कर्मा बाई का जीवन परिचय, कर्मा बाई का जन्म, कर्मा बाई का विवाह, कर्मा बाई द्वारा भगवान को भोग , कर्मा को ईश्वर की प्राप्ति , कालवा में मंदिर , कर्मा बाई का निधन

कर्मा बाई का जन्म 

कर्मा बाई का जन्म नागौर जिले के कालवा गांव के किसान जीवनराम डूडी के घर माता रत्नीदेवी की कोख से 20 अगस्त 1615 ईसवी को हुआ था कर्मा बाई के पिता चौधरी जीवन राम ईश्वर में बहुत आस्था रखने वाले व्यक्ति थे उनका हमेशा नियम था कि जब तक भगवान कृष्ण की मूर्ति को जलपान नहीं कराते तब तक स्वयं भी जलपान नहीं ग्रहण करते थे

उन्होंने ईश्वर प्राप्ति के लिए अनेक तीर्थों का भ्रमण किया था जब कर्मा बाई का जन्म हुआ उस समय गांव में बहुत ही मूसलाधार बारिश हुई थी जिससे गांव में खुशियां फैल गई थी कर्माबाई पैदा होते ही हंसी थी, जो एक चमत्कार था एक बूढ़ी दाई ने तो कहा कि यह बालिका ईश्वर का अवतार है 

कर्मा बाई का विवाह 

कर्मा बाई का विवाह छोटी उम्र में ही अलवर जिले के ‘गढ़ी मामोड़’ गांव में ‘साहू’ गोत्र के लिखमाराम के साथ कर दिया गया था विवाह के कुछ समय बाद ही इनके पति की मृत्यु हो गई थी कर्मा बाई उस समय कालवा में ही थी

उनका अंतिम संस्कार करने के लिए वह ससुराल चली गई वह घर और खेत का सारा काम करती थी अतिथियों की खूब आवभगत करती थी कालवा ही नहीं आस पड़ोस के गांव में उसकी प्रशंसा होने लगी थी कर्मा ने आजीवन बाल विधवा के रूप में ही अपना जीवन भगवान की भक्ति में व्यतीत किया था 

कर्मा बाई द्वारा भगवान को भोग 

एक लोकगीत से पता चलता है कि इनके पिता भगवान के बड़े भगत थे और वह भगवान को भोग लगाकर ही भोजन ग्रहण करते थे एक दिन इनके माता-पिता तीर्थ यात्रा पर गए और भगवान की पूजा अर्चना का भोग लगाने की जिम्मेदारी बाई कर्मा को सौंप गए थे माता पिता के जाने के बाद अगले दिन कर्मा ने स्नान करके बाजरे की खिचड़ी बनाई उस पर खूब घी डाला और पूजा करके भोग लगाने के लिए भगवान की मूर्ति के पास आ गई

थाली सामने रखकर हाथ जोड़कर बोली हे प्रभु भूख लगे तब भोग लगा लेना तब तक मैं घर के बाकी काम निपटा लेती हूं इसके बाद वह काम करने लग गई और बीच-बीच में थाली देखने आ जाती उसने देखा कि भगवान ने तो खिचड़ी खाई ही नहीं जब भगवान ने भोग नहीं लगाया तो उसको चिंता होने लगी थी कहीं खिचड़ी में घी और गुड़ कम तो नहीं रह गया इसके बाद कर्मा ने उसमें और ज्यादा घी और गुड़ मिलाया और वहीं बैठ गई लेकिन भगवान ने फिर भी नहीं खाया

कर्मा ने कहा हे प्रभु भोग लगा लीजिए मेरे माता पिता आपको खिलाने की जिम्मेदारी मुझे देकर गए हैं इसलिए आपको भोग लगाने के बाद ही मैं खाना खाऊंगी लेकिन भगवान नहीं आए इसके बाद कर्मा ने भगवान से कहा कितनी देर कर दी प्रभु आप भी भूखे बैठे हो, मुझे भी भूखी बैठा रखा है कर्मा की खिचड़ी भी अब ठंडी हो गई थी

वह बोली मेरे माता पिता कई दिनों में आएंगे इसलिए तुम्हें मेरे हाथ की ही खिचड़ी खानी पड़ेगी इसलिए देर मत करो वरना मैं भूखी ही रह जाऊंगी शाम होने लगी कर्मा ने कुछ भी नहीं खाया था इस प्रकार कर्मा के 3 दिन बीत गए थे फिर एक दिन कर्मा को स्वपन में एक आवाज सुनाई दी कर्मा जल्दी उठो और मेरे लिए खिचड़ी बनाओ और तुमने  पर्दा तो किया ही नहीं ऐसे भोग कैसे लगाऊं

यह सुनकर कर्मा जल्दी से उठी और उसने गरम खिचड़ी बनाई और अपनी ओढ़नी का पर्दा करके भगवान को भोग लगाया इसके बाद उसी की छाया में श्रीकृष्ण ने खिचड़ी का भोग लगाया था जब कर्मा ने देखा तो थाली पूरी खाली हो गई यह सब देख कर कर्मा बोली भगवान इतनी सी बात थी तो पहले बता देते खुद भी भूखे रहे और मुझे भी भूखी रखा इसके बाद कर्मा ने भी खिचड़ी खाई जब तक कर्मा के माता-पिता नहीं आए तब तक रोज कर्मा खिचड़ी बनाती और श्रीकृष्ण भोग लगाने आ जाते 

कर्मा को ईश्वर की प्राप्ति 

कुछ दिनों बाद जब कर्मा के मां-बाप लौटे तो उन्होंने देखा कि गुड का भरा मटका खाली था तब उन्होंने कर्मा से पूछा कि कर्मा गुड कहां गया यह मटका कैसे खाली हो गया उसने बताया कि भगवान कृष्ण हर रोज भोग लगाने आते है इसलिए कहीं मीठा कम ना रह जाए मैं गुड ज्यादा डाल देती हूं उसने पहले दिन हुई परेशानी के बारे में भी बताया जिसको सुनकर माता-पिता हैरान रह गए

जिस ईश्वर को ढूंढने के लिए वह यात्रा पर गए थे, जिसे लोग ना जाने कहां कहां ढूंढ रहे हैं उसे उनकी बेटी ने अपने हाथ से बनी खिचड़ी खिलाई जब उन्हें यकीन नहीं हुआ तब कर्मा ने कहा आप कल देख लेना मैं खुद भगवान को भोग लगाऊंगी

दूसरे दिन कर्मा ने खिचड़ी बनाकर श्री कृष्ण को भोग लगाया और भगवान से प्रार्थना की, कि ईश्वर मेरे सत्य की रक्षा करना भक्त की पुकार सुनकर श्री कृष्णा खिचड़ी खाने प्रकट हो गए जीवन राम और उनकी पत्नी यह दृश्य देखकर हैरान थे उसी दिन से कर्मा बाई आस-पास के इलाके में विख्यात हो गई थी इस तरह करमा बाई के प्रेम में बंधे भगवान जगन्नाथ को भी प्रतिदिन सुबह खिचड़ी खाने जाना पड़ता था

प्रभु “जगन्नाथ” के पंडितों ने इस समस्या के समाधान के लिए राजभोग से पहले करमा बाई के नाम से खिचड़ी का भोग प्रतिदिन जगन्नाथ पुरी के मंदिर में लगाने लगे ताकि भगवान को जाना ना पड़े आज भी जगन्नाथ पुरी के मंदिर में कर्मा बाई की प्रीत का उदाहरण देखने को मिलता है जहां भगवान के मंदिर में कर्मा बाई का भी मंदिर है और उसके खिचड़ी का भोग प्रतिदिन भगवान को लगता है 

कालवा में मंदिर 

कर्मा बाई की भक्ति को ध्यान में रखते हुए उसके प्रभु में विलीन होने के बाद उस समय के जाट समाज ने उसके जन्म स्थान कालवा में मंदिर बनाना चाहा, परंतु उस जमाने में राजपूत ठाकुरों का राज होने के कारण मंदिर नहीं बनाने दिया

ठाकुर यह नहीं चाहते थे कि जाटों की कोई औरत पूजनीय हो, ना ही यह चाहते थे कि इस समाज में कोई इतना सम्मान पाएं कि वह महान होकर इतिहास के पन्नों में अमर हो जाए ठाकुरों ने उसकी भक्ति को उजागर नहीं होने दिया कुछ समय के बाद चंद्र प्रकाश डूडी और राम डूडी ने अपनी जमीन मां कर्मा बाई के मंदिर के नाम कर दी और जन सहयोग से अब यह मंदिर बन चुका है 

कर्मा बाई का निधन

कर्मा बाई का निधन 25 जुलाई 1634 ईस्वी में हुआ था 

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