जस्सा सिंह आहलूवालिया का इतिहास , जस्सा सिंह आहलूवालिया का जन्म,दिल्ली पर सिखों का कब्जा ,खालसा पंथ का झंडा फहराया ,जस्सा सिंह आहलूवालिया का बलिदान

जस्सा सिंह आहलूवालिया का इतिहास 

मुगलों को खदेड़ कर लाल किला फ़तेह करने वाले सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया बहुत ही बलशाली योद्धा थे इतिहास इस बात की तस्दीक करता है कि दिल्ली के लाल किले पर हमेशा से ही मुस्लिम शासकों का राज रहा है लेकिन सन 1783 में ऐसा पहली बार हुआ जब सिख सेना ने बादशाह शाह आलम को घुटनों पर ला दिया और लाल किले पर केसरी निशान साहिब झंडा लहराया गया था

इससे पहले दिल्ली में कई सिख गुरुओं को शहीद किया गया था लेकिन उन जगहो पर ना तो कोई गुरुद्वारा बनाया गया और ना ही सिखों को इसका अधिकार दिया गया था इसके साथ ही इसी दीवान ए आम में बैठकर 1783मे 67 वर्ष पूर्व सिखों के बहादुर योद्धा बाबा बंदा सिंह बहादुर को 740 सिखों के साथ शहीद करने का फरमान सुनाया गया था इस सबको देखते हुए बाबा बघेल सिंह की अगुवाई में  जस्सा सिंह आहलूवालिया और जत्थेदार जस्सा सिंह रामगढ़िया ने मुगलों पर आक्रमण कर दिया

इसमें जत्थेदार, जस्सा सिंह आहलूवालिया की बेहद अहम भूमिका रही और उनकी वीरता बहादुरी को देखते हुए “दीवान ए आम” में उन्हें “सुल्ताने कॉम” की उपाधि दी गई आहलूवालिया को लाल किले में बादशाह के पद पर बैठने के लिए कहा गया लेकिन उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि सिख धर्म में बादशाह का कोई सिद्धांत नहीं है जस्सा सिंह आहलूवालिया का इतिहास 

 जस्सा सिंह आहलूवालिया का जन्म

जस्सा सिंह आहलूवालिया का जन्म 3 मई 1718 को लाहौर के गांव आहलू में हुआ इन्होंने बचपन में ही युद्ध कला में महारत हासिल कर ली थी उनकी इस कला को देखते हुए 1748 में नवाब कपूर सिंह ने जस्सा सिंह आहलूवालिया को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया इस प्रकार नवाब कपूर सिंह के मार्गदर्शन में उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई और उन्हें सिख नेताओं की पहली पंक्ति के नेताओं के बीच जल्द ही गिना जाने लगा 1748 में नवाब कपूर सिंह की सलाह पर 65 समूह जो अस्तित्व में आए थे उन्हें फिर से 11 समूह में बांट दिया गया और 11 समूह की सभा को दल खालसा नाम दिया गया

जस्सा सिंह आहलूवालिया को उनकी अद्भुत क्षमता के कारण सिखों का कमांडर नियुक्त किया गया सन 1761मे जस्सा सिंह आहलूवालिया के कुशल नेतृत्व में सिखों ने पानीपत की लड़ाई से लौट रहे अहमद शाह अब्दाली पर हमला किया और 2200 तो हिंदू महिलाओं को उसके चंगुल से रिहा करा कर सकुशल उनके घर पहुंचाया अब इनका निशाना दिल्ली था इसके लिए बाबा बघेल सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया ने मिलकर एक रणनीति बनाई

वैसे तो यह तीनों अलग-अलग क्षेत्र से थे लेकिन जब भी इस युद्ध की बारी आई तो यह तीनों एक हो गए और इनकी सेना भी एक हो गई क्योंकि बाबा बघेल सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया पीछे से ही दुश्मनों को पराजित करते हुए आ रहे थे

इसलिए इनकी सेना ने यमुना तक अपने पांव फैला लिए इस समय तक पानीपत के तृतीय युद्ध में अहमद शाह अब्दाली से पराजित होने के बाद मराठों की शक्ति बेहद कम हो गई थी और अंग्रेज दिल्ली में अपनी जगह बनाने में लगे हुए थे ऐसी परिस्थितियों का लाभ उठाकर सिखों सेनाओं ने बार-बार यमुना पार कर दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों पर आक्रमण किए जस्सा सिंह आहलूवालिया का इतिहास 

दिल्ली पर सिखों का कब्जा 

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की एक किताब दिल्ली फतह दिवस के अनुसार दिल्ली के लाल किले पर कब्जा करने से पहले बाबा बघेल सिंह और जस्सा सिंह आहलूवालिया ने गंगा यमुना के बीच कई क्षेत्रों पर आक्रमण कर उनसे लगान वसूला और वहां के नवाबों की दौलत पर कब्जा कर लिया यहां से वसूले गए धन में से जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कुछ राशि अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के कारण 1762 में तबाह हुए श्री दरबार साहिब अमृतसर के निर्माण के लिए भेज दी थी

सिखों के बार-बार आक्रमण ने दिल्ली के मुगल सम्राट आलम को परेशान कर दिया था इस संबंध में उसने अपने वजीरो को सिक्खों से बातचीत के लिए कहा लेकिन कोई हल न निकला इसके बाद सिख सेना ने 12 अप्रैल 1781 को यमुनापार की और दिल्ली से 32 मील दूर बागपत पर आक्रमण कर दिया इसके बाद विजई अभियान को जारी रखते हुए उन्होंने 16 अप्रैल को शाहदरा और परपरगंज पर हमला बोल दिया 8 अप्रैल 1783 को बाबा बघेल सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया की अगुवाई में 40000 सैनिक बुराड़ी घाट पारकर दिल्ली में दाखिल हुए

आहलूवालिया के निर्देश पर सेना को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया 5000 सिपाही मजनू के टीले पर तैनात कर दिए गए, 5000 सिपाहियों की दूसरी टुकड़ी अजमेरी गेट पर तैनात की गई और बाकी बची 30,000 की सेना जिसमें अधिकतर घुड़सवार थे उनको सब्जी मंडी व कश्मीरी गेट के स्थान पर खड़ा कर दिया गया जिसे आजकल “तीस हजारी” के नाम से जाना जाता है तीस हजारी को यह नाम लाल किले पर आक्रमण करने वाले 30 हजार सिख सैनिकों के कारण ही दिया गया था

जो नंगी तलवार लेकर मुगलों का काम तमाम करने के लिए वहां पर तैनात थे यह सेना मलका गंज, मुगलपुरा और सब्जी मंडी में फैल गई सिखसेना की दिल्ली में होने की खबर सुनकर “बादशाह शाह आलम” घबरा गया और उसने मिर्जा सिखों के नेतृत्व में मेहतापुरा किले पर सिख सेना को रोकने की कोशिश की हालांकि वहां पर पराजित होकर वह वहां से भाग गया और लाल किले में जाकर छिप गया

खालसा पंथ का झंडा फहराया 

 9 मार्च को फजल अली खान ने भी सिखों को रोकने का असफल प्रयास किया इसके बाद “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह” के उद्घोष के साथ सिक्ख सेना लाल किले की ओर बढ़ी और दूसरी तरफ अजमेरी गेट पर तैनात सिख सेना ने शहर पर आक्रमण कर दिया मुगल सेना युद्ध करने की बजाय छिप गई 11 मार्च को सिख सेना लाहौरी गेट और मीना बाजार को पार करती हुई

लाल किले के दीवाने आम में पहुंच गई और वहां कब्जा कर लिया दीवाने आम पर कब्जा करने के बाद सिख सेना ने लाल किले के मुख्य द्वार पर खालसा पंथ का केसरी निशान साहिब झंडा फहराया ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ था जब सिख सेना ने लाल किले पर कब्जा किया था जब शाह आलम ने देखा कि सिखों ने दीवाने आम पर कब्जा कर लिया है तो वह अपने वकील रामदयाल और बेगम समरू के साथ अपने जीवन की भीख मांगने लगा बेगम समरू भी राजनीतिज्ञ थी इसलिए उसने तुरंत तीनों जनरलो को अपना भाई बना लिया और दो शर्तें उनके सामने रख दी

पहली शर्त यह थी कि आलम का जीवन बक्श दिया जाए और दूसरा लाल किला उसके कब्जे में रहने दिया जाए इन मांगों के बदले में तीनों जनरलो ने 4 शर्तें रखी वह सभी स्थान जहां गुरु साहिबान के चरण पड़े, जहां गुरु तेग बहादुर साहिब को शहीद किया गया और माता सुंदरी व माता साहिब कौर जी के निवास स्थानों का अधिकार सिखों को दिया जाए

बादशाह शाह आलम को कहा गया कि वह 7 स्थानों पर गुरुद्वारा साहिबान के निर्माण के आदेश जारी करें गुरुद्वारों के निर्माण तथा अन्य खर्चों की पूर्ति के लिए कर की वसूली में से 6आने प्रति रुपैया उन्हें दिया जाए और जब तक गुरुद्वारों का निर्माण पूरा नहीं हो जाता तब तक 4000 सिख सैनिक दिल्ली में ही रहेंगे जस्सा सिंह आहलूवालिया का इतिहास 

जस्सा सिंह आहलूवालिया का बलिदान

 इसी के साथ बाबा बघेल सिंह गुरुद्वारों के निर्माण के लिए दिल्ली में ही रुके रहे वही जस्सा सिंह आहलूवालिया, व जस्सा सिंह रामगढ़िया दीवाने आम का 6 फुट लंबा, 4 फुट चौड़ा और 9 इंच मोटा पत्थर का तख्त उखाड़कर घोड़े के पीछे बांधकर अपने साथ अमृतसर ले गए यह तख्त आज भी दरबार सिंह अमृतसर के नजदीक बने रामगढ़िया बुर्ज में रखा हुआ है

जस्सा सिंह आहलूवालिया का इतिहास