महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास, महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण , महाकालेश्वर मंदिर के रहस्य , पौराणिक कथा
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास
मध्य प्रदेश के उज्जैन नगरी में स्थित महाकाल ज्योतिर्लिंग शिवजी का तीसरा ज्योतिर्लिंग कहलाता है यह एकमात्र ज्योतिर्लिंग है जो दक्षिण मुखी है उज्जैन का पुराना नाम अवंती नगर था उज्जैन नगरी 2000 साल पुरानी नगरी है यहां पर चिता की भस्म से भगवान शिव की आरती की जाती थी और इसी से उनका शृंगार होता था
10 वीं सदी के अंतिम दशकों में संपूर्ण मालवा पर परमार राजाओं का अधिपत्य हो गया था इस काल में रचित काव्य ग्रंथों में महाकाल मंदिर का सुंदर वर्णन आया है 11 वीं सदी के आठवें दशक में गजनी सेनापति द्वारा किए गए आघात के बाद 11 वीं सदी के उत्तरार्ध व 12 वीं सदी के पूर्वार्ध में उदयादित्य एवं नर वर्मा के शासनकाल में मंदिर का पुनर्निर्माण हुआ था
1235 – 36 में सुल्तानपुर इल्तुतमिश ने पुन: आक्रमण कर महाकालेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर दिया किंतु मंदिर का धार्मिक महत्व बना रहा वर्तमान में जो महाकाल मंदिर स्थित है उसका निर्माण राणा जी शिंदे नहीं करवाया है उज्जैन राजा विक्रमादित्य के समय में राजधानी हुआ करती थी
उज्जैन की शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ कुंभ मेला हर 12 वर्ष के उपरांत मनाया जाता है इस दिन यहां एक साथ 10 प्रकार के दुर्लभ योग बने होते हैं महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग जहां स्थापित है इस के शिखर से कर्क रेखा होकर गुजरती है इसे पृथ्वी की नाभि स्थल की मान्यता मिली हुई है| महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास |
महाकालेश्वर मंदिर का निर्माण
उज्जैन में 1107 से 1728ईस्वी तक यवनों का शासन हुआ करता था उनके शासनकाल में लगभग 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपरा व मान्यताओं को पूरी तरह से खंडित वह नष्ट करने का प्रयास किया गया था मराठा राजाओं ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण करके 22 नवंबर 1728 में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था
इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुन: लौटा और सन 1731-1809 ईसवी तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही उज्जैन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटी जिसमें पहला महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया तथा शिप्रा नदी के तट पर कुंभ मेला स्नान की पूरी व्यवस्था की गई थी फिर बाद में राजा भोज ने महाकालेश्वर मंदिर की पुरानी प्रतिष्ठा को वापस स्थापित किया बल्कि इसका भव्य निर्माण कराया | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास |
महाकालेश्वर मंदिर के रहस्य
एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक मुर्दे की राख से भस्म आरती की जाती थी परंतु एक बार उज्जैन के शमशान में कोई भी चिता नहीं मिलने के कारण उस समय एक पुजारी ने अपने ही पुत्र की बलि देकर उसकी राख से भस्म आरती की थी जिससे भगवान महाकालेश्वर बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने उस पुजारी के पुत्र को जीवन दान देते हुए कहा
आज से कपिला गाय के गोबर से बने उपलों से मेरी भस्म आरती की जाएगी इसके बाद से ही यहां पर कपिला गाय के गोबर से बने उपलों से ही भस्म आरती की जाने लगी वर्तमान में जो महाकालेश्वर मंदिर है वह तीन खंडों में विभाजित है निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओमकालेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है इस मंदिर में नाग तक्षक के ऊपर भगवान शिव पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं
इस मंदिर के द्वार वर्ष में एक बार खोले जाते हैं नाग पंचमी के दिन ही इस मंदिर में आप दर्शन कर सकते हैं 12 ज्योतिर्लिंगों में से ही महाकालेश्वर एक सर्वोच्च ज्योतिर्लिंग है इस मंदिर के गर्भ गृह में एक गुफा है जो महाकाल से जुड़ी हुई है जहां भैरव बाबा का मंदिर स्थित है काल भैरव का मंदिर दुनिया का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान को मदिरा पिलाई जाती है
मुगल काल में इस शिवलिंग को नष्ट करने की कोशिश की गई थी जिसके कारण पुजारियों ने इसे छुपा दिया इसकी जगह दूसरा शिवलिंग रखकर उसकी पूजा करने लगे बाद में उस शिवलिंग को वही महाकाल के प्रांगण में अन्य जगह स्थापित कर दिया जिसे आज “जूना महाकाल” कहा जाता है | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास |
पौराणिक कथा
अवंती नगरी में एक ब्राह्मण रहा करता था वह अपने घर अग्नि की स्थापना कर प्रतिदिन अग्निहोत्र करते थे और वैदिक कर्मों के अनुष्ठान में लगे रहते थे भगवान शिव जी के परम भक्त वह ब्राह्मण प्रतिदिन पार्थिव लिंग का निर्माण कर उसकी पूजा करते थे उत्तम कर्म करने वाले उस ब्राह्मण का नाम वेद प्रिय था भगवान शिव जी के अनन्य भक्त थे उसके संस्कार के फल स्वरुप शिवजी की पूजा से उसके चार पुत्र हुए
वे तेजस्वी तथा माता-पिता के सद्गुणों के अनुरूप थे उन चारों पुत्रों के नाम देव प्रिया, प्रिय मेघा, संस्कृत और सुवृत्त थे उन दिनों रतनमाल पर्वत पर दूषण नाम वाला एक धर्म विरोधी असुर रहा करता था उस राक्षस को ब्रह्मा से अजयता का वर मिला था भारी उत्पात मचाने के बाद उस असुर ने भारी सेना लेकर उज्जैन के उन पवित्र कर्म निष्ठ ब्राह्मणों पर भी चढ़ाई कर दी
उस असुर की आज्ञा से चार भयानक दैत्य चारों दिशाओं में फैल गए थे उन देशों से जब सभी घबराने लगे तब शिव भगत भाइयों ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा आप लोग भगवान शिव पर भरोसा रखें इसके बाद वह चारों भाई भगवान शिव जी की तपस्या में लीन हो गए जब उस असुर ने उन चारों ब्राह्मणों को मारने के लिए शस्त्र उठाया तब उनके द्वारा पूजा गया पार्थिव लिंग एक खड्डे के रूप में बदल गया और उस समय उस गड्ढे से भगवान शिव जी भयानक रूप लेकर प्रकट हुए और वह महाकाल के रूप में पृथ्वी पर विख्यात हुए
भगवान शिव जी ने उस दैत्य से कहा कि तुम जैसे राक्षसों के संहार के लिए ही मैं प्रकट हुआ हूं इसके बाद भगवान शिव जी ने अपनी हूंकार से ही उन राक्षसों को भस्म कर डाला दूषण की कुछ सेना को भी उन्होंने मार गिराया और कुछ डर कर भाग गए इस प्रकार भगवान शिव जी ने दूषण नाम के राक्षस का वध कर दिया इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव जी का अभिवादन किया और आसमान से फूलों की वर्षा होने लगी इसके बाद उन चारों ब्राह्मणों को आश्वस्त करते हुए शिवजी ने कहा कि महाकाल परमेश्वर तुम लोगों पर बहुत परेशान है तुम लोग वर मांगो
इसके बाद उन ब्राह्मणों ने हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक कहा दुष्टों को दंड देने वाले महाकाल आप हम सबको इस संसार सागर से मुक्त कर दें और आप आम जनता के कल्याण तथा रक्षा करने के लिए यहीं हमेशा के लिए विराजमान हो जाए आप अपने दर्शन मात्र से ही सभी मनुष्यों का उद्धार करते रहे इसके बाद भगवान शिव जी ने उन ब्राह्मणों को सद्गति प्रदान की और अपने भक्तों की सुरक्षा के लिए उस गड्ढे में विराजमान हो गए इसके बाद वह भूमि भगवान शिव की पूजा स्थली बन गई इसके बाद भगवान शिव इस पृथ्वी पर “महाकालेश्वर” के नाम से प्रसिद्ध हुए | महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास |