महर्षि वेदव्यास का इतिहास, महर्षि वेदव्यास के जन्म का रहस्य, वेदव्यास और भीष्म पितामह का संबंध, महर्षि वेदव्यास क्यों प्रसिद्ध है, महर्षि वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ, वेद व्यास के गुरु कौन थे, महर्षि व्यास के पिता कौन हैं

महर्षि वेदव्यास का इतिहास 

भारत में प्राचीन समय से ही गुरु परंपरा रही है महर्षि वेदव्यास को मानव जाति का गुरु माना जाता है इन्होंने ही श्रीमद भगवत गीता कही थी जिसे लिखने का कार्य खुद भगवान श्री गणेश ने किया था महर्षि वेदव्यास का जन्म यमुना नदी के किनारे एक छोटे से द्वीप में हुआ था वेदव्यास सत्यवती और पराशर ऋषि के पुत्र थे इनके बचपन का नाम कृष्ण द्वैपायन था कृष्ण द्वैपायन आगे चलकर “वेदव्यास” के नाम से प्रसिद्ध हुए

मां के कहने पर वेदव्यास जी ने विचित्रवीर्य की रानियों के साथ एक दासी के साथ भी नियोग किया जिसके बाद पांडु ,धृतराष्ट्र और विदुर का जन्म हुआ वेदों के विस्तार के कारण यह वेदव्यास के नाम से जाने जाते हैं वेदव्यास ने चारों वेदों का विस्तार किया था इन्होंने वेदों के साथ 18 महापुराणों की रचना भी की थी इसके अलावा ब्रह्मसूत्र का भी ‘प्रणयन’ किया था गुरु पूर्णिमा का त्योहार महर्षि वेदव्यास को समर्पित है महर्षि वेदव्यास महाभारत के रचयिता है हिंदू धर्म में वेदव्यास जी को श्रेष्ठ माना गया है| महर्षि वेदव्यास का इतिहास | 

भगवान गणेश ने रखी थी एक शर्त 

महर्षि वेदव्यास महाभारत काव्य की रचना के लिए एक ऐसा लेख चाहा रहे थे जो उनके विचारों की गति को बीच में रोका ना करें उस समय उन्हें बुद्धि के स्वामी भगवान गणेश की याद आई इसके बाद उन्होंने श्री गणेश से आग्रह किया कि महाभारत काव्य का वह लेखक बने इसके बाद गणेश जी ने उनकी बात मान ली और साथ ही एक शर्त रख दी उन्होंने महर्षि वेदव्यास ने कहा कि लिखते समय यदि मेरी कलम नहीं रुकी तो मैं इसका लेखक बन सकता हूं

इसके बाद वेदव्यास जी ने यह शर्त मान ली और श्रीगणेश के कहा मैं जो भी बोलूं आप उसे बिना समझे मत लिखना वेदव्यास जी बीच-बीच में ऐसे श्लोक बोलते थे जिन्हें समझने में श्री गणेश जी को समय लगता था इसी बीच महर्षि वेदव्यास जी अन्य काम कर लेते थे इसके बाद दोनों महारथी आमने-सामने बैठकर अपनी भूमिका निभाने लगे इसके बाद महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी के घमंड को दूर करने के लिए बहुत ही तेज गति से श्लोक बोलना शुरु कर दिया और उसी गति में गणेश जी ने महाकाव्य को लिखना भी जारी रखा परंतु तेज गति के कारण उनकी कलम टूट गई और वह वेदव्यास जी की गति के साथ तालमेल मिलाने में चुकने लगे

इसके बाद गणेश जी ने हार ना मानते हुए अपना एक दांत तोड़ लिया और उसे स्याही में डुबोकर लिखने लगे यह देखकर वेदव्यास जी समझ गए कि गणेश जी की तीव्र बुद्धि और लगन का कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता इसके बाद उन्होंने गणेश जी को एकदंत नया नाम दिया इसके बाद गणेश जी भी समझ गए थे कि उन्हें अपनी लेखन गति पर अभिमान हो गया था इस महाकाव्य को पूरा होने में 3 साल का समय लगा था इन 3 सालों में गणेश जी ने ऋषि को एक क्षण के लिए भी नहीं रोका और ऐसा करके महर्षि वेदव्यास जी ने भी शर्त को पूरा किया था

महर्षि वेदव्यास ने संसार के रचयिता ब्रह्मा का ध्यान किया था वेदव्यास ने इस संसार, यहां रहने वाले लोगों तथा उनके गुणों और अब गुणों पर विचार किया बहुत सोच-विचार के बाद उनके मस्तिष्क में एक कथा विकसित हुई यह कथा बहुत लंबी थी जो एक राजा उनके राज्य और उनके परिवार के विषय में थी इस कथा में कई मुद्दों का वर्णन था जो राजा और उनके पुत्रों द्वारा लड़े गए थे | महर्षि वेदव्यास का इतिहास |

महर्षि वेदव्यास के जन्म का रहस्य 

गंगा शांतनु को छोड़कर स्वर्ग लोक वापस जा चुकी थी और साथ ही वह अपने बेटे भीष्म को भी साथ ले गई लेकिन वैसे इस वादे के साथ लेकर गई थी कि गुरु परशुराम से शिक्षा दिलवाने के बाद उसे वापस हस्तिनापुर भेज देगी गंगा के जाने के बाद शांतनु को सत्यवती नाम  कि एक मछुआरान से प्रेम हो गया यह कोई साधारण कन्या नहीं थी एक बार राजा आखेट करने गए आराम करते समय अपनी पत्नी का ध्यान किया और शखलीत हो गए वीर्य बेकार ना जाए इसलिए उन्होंने पत्ते में लपेट कर उसे एक तोते को दे दिया और आदेश दिया कि उसे उनकी रानी तक पहुंचा दिया जाए

लेकिन रास्ते में तोते पर एक चील ने हमला कर दिया और वह वीर्य नदी में गिर गया जिसे एक मछली ने ग्रहण कर लिया यह मछली गिरीका नामक अप्सरा थी जो ब्रह्मा के श्राप के कारण धरती पर आई थी जिसे मनुष्य रूपी बच्चे पैदा करने से मुक्ति मिलने वाली थी कुछ समय के बाद उस मछली को मछुआरों ने पकड़ लिया जब उन्होंने उसका पेट चीरा तो उसके गर्भ में से  दो बच्चे निकले एक लड़का और एक लड़की  इसके बाद दोनों बच्चों को मछुआरे राजा उग्रसेन के पास ले गए उस राजा ने बेटे को तो रख लिया और उस बेटी को मछुआरों के मुखिया को दे दिया

इस मुखिया ने उस बेटी का पालन पोषण किया इस बेटी का नाम आगे सत्यवती रखा गया जो कि बाद में शांतनु की दूसरी पत्नी बनी थी सत्यवती बहुत ही सुंदर थी क्योंकि वह एक अप्सरा की बेटी थी परंतु मछली के गर्भ से पैदा होने के कारण उसके शरीर में से हमेशा मछली की गंध आती थी जिसके कारण उसे ‘मत्स्यगंधा’ कहते थे सत्यवती नाव से लोगों को नदी पार कर आती थी एक दिन उनकी नाव में ऋषि पराशर आकर बैठे इसके बाद नदी के बीचो-बीच उन्होंने सत्यवती के सामने संभोग कर पुत्र पैदा करने का प्रस्ताव रखा इसके बाद सत्यवती ने उनसे कहा कि ऐसा करने पर मेरे साथ कोई भी विवाह नहीं करेगा

इसके बाद उस ऋषि ने कहा कि तुम चिंता मत करो पुत्र तुरंत ही पैदा होगा और तुम फिर से कुंवारी कन्या बन जाओगी इसके बाद उसे देश ने कहा लोगों की नजरों से बचने के लिए मैं नाव के चारों ओर धुंध फैला दूंगा और तुम्हें कोई नहीं देख पाएगा इसके बाद उस ऋषि ने कहा संतान पैदा करने के बाद तुम्हारे शरीर की दुर्गंध भी खत्म हो जाएगी और तुम सदैव सुगंधित रहोगी जिससे पुरुष तुम्हारी तरफ आकर्षित होंगे ऋषि पराशर के इस प्रस्ताव को सत्यवती ने मान लिया और उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका पालन पोषण ऋषि पराशर के आश्रम में हुआ था यही बच्चा आगे चलकर वेदव्यास के नाम से विख्यात हुआ यही  कौरवों के जन्म का कारण बने थे | महर्षि वेदव्यास का इतिहास |

वेदव्यास और भीष्म पितामह का संबंध 

 गंगा के जाने के बाद शांतनु भी उदास रहने लगे एक दिन सत्यवती की सुंदरता को देखकर वह बहुत ही आकर्षित हुए और उन से प्रेम करने लगे ऋषि पराशर के वरदान से सत्यवती हस्तिनापुर की रानी बन गई भीष्म पितामह शांतनु के पुत्र थे और सत्यवती उनकी दूसरी माता थी और वेद व्यास सत्यवती के पुत्र थे इसलिए दोनों के बीच में भाई का संबंध था अपनी माता का आदेश मानकर वेदव्यास ने अंबे और अंबालिका से संबंध बनाकर गुरु वंश को आगे बढ़ाया इन्हीं के कारण धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म होता है वेदव्यास जी के आशीर्वाद से ही गांधारी सौ पुत्रों की मां बनी थी | महर्षि वेदव्यास का इतिहास |