झलकारी बाई का इतिहास ,झलकारी बाई का जन्म,झलकारी का अंग्रेजों के साथ युद्ध ,झलकारी बाई की मृत्यु,झलकारी बाई को प्राप्त सम्मान
झलकारी बाई का इतिहास
“जा कर रण में ललकारी थी, वह तो झांसी की झलकारी थी” गोरो से लड़ना सिखा गई ,इतिहास में झलक रही वह भारत की नारी थी”
देश के लिए मर मिटने वाले झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम हर किसी के दिल में बसा है कोई अगर बुलाना भी चाहे तो भी भारत मां की इस बेटी को नहीं भुला सकता लेकिन रानी लक्ष्मीबाई के साथ ही देश की एक और बेटी थी
जिसका सर पर न रानी का ताज था और ना ही सत्ता फिर भी अपनी मिट्टी के लिए वह जी जान से लड़ी और इतिहास में अपना नाम दर्ज करा गई एक ऐसी वीरांगना जिसने अपनी रानी और अपने देश को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की परछाई बनकर अंग्रेजों से लोहा लेने वाली झलकारी बाई झलकारी बाई का इतिहास
झलकारी बाई का जन्म
झलकारी बाई का जन्म 22 नवंबर 1830 को उत्तर प्रदेश के झांसी के पास के “भोजिला” गांव में एक परिवार में हुआ था झलकारी बाई के पिता का नाम ‘सदोवर सिंह’ और माता का नाम जमुना देवी था जब झलकारी बाई बहुत छोटी थी तब उनकी मां की मृत्यु हो गई थी उनके पिता ने उन्हें एक पुत्र की तरह पाला इन्हें घुड़सवारी,तीर चलाना, तलवारबाजी करने जैसे सभी युद्ध कौशल सिखाए थे
झलकारी बाई ने कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी फिर भी वे किसी भी कुशल और अनुभवी योद्धा से कम नहीं थी रानी लक्ष्मीबाई की तरह उनकी बहादुरी के चर्चे भी बचपन से ही होने लगे थे मेघवंशी समाज में जन्मी झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं की देखरेख वह जंगल से लकड़ियां इकट्ठा करने का काम भी करती थी एक बार जंगल में झलकारी की मुठभेड़ 1 बाघ से हो गई थी और उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से उसे मार गिराया था
उस समय उनकी आयु केवल 12 वर्ष की थी जब उन्होंने पूरी घटना सब को बताई तब यह बात पूरी झांसी जिले में आग की तरह फैल गई एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गांव के एक व्यवसाई पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था झलकारी जितनी बहादुर थी उतनी बहादुर सैनिक से उनका विवाह हुआ था
यह वीर सैनिक पूर्ण था जो झांसी की सेना में अपनी बहादुरी के लिए प्रसिद्ध था विवाह के बाद जब झलकारी झांसी आई तो एक बार गौरी पूजा के अवसर पर गांव की अन्य महिलाओं के साथ महारानी को सम्मान देने झांसी के किले में गई जब रानी लक्ष्मीबाई ने उन्हें देखा तो दंग रह गई झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखती थी साथ ही जब रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी की बहादुरी के किस्से सुने तो वह उनसे प्रभावित हुए बिना अपने आप को रोक नहीं सकी इसके बाद रानी लक्ष्मीबाई ने झलकारी को तुरंत ही दुर्गा सेना में भर्ती करने का आदेश दे दिया
झलकारी ने यहां अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना ,और तलवार बाजी का प्रशिक्षण लिया पहले से ही इन कलाओं में कौशल झलकारी इतनी पारंगत हो गई कि जल्दी ही उन्हें दुर्गा सेना का सेनापति बना दिया सेना में ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था कई बार उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई की अनुपस्थिति में अंग्रेजों को चकमा दिया था हमशक्ल होने के कारण कोई भी उन्हें पहचान नहीं पाता था
झलकारी का अंग्रेजों के साथ युद्ध
इसके बाद 1857 के विद्रोह के समय जनरल हयूरोज ने अपनी विशाल सेना के साथ 23 मार्च 1857 को झांसी पर आक्रमण किया और रानी ने वीरता पूर्वक अपने सैन्य दल से उस विशाल सेना का सामना किया रानी कालपी में पेशवा द्वारा सहायता की प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन उन्हें कोई सहायता नहीं मिल सकी क्योंकि तात्या टोपे जनरल हयूरोज से पराजित हो चुके थे
इसके बाद अंग्रेजी सेना झांसी में घुस गई और रानी अपने लोगों को बचाने के लिए जी जान से लड़ने लगी ऐसे में झलकारी बाई ने रानी लक्ष्मीबाई के प्राण बचाने के लिए खुद को रानी बताते हुए लड़ने का निश्चय किया उन्होंने पूरी अंग्रेजी सेना को भ्रम में रखा था ताकि रानी लक्ष्मीबाई सुरक्षित निकल सके एक बुंदेलखंडी कहानी के अनुसार झलकारी बाई किले से बाहर निकलकर जनरल यूरोज के शिविर में पहुंची
ब्रिटिश शिविर में पहुंचने पर झलकारी बाई ने चिल्लाकर कहा कि वह जनरल यूरोज से मिलना चाहती है वह ब्रिटिश अफसर और उसके सैनिक खुश हुए कि उन्होंने झांसी पर ही कब्जा नहीं किया बल्कि रानी को भी जीवित पकड़ लिया है यह झलकारी की रणनीति थी कि वह अंग्रेजों को उलझाए रखें ताकि रानी लक्ष्मीबाई को अपनी ताकत जुटाने का समय मिल सके वह ब्रिटिश शासक जो झलकारी बाई को रानी लक्ष्मीबाई समझ रहा था
उसने झलकारी बाई से पूछा कि तुम्हारे साथ क्या किया जाना चाहिए इसके बाद झलकारी बाई ने दृढ़ता से कहा कि चाहे मुझे फांसी दे दो झलकारी के साहस को देखकर उस जनरल ने कहा यदि भारत की 1% महिला भी उनके जैसी हो जाए ब्रिटिश सरकार को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा माना जाता है कि युद्ध के बाद उन्हें छोड़ दिया गया था और 1890 में उनकी मृत्यु हुई थी झलकारी बाई का इतिहास
झलकारी बाई की मृत्यु
कुछ लोगों का मानना है कि 4 अप्रैल 1858 को युद्ध में झलकारी बाई को वीरगति प्राप्त हुई थी युद्ध के बाद जब अंग्रेजों को पता चला कि जिस वीरांगना ने उन्हें भ्रम में रखा था महारानी लक्ष्मीबाई नहीं बल्कि उनकी हमशक्ल झलकारी बाई थी झलकारी बाई का इतिहास
झलकारी बाई को प्राप्त सम्मान
विडंबना ही कह लीजिए कि देश के लिए अपने प्राणों की भेंट चढ़ा देने वाली भारत की इस बेटी को इतिहास में बहुत अधिक स्थान नहीं मिला परंतु उनके सम्मान में भारत सरकार ने उनके नाम पर पोस्ट और टेलीग्राम स्टैंप जारी किया साथ ही भारतीय पुरातात्विक सर्वे ने अपने पंचमहल के म्यूजियम में झांसी के किले में झलकारी बाई का भी उल्लेख किया है झलकारी बाई का उल्लेख कई क्षेत्र लेखकों द्वारा अपनी रचनाओं में दिखाया गया है
झलकारी बाई का इतिहास