ऋषि कश्यप का इतिहास,कालू बाबा और नारद मुनि का संबंध ,कालू बाबा का मंदिर,कालू बाबा मंदिर की विशेषता, कालू बाबा की साधना 

ऋषि कश्यप का इतिहास 

ऋषि कश्यप का मंदिर देहरादून उत्तराखंड में है इन्हें “कालू झिमर” के नाम से भी जाना जाता है जब कालू बाबा भक्त नहीं थे भक्त से पहले वह मछुआरे का कार्य करते थे मछली पकड़ने का कार्य करते थे उनकी रोजी-रोटी उसी से चलती थी पूरा परिवार उसी पर निर्भर था तो उनका कारोबार अच्छे से चल रहा था तो धीरे-धीरे समय बीतता गया तो वहां पर एक राजा आए वह बड़े धार्मिक इंसान थे अध्यात्मिक इंसान थे

उन्होंने अपने राज्य में आदेश दिया कि मेरे यहां पर कोई भी जीव हत्या नहीं करेगा किसी भी तरह की सट्टा नहीं करेगा और अगर कोई जीव हत्या करता है तो उसको मृत्युदंड दिया जाएगा फांसी की सजा दी जाएगी तो यह सब सुनकर कालू बाबा जी परेशान हो गए वह सोचने लगे कि घर कैसे चलेगा बड़ी समस्या आ गई कि वह क्या करें कुछ समय बाद उनके दिमाग में विचार आया कि क्या करें और काफी दिन बीत गए और मछली भी काफी बड़ी बड़ी हो गई थी

अब कालू बाबा जी ने सोचा अगर एक- दो मछली भी हाथ लग जाए तो कई दिन का काम हो जाएगा इसके बाद वह अपना जाल उठाते हैं और घर से निकल जाते हैं एक तालाब में पहुंच जाते हैं सर्दी का मौसम था थोड़ा पैदल चलने के बाद उन्हें ठंड लगने लगी और उन्होंने आसपास से लकड़ियां इकट्ठी कर के वहां पर आग जला ली और अपने शरीर को गर्म कर लिया इसके बाद कालू बाबा मछली पकड़ने के लिए तलाब में जाते हैं जैसे ही वह पानी के अंदर जाते हैं तो उन्हें सामने से राजा अपने हाथी पर सवार होकर आते हुए दिखाई देता है

राजा को देखकर वह डर जाते हैं और उनके दिमाग में एक विचार आता है कि जो अग्नि मैंने जलाई थी उसकी राख को यदि मैं अपने पूरे शरीर पर लगा लूं तो राजा मुझे संत या महात्मा समझेंगे और इसके बाद कालू बाबा ने पानी से बाहर आकर ऐसा ही किया जब राजा उनके पास आते हैं तो उन्हें संत समझ कर उनके चरण स्पर्श करते हैं जब राजा उनके साथ बातचीत करते हैं तो कालू बाबा आसन लगाए हुए मौन अवस्था में बैठे रहते हैं

क्योंकि कालू बाबा को डर था यदि मैं कुछ बोलूंगा तो राजा मुझे पहचान लेगा और मौत के घाट उतार देगा इसके बाद राजा कालू बाबा को प्रणाम करके और उनके चरणों में कुछ सोने की अशर्फियां रख कर वापस चले जाते हैं जब कालू बाबा उनके जाने के बाद आंखें खोलता है तो देखते हैं कि उसके सामने बहुत सारा धन रखा हुआ है और वह उसे देखकर बहुत खुश हो जाता है और वह सोचता है कि मैंने तो भगवान के लिए थोड़ा सा ही ढोंग रचा था

जिसके कारण मुझे इतना धन मिल गया इसके बाद कालू का बस सोचता है कि यदि मुझे थोड़ा सा ढोंग करने से इतनी सब चीजें मिल गई है तो क्यों ना मैं सच में भगवान की तपस्या करूं जिसके कारण मुझे जीवन में हर चीज मिल जाए इसके बाद कालू बाबा भगवान की पूजा पाठ करना शुरू कर देते हैं और वह वहीं पर अपना आसन रमा लेते हैं

जब कालू बाबा कई दिनों तक घर नहीं पहुंचते हैं तो उनकी पत्नी को उनकी चिंता होने लगती है और वह कालू बाबा को ढूंढने के लिए निकल पड़ती है जब वह उस तालाब के पास पहुंचती है तो वह देखती है कि उनका पति तपस्या में बैठा हुआ था कालू बाबा को इस प्रकार बैठा देखकर वह अपने पति से पूछती है कि आप यहां पर इस प्रकार क्यों बैठे हुए हो इसके बाद कालू बाबा अपनी पत्नी से कहता है कि अब मैं भगवान का सच्चा पुजारी बन गया हूं

मैं अब केवल भगवान की भक्ति ही करूंगा इसके बाद उनकी पत्नी उन्हें घर चलने के लिए जिद करती है तो वह अपनी पत्नी के साथ घर वापस आ जाते हैं उनकी पत्नी सोचती है कि यदि यह पुजारी बन जाएंगे तो घर का गुजारा कैसे होगा इसलिए वह  कालू बाबा को सुबह होते ही मछली पकड़ने के लिए भेज देती है परंतु कालू बाबा वहां जंगल में जाकर तपस्या करने लग जाते हैं और शाम के समय खाली हाथ घर लौट आते हैं

घर लौटते हैं तो उनकी पत्नी पूछती है कि आप मछली पकड़ कर क्यों नहीं लाए अब घर का गुजारा कैसे होगा, तो वह बताते हैं कि हर तलाब पर राजा का पहरा है इसलिए मैं मछली नहीं पकड़ सकता कालू बाबा ने उस दिन के बाद जीव हत्या करना छोड़ दिया था वह अपनी पत्नी से झूठ बोल रहा था इस प्रकार धीरे-धीरे समय बीतता गया और कालू बाबा को ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है | ऋषि कश्यप का इतिहास

कालू बाबा और नारद मुनि का संबंध 

कालू बाबा को नारद मुनि का गुरु माना जाता है स्वर्ग लोक में एक नारद मुनि ऐसे व्यक्ति थे जो सशरीर वहां जाते थे इस बात से देवता गण बहुत ही नाराज थे क्योंकि स्वर्ग लोक में वही व्यक्ति जाता था जो उच्च स्थान प्राप्त करता था सभी देवताओं ने नारद मुनि से कहा कि तुम्हें स्वर्ग में आने के लिए धरती पर जन्म लेना होगा और धरती पर जिस मनुष्य से तुम्हारी सबसे पहली भेंट होगी वही तुम्हारा गुरु होगा

जब नारद मुनि धरती पर जाते हैं तो उन्हें सबसे पहले कालू बाबा मिलते हैं कालू बाबा को देखते हैं तो वह अपने कंधे पर मछली का जाल लिए हुए जा रहे थे तब नारद मुनि ने सोचा कि यह कोई हत्यारा है जो कि मछली पकड़ने का कार्य करता है कालू बाबा को हत्यारा समझकर नारद मुनि इंद्रलोक वापस लौट आते हैं परंतु उस समय कालू बाबा ने सभी सिद्धियां प्राप्त कर ली थी

वह अपने परिवार वालों को खुश करने के लिए घर से जाल लेकर निकलते थे और जंगल में जाकर तपस्या करते थे जंगल में उन्होंने तपस्या करके ज्ञान प्राप्त कर लिया था जब नारद जी सभी देवताओं को बताते हैं कि मुझे जो सबसे पहला व्यक्ति मिला वह एक मछुआरा है जो कि मछली पकड़ने का काम करता है मैं उसे अपना गुरु नहीं मान सकता

कालू बाबा को गुरु न मानने पर सभी देवता नारदजी से क्रोधित हो जाते हैं और उन्हें श्राप देते हैं कि जब तक तुम अपनी 84लाख योनियों को पूरा नहीं कर लोगे तब तक तुम्हें स्वर्ग में आने की अनुमति नहीं है इसके बाद नारद जी भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और वहां जाकर सारी घटना का वृतांत सुनाते है इसके बाद भगवान विष्णु नारद जी को समझाते हैं कि

अब यह एक मछुआरे नहीं है इन्होंने सिद्धियां प्राप्त कर ज्ञान प्राप्त कर लिया है और यह ज्ञानी हो गए हैं इन्हें अपना गुरु बना लीजिए इसके बाद नारद जी कश्यप ऋषि के शरण में जाते हैं और उनसे माफी मांगते हैं जब यह कश्यप ऋषि को बताते हैं कि मुझे 84लाख योनियों का श्राप मिला है तो ऋषि कश्यप इन्हें कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के पास जाइए और वहां पर 84लाख योनियों का चित्र बनाइए और उनके चक्कर लगाइए जिससे आपको इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी इसके बाद नारद जी भगवान विष्णु के पास जाते हैं और भगवान विष्णु 84लाख जीव-जंतुओं के चित्र बनाते हैं और नारद जी उनका चक्कर लगाते हैं ऋषि कश्यप का इतिहास

कालू बाबा का मंदिर

बताया जाता है कि जब एक तांगेवाला इनके मंदिर के सामने से गुजर रहा था तब कालू बाबा ने वेश बदलकर उस व्यक्ति से गुड मांगा था तब उस व्यक्ति ने कहा कि मेरी बैलगाड़ी में गुड नहीं गोबर है और उसने कालू बाबा को ऐसा कह कर अपमानित किया था जब उस व्यक्ति ने घर जाकर अपनी बैलगाड़ी को देखा तो उसमें सच में गोबर था और उसने वापस आकर कालू बाबा से अपनी गलती की माफी मांगी तो कालू बाबा ने उसकी बैलगाड़ी में फिर से गुड को भर दिया

तभी से माना जाता है कि कालू बाबा को प्रसाद के रूप में गुड़ चढ़ाया जाता है कालू बाबा को घेराव बिल्कुल भी पसंद नहीं है कहा जाता है कि जब भी इनके मंदिर को बनाया जाता है तो उसकी छत और दीवारें ढह जाती है परंतु किसी को कोई भी नुकसान नहीं होता है कालू बाबा को प्रकृति से बहुत ही लगाव था वह हमेशा प्रकृति को देखना चाहते थे उसे जुड़े रहना चाहते थे कालू बाबा एक सज्जन व्यक्ति थे वह हमेशा मनुष्य और पशुओं की सहायता और उनका कल्याण करना चाहते हैं ऋषि कश्यप का इतिहास