किरण देवी का इतिहास,अकबर की योजना ,किरण देवी की प्रतिज्ञा ,किरण देवी और अकबर की कहानी, वीरांगना किरण देवी 

किरण देवी का इतिहास

किरण देवी सिसोदिया वंश की राजकुमारी थी अस्त्र शास्त्र में भी निपुण थी उन्होंने युद्ध कौशल की सभी शिक्षा ग्रहण कर रखी थी किरण देवी साहसी और निडर थी जब भारत पर अकबर का राज था तब अकबर नौरोज मेले का आयोजन करता था और नौरोज मेले वाले दिन दुकान सजती, खाना-पीना ,नाच गाना वह सब कुछ होता था उस दिन महल के निकट स्त्रियों का एक निजी बाजार लगता था

जिसे मीना बाजार भी कहते थे उस मेले में सिर्फ स्त्रियां ही जा सकती थी किसी पुरुष का वहां जाना सख्त मना होता था और कड़े पहरे का इंतजाम किया जाता था ताकि कोई पुरुष वहां प्रवेश न कर सके इस मेले में हिंदू, मुसलमान, अमीर और कई बड़े घराने की स्त्री आती थी अकबर इस मेले में बुर्का पहनकर जाता था और सुंदर स्त्रियों की खोज करता था दरअसल इस मेले का आयोजन इसीलिए करता था ताकि वह मेल के जरिए अपने लिए सुंदर स्त्रियों की खोज कर सकें

जिस स्त्री पर अकबर मोहित हो जाता था उसे अकबर की दासिया छल कपट से अकबर के महल में ले जाती थी और फिर अकबर उस स्त्री के साथ संबंध बनाता था कोई भी स्त्री अकबर के डर के कारण बाहर किसी को इस बारे में नहीं बताती थी एक बार अकबर बुर्का पहनकर सुंदर स्त्रियों की खोज कर ही रहा था कि उसकी नजर मेले में घूम रही किरण देवी पर पड़ी

किरण देवी मेवाड़ के राजा उदय सिंह के छोटे पुत्र शक्ति सिंह की बेटी थी और महाराणा प्रताप की भतीजी थी कुछ समय के बाद महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह के बीच मतभेद हो गया इस वजह से शक्ति सिंह अकबर से जा मिले शक्ति सिंह ने किरण देवी का विवाह पृथ्वीराज राठौड़ के साथ किया पृथ्वीराज राठौड़ भी अकबर के अधीन काम करते थे किरण देवी का इतिहास

अकबर की योजना 

अकबर ने किरण देवी के बारे में पता लगाया तो उसे पता चला कि वह तो उसी की सेनापति के पृथ्वीराज राठौर की बीवी है तो उसने एक योजना बनाई और राज्य से कहीं दूर पृथ्वीराज राठौर को युद्ध में भेज दिया और अपनी दासीयों के द्वारा रानी को महल में बुला लिया किरण देवी जब महल में पहुंची तो अकबर ने उन्हें अनेक प्रलोभन दिए उसने किरण देवी से कहा कि हम तुम्हें अपनी बेगम बनाना चाहते हैं तुम्हारी जगह पृथ्वीराज के झोपड़े में नहीं बल्कि हमारे इस सुंदर और भव्य महल में है किरण देवी ने उसे बहुत समझाने की कोशिश करी लेकिन अकबर किरण देवी को हासिल करने की ठान चुका था

और वह किरण देवी की तरफ बढ़ने लगा किरण देवी उसके इरादे समझ चुकी थी वे लगातार उसे मना करते हुए पीछे हटने लगी लेकिन कब तक वे पीछे हटती किरण देवी खुद को बचाने के उपाय सोचने लगी तभी उनकी नजर जमीन पर बिछे हुए कालीन पर पड़ी किरण देवी ने कालीन का किनारा पकड़कर उसे जोरदार झटका दिया ऐसा करते ही अकबर कालीन पर चल रहा था वह जोर से जमीन पर गिर गया

किरण देवी को संभलने का मौका मिल गया किरण देवी ने एकदम से अकबर की छाती पर अपना पैर रख उसे वहीं रोक दिया किरण देवी ने फिर अपनी कटारी निकाली और उसे अकबर की गर्दन पर रखी इसके बाद अकबर ने किरण देवी के गिरफ्त से निकलने की कोशिश करी, लेकिन वह नाकाम रहा उसे अपनी मौत दिखाई दे रही थी किरण देवी ने अकबर से कहा कि बोल तेरी आखिरी इच्छा क्या है

एक बादशाह होते हुए भी तूने इतना बड़ा पाप करने की कोशिश कि तुझे स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिए और उनके साथ बलात्कार करता है तू बादशाह नहीं बल्कि एक राक्षस है चेतावनी देते हुए किरण देवी बोली भले ही आज सारा भारत तुम्हारे सामने सर झुकाता है परंतु मेवाड़ का सिसोदिया वंश अभी भी अपना सिर ऊंचा किय खड़ा है मैं उस पवित्र राजवंश की कन्या हूं,मैं उन महाराणा प्रताप की भतीजी हूं जिनके नाम से तू भयभीत हो उठता है मेरी धमनियों में बप्पा रावल और राणा सांगा का रक्त बह रहा है हम राजपूत रमणिया अपने प्राणों से अधिक अपनी मर्यादा को मानती हैं और उसके लिए मर भी सकते हैं और मार भी सकती हैंकिरण देवी का इतिहास

किरण देवी की प्रतिज्ञा 

किरण देवी ने अखबार से कहा यदि तुम बचना चाहते हो तो अपनी मां और कुरान की सच्ची कसम खाकर प्रतिज्ञा करो कि आगे से नौरोज मेले का आयोजन नहीं करेगा और ना ही किसी स्त्री की इज्जत लूटेगा यदि तुमने ऐसा स्वीकार नहीं तो आज इसी तेज धार कटारी से तेरे प्राण ले लेती हूं अकबर को वास्तव में अनुभव हुआ कि वह मृत्यु के कितना निकट पहुंच चुका है

जीवन और मौत का फासला अब मीट चुका था अकबर ने किरण देवी की बात मान ली और कहा कि मुझे मेरी मां की सौगंध मैं आज से सभी स्त्रियों का सम्मान करूंगा और कुराने पाक की कसम खाकर कहता हूं कि आज ही नौरोज मेले को बंद करवाने का फरमान जारी कर दूंगा फिर किरण देवी के समक्ष वह हाथ जोड़कर अपने प्राणों की भीख मांगने लगा वीर पतिव्रता किरण देवी ने दया करके अकबर को छोड़ दिया और तुरंत अपने निवास लौट आई इस प्रकार एक पतिव्रता और साहसी महिला ने प्राणों की बाजी लगाकर ना केवल अपनी इज्जत की रक्षा की,बल्कि भविष्य में नारियों को अकबर की वासना का शिकार बनने से भी बचा लिया

और वास्तव में उसके बाद कभी नौरोज मेला नहीं लगा इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित सगत रासो में 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेंटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है इस प्रकार एक किरण देवी ने अपने प्राणों की बाजी लगाकर न सिर्फ अकबर को अपने कदमों में झुकाया बल्कि इस बात को भी साबित कर दिया कि जब औरत पर मुसीबत आती है तो वह चंडी का रूप धारण कर लेती है किरण देवी के साहस और वीरता को कोटि-कोटि प्रणाम

किरण देवी का इतिहास