माता चामुंडा का इतिहास, चामुंडा माता का मंदिर, माता चामुंडा की उत्पत्ति, चामुंडा माता किसकी कुलदेवी है, चामुंडा माता का कौन सा दिन है

माता चामुंडा का इतिहास

सूर्यवंश से ताल्लुक रखने वाले इंदा वंश की कुलदेवी के रूप में चामुंडा माता पूजी जाती है पडियार नाहर राव गाजन माता के परम भक्त थे वहीं इनके वंशज परिवार की कुलदेवी के रूप में चामुंडा माता की पूजा आराधना करते थे

पडियार वंशजों का चामुंडा देवी के साथ संबंध पर सर्वप्रथम स्टिक उल्लेख पडियार खाखूराजा से मिलता है पडियार खाखू चामुंडा माता की पूजा अर्चना करने चामुंडा गांव आते थे जो कि जोधपुर से उत्तर पश्चिम दिशा में 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थी

पाटन नगरी जहां का राजा परिहार खाखू राज करते थे जो चामुंडा गांव से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थी चामुंडा माता का मंदिर चावंडागांव की ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है जिसका मुख जोधपुर की ओर है इस मंदिर में प्रतिष्ठापित चामुंडा माता की प्रतिमा स्वत प्रकट है इस प्रतिमा के ऊपर छत्र सुशोभित है चट्टान में से प्रकट हुई मंदिर के अग्रभाग में यज्ञ कुंड बना हुआ है

मंदिर परिसर का परिक्रमा स्थल अद्भुत है यहां के पुजारी चावंडिया राजपुरोहित है ऐसा माना जाता है कि माता चामुंडा राजा खाखू के शरीर से रूबरू होती थी एक बार खाखू जी अपनी नगरी पाटन में विशाल यज्ञ करने के लिए देवी के दर्शन के लिए चावंडा गांव पहुंचे वहां पहुंचने पर उन्होंने माता चामुंडा को यज्ञ में आने के लिए प्रार्थना की और माता ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया

इसके बाद यज्ञ के दिन माता चामुंडा के देर से पहुंचने पर खाखू जी ने अभिमान स्वरूप उनसे पूछा कि तुम इतनी देर से क्यों आई हो,तब माता चामुंडा ने उनसे कहा कि मैं आते समय निषाद भगत के घर पर रुक गई थी जिसके कारण मुझे आने में देरी हो गई थी इतना सुनने पर खाखू जी बहुत ही क्रोधित हुए और वह अपनी म्यान से तलवार निकालकर माता की ओर दौड़ेतभी माता चामुंडा ने राजा की नगरी को जमींदोज होने का अभिशाप दे दिया इसके बाद माता चामुंडा आगे आकर एक खेजड़ी के नीचे बैठ गई और अपने लटिया खोल कर बैठ गई

जब मां को विकराल रूप में देखा तो राजा ने माफी मांगीजहां माता चामुंडा ने विश्राम किया वह स्थान आज के समय में चामुंडा ढाणियों में मां लटियाल का स्थान है और वहां पूजी जाती है वहां से मां पहाड़ी पर ध्यान लगाने आ गई पीछे-पीछे राजा खाखू जी भी आ गया और बोला मां मैं मेरी तलवार अब बगैर वार किए म्यान में नहीं डाल सकता और उसने जग में आने की प्रार्थना की उसका मान बढ़ाया

देर से पहुंचने पर कहा कि इतनी देर से क्यों आई हो मां चामुंडा ने कहा कि वक्त निषाद राज है उसके यहां रुक गई थी वहां देर होने से विलंब से पहुंची देविका खो बैठा और बोला मेरे से ज्यादा एक गरीब निषाद भगत वहां पहले आप चली गई और खान से तलवार निकालकर मां की ओर दौड़ा वहां से माने राजा की नगरी को जमींदोज होने का अभिशाप दे दिया था तब से यह माना जाता है कि वह आज भी घंटियाला बालाजी धाम के पास अवशेष रूप में मौजूद है

वहीं से मां आगे आकर एक डी के नीचे बैठ गई और अपने खोल कर बैठ गई जब मां को विकराल रूप में देखा तो राजा गुने शमा याचना की जहां मां ने विश्राम किया वह स्थान आज के समय में चावंडा ढाणियों में मां लटियाल का स्थान है और यहां वहां पूजी जाती है वहां से मां पहाड़ी पर ध्यान लगाने आ गई पीछे-पीछे राजा खाखू भी आ गया और बोला मां मैं मेरी तलवार बिना वार किए म्यान में नहीं डाल सकता

तब माता चामुंडा ने उससे कहा मेरे पीठ पीछे मार दे इसके बाद राजा ने वार मां चामुंडा के पीछे पहाड़ी पर मारा जिससे वह दो भागों में बंट गई दो भागों में विभक्त होने से इसका भी ऐतिहासिक महत्व इस रूप में बढ़ गया कि मंदिर के बाहर परिक्रमा करने हेतु फिरनी तैयार हो गई जोधपुर राज्य के संस्थापक राव जोधा के पितामहा राव चुंडा का संबंध भी चामुंडा देवी से रहा है

जोधपुर राज्य की स्थापना से पहले राव चुंडा के पिता जोहीयों से लड़ते हुए काम आए, इस पर अपनी माता कुलदेवी की इच्छा अनुसार गुप्त रूप से कलाऊ गांव में आल्हा जी चारण के पास 7 साल रहे कुछ समय पश्चात है आला चारण ने इन्हें रावल मल्लिनाथ के पास पहुंचा दिया वहां राव चुंडा ने रावल मल्लिनाथ के प्रधान का मन जीत लिया

जब मल्लिनाथ को पता चला कि यह मेरा ही खून है तब तक तो वहां से राव चुंडा बाड़ी की जंगलों में आकर रहने लगे और चामुंडा की पूजा करने लगे यहां रहते हुए चामुंडा के मंदिर में देवी के दर्शन करने चुंडा आता रहता था वह भी देवी का परम भक्त था उसी समय तारो जी सिया की कन्या ‘लांचाबाई’ सिहादा गांव से रोजाना पूजा करने आती थी और देवी मां से रूबरू बातचीत करती थी

जंगल में एक अकेली कन्या को पहाड़ी पर आता जाता देख कर एक दिन राव चुंडा ने पूछ लिया कि आप रोजाना इतनी दूर से आती हो क्या कभी देवी ने दर्शन भी दिया है तब लांचाबाई ने मुस्कुराते हुए कहा कि मैं हर रोज माता चामुंडा से बातचीत करती हूं चामुंडा | माता चामुंडा का इतिहास |

चामुंडा माता का मंदिर

मेहरानगढ़ किले के अंत में स्थित चामुंडा माता मंदिर जोधपुर के सबसे पुराने और सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक है देवी को जोधपुर के निवासियों का मुख्य देवता माना जाता है और इन्हें राज परिवार की सबसे बड़ी देवी भी माना जाता है यह मंदिर पर्यटकों को बहुत ही आकर्षित करता है

इस मंदिर को हिंदुओं का एक तीर्थ स्थल भी माना जाता है माता चामुंडा राव जोधा जी की पसंदीदा देवी थी इसी कारण से उन्होंने माता चामुंडा की मूर्ति को 1460 में मेहरानगढ़ किले में धार्मिक क्रियाओं के साथ स्थापित किया था चामुंडा माता का मंदिर समुद्र तल से 1000 ऊंचाई पर स्थित है चामुंडा माता का मंदिर बंकर नदी के किनारे पर बसा हुआ है

इस मंदिर के आसपास के प्राकृतिक दृश्य को देखकर यहां के श्रद्धालु मनमोहित हो जाते हैं चामुंडा माता का मंदिर मुख्यतः मां काली को समर्पित है मां काली शक्ति और सहार की देवी है जब भी धरती पर कोई संकट आया है तब मां काली ने अपने विकराल रूप को धारण कर के उन दुष्टों का संहार किया है जब चामुंडा माता ने दो असुरों का वध किया चंड, मुंड जिसके कारण इनका नाम “चामुंडा” पड़ा था | माता चामुंडा का इतिहास |

माता चामुंडा की उत्पत्ति 

हजारों साल पहले धरती पर शुंभ और निशुंभ नामक दो असुरों का राज था उन्होंने धरती और स्वर्ग पर काफी अत्याचार मचा रखा था जिसके बाद मनुष्य और देवताओं ने देवी दुर्गा की आराधना की इसके बाद माता दुर्गा ने उन्हें वरदान दिया कि वह उन दोनों राक्षसों का अवश्य वध करेगी

इसके बाद माता दुर्गा ने मां काली का रूप धारण किया मां दुर्गा के इस रूप को राक्षसों के दूतों ने देख लिया था इसके बाद उन्होंने शुंभ और निशुंभ राक्षस को जाकर कहा कि आपके पास सभी चीजें हैं तो आपके पास एक सुंदर नारी भी होनी चाहिए जो तीनों लोकों में सबसे सुंदर हो यह सुनकर उन्होंने अपना एक दूत मां दुर्गा के पास भेजा

शुंभ और निशुंभ राक्षस ने उस दूत से कहा कि तुम उस नारी से जाकर कहना कि शुंभ और निशुंभ तीनों लोकों के स्वामी है और वह तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहते हैं इसके बाद माता ने उस दूत की बात को सुन कर कहा कि जो व्यक्ति मुझे युद्ध में हरा देगा मैं उससे विवाह करने के लिए तैयार हूं इसके बाद उस दूत ने वापस आकर यह सारी बात है शुभ और निशुंभ को बताई

उसकी बात को सुनकर उन दोनों राक्षसों ने अपने दो दूत  चंड और मुंड को मां दुर्गा के पास युद्ध करने के लिए भेजा और कहा कि उसे घसीट कर हमारे पास ले आओ इसके बाद चंड और मुंड मां दुर्गा के पास युद्ध करने के लिए गए तब मां दुर्गा ने काली का रूप धारण करके उन्हें यमलोक पहुंचा दिया उन दोनों असुरों को मारने के कारण माता का नाम चामुंडा पड़ा था | माता चामुंडा का इतिहास |