कन्हाई लाल दत्त का जीवन परिचय,कन्हाई लाल दत्त का जन्म,क्रांति की भावना,कन्हाई लाल दत्त का बलिदान , आज़ादी के लिए महज़ 20 साल की उम्र में फांसी के फंदे पर झूल गए
कन्हाई लाल दत्त का जीवन परिचय
भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वीर क्रांतिकारी शहीदों में कन्हाई लाल दत्त का नाम भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है उन्होंने 1905 में बंगाल के विभाजन का पूर्ण विरोध किया और क्रांतिकारी वरिंदर कुमार के दल में शामिल हो गए 1907 बीतने के साथ ही उस साल की शुरुआत हुई
जिसे भारत की आजादी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया यह वही साल था जब युवाओं ने अपनी माताओं के आंचल और जीवन के सुख का मोह त्याग कर भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने का प्रण ठाना और अपने खून से इंकलाब लिख दिया था इनके दल का एक युवक नरेंद्र गोस्वामी अंग्रेजों का सरकारी मुखबिर बन गया था क्रांतिकारियों ने इस से बदला लेने का निश्चय कर लिया और अपना यह कार्य पूर्ण करने के बाद ही कन्हाई लाल पकड़े गए और उन्हें फांसी दे दी गई कन्हाई लाल दत्त का जीवन परिचय
कन्हाई लाल दत्त का जन्म
कन्हाई लाल दत्त का जन्म 30 अगस्त 1888 को बंगाल के हुगली जिले के चंद्र नगर मे हुआ था इनके पिता जी का नाम चुनीलाल दत्त था जो कि मुंबई में ब्रिटिश भारत सरकार सेवा में कार्यरत थे जब यह 5 वर्ष के हुए तब अपने पिता के पास मुंबई चले गए यहीं पर इनकी प्रारंभिक शिक्षा शुरू हुई थी
कन्हाई लाल दत्त भले ही अपने पिता के साथ मुंबई रहते थे परंतु उनका मन आज भी बंगाल के चंद्र नगर में ही बसा हुआ था समय-समय पर इनको चंद्र नगर की यादें अपनी और खींचती थी आखिर में कन्हाई लाल ने अपनी मातृभूमि की पुकार सुन ली और वह वापस चंद्रनगर आ गए यहीं से उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की बी.ए. की परीक्षा समाप्त होते ही कन्हैलाल कोलकाता चले गए और प्रसिद्ध क्रांतिकारी बरिंदर कुमार घोष के दल में सम्मिलित हो गए यहां भी उसी मकान में रहते थे
जहां क्रांतिकारियों के लिए अस्त्र-शस्त्र और बम आदि रखे जाते थे अप्रैल 1908 में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में किंग फोर्ड पर आक्रमण किया इसी सिलसिले में 2 मई 1908 को कन्हाई लाल दत्त, अरविंद घोष, वरिंदर कुमार आदि गिरफ्तार कर लिए गए इस मुकदमे में नरेन गोस्वामी नाम का एक अभियुक्त सरकारी मुखबिर बन गया कन्हाई लाल दत्त का जीवन परिचय
क्रांति की भावना
कन्हाई लाल के मन में बचपन से ही देश को आजादी दिलाने की लालसा थी छोटी उम्र में ही इनके अंदर राजनीतिक गतिविधियां बढ़ गई थी परिणाम स्वरूप ब्रिटिश सरकार ने इनकी डिग्री रोक दी थी इसके बाद करना ही लाल प्रोफेसर चारू चंद्र राय के प्रभाव में आए प्रोफेसर राय वही थे
जिन्होंने चंद्र नगर में “युगांतर पार्टी” की स्थापना की थी इस पार्टी में आने के बाद कन्हैलाल का संपर्क कुछ अन्य क्रांतिकारियों से भी हुआ बाद में इन्हीं की सहायता से कन्हाई लाल ने पिस्तौल चलाना और निशाना साधना सीखा था 17 वर्ष की आयु में जहां लोग खुद को बच्चा मानकर भविष्य की चिंता फिक्र से कोसों दूर रहते हैं वही कन्हाई लाल ने इस उम्र में भारत मां को गुलामी की जंजीरों से आजाद करने के लिए हाथों में विद्रोह की मशाल थाम ली थी कन्हाई लाल दत्त का जीवन परिचय
कन्हाई लाल दत्त का बलिदान
कन्हाई लाल दत्त को मुजफ्फरपुर बम हमले में शामिल होने के कारण अंग्रेजों ने 1908 में गिरफ्तार किया था उनके साथ कम से कम 40 क्रांतिकारी भी पकड़े गए थे कुछ महीने बाद दत्त और उनके मित्र सत्येंद्र नाथ बोस और नरेंद्र नाथ गोसाई की हत्या का दोषी ठहराया गया गोसाई पहले क्रांतिकारी था लेकिन बाद में वह अंग्रेजों से मिलकर सरकारी गवाह बन गया था
गोसाई की गवाही के कारण ही ब्रिटिश पुलिस ने अनेक स्वाधीनता सेनानियों के नाम आरोप पत्र तैयार किए इसका बदला लेने के लिए सत्येंद्र नाथ और कन्हाई लाल ने जेल में ही गोसाई को गोली मार दी थी नरेंद्र नाथ की हत्या को लेकर जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष कन्हाई लाल ने स्पष्ट बयान दिया नरेंद्र नाथ की हत्या इसलिए की गई थी क्योंकि वह गद्दार था हादसे के 1 दिन पहले ब्रिटिश जेल के वार्डन ने कन्हाई लाल को मुस्कुराता देख कर कहा कल जब फांसी पर लटकाया जाएगा तो तुम्हारी यह मुस्कान गायब हो जाएगी
सुबह भी कन्हाई लाल मुस्कुरा रहे थे दत्ता की मुस्कुराहट देखकर वार्डन हैरान रह गया 10 नवंबर 1908 को कोलकाता के अलीपुर जेल में फांसी दे दी गई थी उस समय केवल इनकी आयु 20 वर्ष की थी राष्ट्र सेवा के लिए कन्हाई लाल के उत्साह ने जतिन रासबिहारी बोस मास्टर डा सूर्य सेन और उनके समूह के सदस्य सहित अनेक महान बंगाली क्रांतिकारियों के दिलों में आजादी के ज्वाला और तेज कर दी उनके अंतिम संस्कार में लोगों की भारी भीड़ जुटी और उनकी चिता की आग ठंडी होने तक लोग वहां जमे रहे इससे अंग्रेज सरकार डर गई
उसी साल 21 नवंबर को जब सत्येंद्र नाथ बोस को फांसी की सजा सुनाई गई तो अंग्रेजों ने उनका शव उनके परिजनों को नहीं सौंपा और खुद ही अंतिम संस्कार कर दिया अंग्रेजों को डर था कि लोग जुड़ेंगे तो उनके खिलाफ आंदोलन और तेज होता चला जाएगा कन्हैयालाल दत्त जैसे शहीदों के बलिदान और प्रीतम देश सेवा का हम सभी लोग सदैव ऋणी रहेंगे
कन्हाई लाल दत्त का जीवन परिचय