकासुर का अंत किया था तभी से यहां पर भगत जन उन्हें मां दुर्गा का रूप मानकर उनकी पूजा करते हैं योग माया श्री कृष्ण की बहन थी इसी कारण से यदुवंश में योग माया आराध्य देवी के रूप में पूजी जाती है | माता कैला देवी का इतिहास |

मां कैला देवी के मंदिर का निर्माण

करौली में यदुवंश का राज रहा है जिसे श्री कृष्ण का वंशज माना जाता है 1600ईसवी में यहां के राजा भोपाल ने कैला देवी के मंदिर का निर्माण करवाया था माना जाता है कि वही योग माया यहां कैला देवी के रूप में प्रसिद्ध है करौली जिले की स्थापना राजा विजयपाल ने 955 ईसवी के आसपास की थी

यहां स्थित कल्याण जी के प्राचीन मंदिर के नाम से इस नगर को पहले कल्याणपुरी कहा जाता था इसके बाद कालांतर में इसी मंदिर से करौली की नींव डाली गई करौली का सिटी प्लेस आकर्षण का केंद्र है इसी सिटी के पास मदन मोहन जी का मंदिर भी स्थित है जहां पर लाखों श्रद्धालु हर वर्ष दर्शन करने के लिए आते हैं करौली में कई अद्भुत मंदिर स्थापित हैं

जिनमें से मां केला देवी का मंदिर एक है कैला देवी के मंदिर में जो दो मूर्तियां स्थापित है उनमें से एक मूर्ति मां कैला देवी की और दूसरी माता चामुंडा की है कैला देवी का प्रतिवर्ष “चैत्र शुक्ल अष्टमी” को मेला भरता है जिसमें लाखों लोग दर्शन करने के लिए आते हैं इस मेले को ‘लक्खी’ मेला भी कहते हैं

कैला देवी के मेले में मीणा एवं गुर्जर जाति के लोग लांगुरिया नृत्य करते हैं लांगुरिया नृत्य हनुमान जी को समर्पित है जब तक कालीसिल नदी में स्नान नहीं किया जाता तब तक कैला देवी की तीर्थ यात्रा सफल नहीं होती है | माता कैला देवी का इतिहास |

माता कैला देवी के मंदिर की विशेषता 

राजस्थान के करौली जिले में मां कैला का एक भव्य मंदिर स्थापित है जहां पूरे वर्ष इस मंदिर में भक्तों की भीड़ लगी रहती है इसी स्थान पर बाबा केदार गिरी ने कठोर तपस्या की थी बाबा केदार गिरी ने कठोर तपस्या करके मां के मुख की स्थापना की थी केला देवी के इस मंदिर में लोग अपने बच्चों का पहली बार मुंडन करवाने भी आते हैं

करौली का यह मंदिर हिंदुओं के लिए खास आस्था का केंद्र है केला देवी का मंदिर अरावली की पहाड़ियों में कालीसिल नदी के तट पर स्थित है इस मंदिर का निर्माण राजपूत शासकों द्वारा करवाया गया था यह मंदिर भारत के शक्तिपीठों में से एक माना जाता है इस मंदिर में लाल पत्थर और संगमरमर के पत्थर की नक्काशी देखने को मिलती है

इस मंदिर का परिसर बहुत ही बड़ा है यहां चांदी की चौकी पर सोने की छतरियों के नीचे 2 प्रतिमाएं स्थापित की गई है इन दोनों मूर्तियों में जिस मूर्ति की गर्दन टेढ़ी है वह मां कैला की मूर्ति है इस मूर्ति में मां केला की आठ भुजाएं हैं इसके अलावा मंदिर के आंगन में भैरव को समर्पित एक छोटा सा मंदिर भी है यहां पर हनुमान जी का भी एक छोटा सा मंदिर स्थापित है | माता कैला देवी का इतिहास |

मां कैला देवी की कथा 

मां केला देवी का एक परम भक्त था 1 दिन उस भगत ने मां केला देवी के दर्शन किए और वहां से जल्दी लौट आने के लिए कह कर चला गया लेकिन उसके बाद वह भगत कभी लौट कर नहीं आया

लेकिन माना जाता है कि मां केला देवी आज भी उस भगत के इंतजार में उसी दिशा में देख रही है जिसके कारण उनकी गर्दन टेढ़ी है कभी यहां पर बीहड़ जंगल हुआ करता था

आसपास के क्षेत्र में डाकुओं का काफी खौफ था वह डाकू डकैती से पहले और डकैती के बाद मां केला देवी की पूजा करते थे आज भी यहां पर कई डकैत पूजा करने के लिए आते हैं लेकिन आज तक किसी भी डकैत नहीं यहां पर आने वाले किसी भी भगत को नुकसान नहीं पहुंचाया है | माता कैला देवी का इतिहास |