कस्तूरबा गांधी का इतिहास, कस्तूरबा गांधी का जन्म , कस्तूरबा गांधी की यात्रा, कस्तूरबा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, कस्तूरबा गांधी की मृत्यु 

कस्तूरबा गांधी का इतिहास

 मोहनदास करमचंद गांधी को एक वकील से भारत की आजादी का नायक और भारत का राष्ट्रपिता बनने में काफी समय लगा था एक ऐसे व्यक्ति जिसे राष्ट्रपिता के रूप में माना जाता है उनके जीवन आंदोलनों एवं संघर्षों में उनकी एक अभिन्न साथी उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी थी कस्तूरबा गांधी को अधिकांश लोग “बा” के नाम से ही जानते हैं ‘बा’ का पूरा जीवन त्याग और तपस्या का जीवन था उन्होंने हमेशा बापू का सहयोग दिया

हर प्रकार की मुसीबतों और कष्टों में भी वह किसी प्रकार विचलित नहीं हुई थी स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है वह महिलाओं को संगठित करने का कार्य करती रही भारतवर्ष से अंग्रेजों को भगाने के लिए उन्होंने राष्ट्रीय एकता और भाईचारे का संदेश दिया एक भारतीय नारी के सारे गुण कस्तूरबा गांधी में मौजूद थे वे एक आदर्श पत्नी थी जिन्होंने प्रत्येक कार्य में पति का सहयोग दिया 

कस्तूरबा गांधी का जन्म 

कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 को पोरबंदर गुजरात में हुआ था और इनके पिताजी का नाम “गोकुलदास” था और इनकी माता जी का नाम “वज्र कुंवर” था कस्तूरबा के दो भाई थे इनके पिता अफ्रीका और मध्य पूर्व में अनाज और कपड़ा तथा सूती बाजारों में काम करते थे इनके पिता जी वहां के बाजारों के एक प्रमुख व्यापारी थे

वह कुछ समय तक पोरबंदर के मेयर थे व्यवसाय ज्यादा बढ़ा ना होने पर भी कुशल व्यवहार के धनी होने से इनके पिता का समाज में बहुत ही आदर सम्मान था कस्तूरबा गांधी की मां भी काफी सीधी सरल महिला थी धार्मिक स्वभाव के कारण वे भगवान के पूजा पाठ में ज्यादा समय बिताया करती थी मां के आचार विचारों का पूरा प्रभाव कस्तूरबा के ऊपर पड़ा था

कस्तूरबा और महात्मा गांधी के परिवार के सदस्य और उनके पिता आपस में घनिष्ठ मित्र थे दोनों के पिता ने इस मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने के लिए जब कस्तूरबा और महात्मा की उम्र मात्र  7 साल की थी उनकी सगाई कर दी सगाई के लगभग 6 साल बाद जब उन दोनों की उम्र 13 साल की थी तब 1883 में कस्तूरबा की शादी महात्मा गांधी से हुई थी उन दिनों बाल विवाह बुरा नहीं माना जाता था

गांधीजी की उम्र भी बराबर थी अपनी शादी के बाद कस्तूरबा राजकोट में महात्मा गांधी के परिवार के साथ रहने लगी वह अपने नए घर में घर के कामकाज करती थी और वहां पर अपनी सास और भाभी की सहायता करती थी शादी के शुरुआती दिनों में कस्तूरबा और महात्मा गांधी एक दूसरे के मित्र के रुप में रहते थे ना कि पति-पत्नी के रूप में जब धीरे-धीरे उनकी उम्र बढ़ी तो है एक दूसरे को पति-पत्नी की तरह समझने लगे

जब कस्तूरबा की शादी हुई तब उन्हें पढ़ना लिखना नहीं आता था उनकी शिक्षा की जिम्मेदारी गांधीजी ने ले ली और उन्हें वर्णमाला सिखाई तथा लिखने का अभ्यास कराया हालांकि कस्तूरबा अपने घरेलू जिम्मेदारियों के कारण ज्यादा ज्ञान अर्जित नहीं कर पाई थी कुछ वर्ष दांपत्य जीवन के बड़े ही सुख में गुजरे 18 वर्ष की उम्र में कस्तूरबा गांधी को मां बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और उन्होंने 1888 में अपने पहले पुत्र को जन्म दिया जिनका नाम ‘हीरालाल’ था | कस्तूरबा गांधी का इतिहास |

कस्तूरबा गांधी की यात्रा 

कस्तूरबा गांधी ने 28 अक्टूबर 1892 को अपने दूसरे बेटे ‘मणिलाल’ को जन्म दिया मणिलाल के जन्म के कुछ महीने बाद ही गांधीजी दक्षिण अफ्रीका चले गए और इसके बाद वे लगभग 3 साल बाद भारत वापस आए भारत लौटने पर वे लगभग 6 महीने भारत में रुके उसके बाद फिर से कस्तूरबा गांधी के साथ दक्षिण अफ्रीका लौट गए कस्तूरबा के लिए दक्षिण अफ्रीका बहुत ही अनजान देश था

वहां की जीवन शैली और रहन-सहन को अपनाना उनके लिए सबसे कठिन आई थी पर उन्होंने इन कठिनाइयों को पार किया और अपने आपको वहां की परिस्थितियों के अनुकूल बनाना प्रारंभ कर दिया उस समय वहां के भारतीयों की स्थिति काफी खराब थी बापू ने यहां रहते हुए हरिजनों के उत्थान हेतु काफी प्रयास किए कस्तूरबा और बापू ने गरीबों और हरिजनों की बहुत सेवा की थी

अफ्रीका में गोरी सरकार ने एक नया सैलरी अंतर प्रारंभ किया सरकार द्वारा विवाह की रजिस्ट्री संबंधी कानून स्वीकृत किया जाने लगा तो सब लोग आशंका करने लगे कि अब बहुत से भारतीयों का विवाह अवैध करार दे दिया जाएगा और गौरी सरकार भारतीयों की संपत्ति नष्ट कर देगी गोरी सरकार की यह योजना थी इसके खिलाफ बापू ने आंदोलन चलाया

गांधीजी की अनुगामिनी कस्तूरबा ने वहां की महिलाओं के बीच जाकर सत्याग्रह के प्रति उन्हें तैयार किया इसके बाद वहां की सरकार ने कस्तूरबा गांधी और बापू को जेल में बंद कर दिया बाद में बापू अपने इस सत्याग्रह में सफल हुए कस्तूरबा गांधी ने 1913 में दक्षिण अफ्रीका में भारतीय द्वारा किए जा रहे कई विरोधो एवं आंदोलनों में हिस्सा लिया था अफ्रीका में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 3 महीने की सजा सुनाई गई थी| कस्तूरबा गांधी का इतिहास |

कस्तूरबा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन 

भारत वापस आने के बाद भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में कस्तूरबा गांधी बहुत ही सक्रिय हो गई और इस तरह वह भारत की महिला स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी स्थान रखती है उन्होंने अपने पति की हर कठिनाई और समस्याओं में साथ और सुझाव दिया उन्होंने भारत की महिलाओं में देश प्रेम की भावना को जागृत किया

जब बिहार के चंपारण जिले में गांधी जी ने चंपारण सत्याग्रह ‘1917, किया तो कस्तूरबा अपने पति की सहायता के लिए अपने बेटे के साथ चंपारण गई उन्होंने किसानों की पत्नियों और बेटियों के साथ काम किया और उस अभियान में सक्रिय भूमिका निभाने लगी इसके अतिरिक्त उन्होंने गांधीजी के अन्य आंदोलनों में भी हर तरह से सहायता प्रदान की थी कस्तूरबा गांधी संयम और धैर्य की प्रतिमूर्ति थी

उन्होंने अपने शिष्ट व्यवहार और मधुर स्वभाव से गांधी जी को भी प्रभावित कर लिया था कस्तूरबा, बापू के लिए सांसारिक प्रेम से काफी ऊपर उठ गई थी सेवाग्राम और साबरमती आश्रम के लोगों के लिए वे साक्षात देवी और माता बन चुकी थी आश्रम वासियों के साथ मिलकर वे गांव-गांव जाती और गरीब तथा बेसहारा लोगों की मदद करती थी

विदेशी कपड़ों के बहिष्कार की बात शुरू हुई तो कस्तूरबा गांधी सूत कातने के लिए नित्य चरखा चलाती और लोगों के बीच जा- जाकर स्वदेशी कपड़ों को पहनने का संदेश देती कस्तूरबा ने भारत के स्वाधीनता आंदोलन में अनेक बार सक्रिय रुप से सहयोग किया वह ‘आगाखान महल’ में नजरबंद भी की गई फिर भी पति के सत्याग्रह कार्यक्रमों में सहयोग करती रही

जब ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ शुरू हो गया था तो गांधीजी को शिवाजी पार्क में सार्वजनिक बैठक को संबोधित करना था पर इस सभा को करने से पहले ही उन्हें कैद कर लिया गया था गांधीजी चाहते थे कि उनकी जगह कस्तूरबा गांधी इस सभा को संबोधित करें इसके बाद कस्तूरबा गांधी ने अपनी जिम्मेदारियों को समझा और जब वह उस सभा को संबोधित करने के लिए जा रही थी तब उन्हें रास्ते में गिरफ्तार कर लिया गया था

उस दिन पार्क में एक लाख से ज्यादा लोग थे और जब उन्होंने उनको गिरफ्तार होते देखा तब वे लोग बहुत ही क्रोधित हुए इसके बाद कस्तूरबा गांधी को कैद करके मुंबई जेल में भेजा गया कस्तूरबा ने सुशीला से कहा था कि “मुझे एहसास है कि मैं अब जिंदा जेल से बाहर नहीं आऊंगी” जिस जेल में उन्हें रखा गया था वह बहुत ही गंदा था और वह बीमार पड़ गई कुछ दिनों के बाद उन्हें पुणे में “आगा खान पैलेस” में रखा गया जहां गांधी जी को रखा गया था यह उनकी आखरी जेल की सजा थी | कस्तूरबा गांधी का इतिहास |

कस्तूरबा गांधी की मृत्यु 

कस्तूरबा गांधी का निरंतर त्याग और तपस्या और सेवा कार्यों से शरीर कमजोर होता चला गया था  कस्तूरबा गांधी की अंतिम इच्छा थी वह महात्मा गांधी को देखें ताकि वे उनके दर्शन कर दुनिया से विदा ले सके इसके बाद बापू को तुरंत सूचना दी गई और बापू आए महात्मा गांधी को देखकर कस्तूरबा गांधी एकदम से प्रसन्न हो गई और ऐसा लगा कि उनकी बड़ी मनोकामना पूरी हो गई हो

जनवरी 1944 में उन्हें दो बार दिल के दौरे पड़े और इसके बाद वह तभी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाई 22 फरवरी 1944 की शाम को उन्होंने महात्मा गांधी की गोद में “आगा खान पैलेस” शिविर में अपनी आखिरी सांस ली गांधी जी ने कहा था कि मैं कस्तूरबा के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता दूसरे दिन अंतिम संस्कार से पहले कस्तूरबा को स्नान कराने के बाद महात्मा गांधी ने अपनी हाथ से कते हुए सूत की साड़ी पहनाई, तुलसी की माला पहनाई और माथे पर कुमकुम और चंदन लगाया गया गांधी जी के कहने पर उनके पुत्र देवदास ने उनका दाह संस्कार किया था 

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