हीर और रांझा का इतिहास ,हीर और रांझा का जन्म,हीर और रांझा का मिलन,हीर और रांझा की मृत्यु,हीर और रांझा की फिल्म
हीर और रांझा का इतिहास
हीर और रांझा का जन्म
पाकिस्तान की चेनाब नदी के किनारे पर तख्त हजारा नाम का गांव था यहां पर रांझा जनजाति के लोगों की बहुतायत थी मौजूद चौधरी गांव का मुख्य जमींदार था और उसके 8 पुत्र थे रांझा उन सभी भाइयों में सबसे छोटा था रांझा का असली नाम डीलों था और उसका उपनाम रांझा था इसीलिए उसे सभी रांझा कहकर बुलाते थे रांझा सभी भाइयों में छोटा होने के कारण अपने माता पिता का बहुत लाड़ला था
रांझा के दूसरे भाई खेती में कड़ी मेहनत करते थे और रांझा बांसुरी बजाता था अपने भाइयों से जमीन के ऊपर विवाद के चलते रांझा ने घर छोड़ दिया एक रात रांझा ने मस्जिद में आश्रय लिया और सोने से पहले समय व्यतीत करने के लिए वह बांसुरी बजाने लगा मस्जिद के मौलवी साहब ने बांसुरी का संगीत सुना तो उन्होंने बांसुरी बजाना बंद करने को कहा
जब रांझा ने इसका कारण पूछा तो मौलवी ने बताया कि बांसुरी का संगीत इस्लामिक नहीं है और ऐसा संगीत मस्जिद मे बजाना वर्जित है इसके बाद रांझा ने कहा कि उसकी धुन इस्लाम में कोई पाप नहीं है मौलवी को कोई दूसरा विकल्प नहीं सूझा तो उन्होंने उसे मस्जिद में रात को रुकने दिया अगले दिन सुबह होने पर रांझा मस्जिद से रवाना हो गया और दूसरे गांव में पहुंचा जो हीर का गांव था सियार जनजाति के संपन्न जाट परिवार में एक सुंदर युवती का जन्म हुआ था जो अब पंजाब मे है और वह पंजाब जो पाकिस्तान में है हीर और रांझा का इतिहास
हीर और रांझा का मिलन
जब हीर रांझा को पहली बार देखा तो उन्हें देखते ही रांझा से प्रेम हो गया था और रांझा को भी हीर को देखते ही प्रेम हो गया था हीर रांझा को हर समय अपने सामने देखना चाहती थी इसलिए उन्होंने रांझा को अपने घर पर मवेशियों का काम करने के लिए रुकने को कहा इसके बाद हीर के पिता ने रांझा को मवेशी चराने का काम सौंप दिया
हीर रांझा की बांसुरी की आवाज में मंत्रमुग्ध हो जाती थी और धीरे-धीरे हीर रांझा से प्यार हो गया कई सालों तक गुप्त जगहों पर मिलते रहे एक दिन हीर के चाचा केदो ने हीर और रांझा को एक साथ देख लिया और सारी बात हीर के पिता और मां “मालगी” को बता दी इसके बाद हीर के घरवालों ने रांझा को नौकरी से निकाल दिया और दोनों को मिलने से मना कर दिया गया हीर को उसके पिता ने “सेदा खेरा” नाम के व्यक्ति से शादी करने के लिए कहा
इसके बाद हीर ने मौलवियों और अपने परिवार के दबाव में आकर सेदा खेरा से निकाह कर लिया जब इस बात की खबर रांझा को पता चली तो उसका दिल टूट गया वह ग्रामीण इलाकों में अकेला दर-दर भटकता रहा 1 दिन रांझा को एक जोगी गोरखनाथ मिला गोरख नाथ जोगी कान फटा संप्रदाय से थे इसके बाद गोरखनाथ के सानिध्य में रांझा जोगी बन गया
रांझा ने भी कान फटा समुदाय की प्रथा का पालन करते हुए अपने कान छिंदवा लिए और भौतिक संसार को त्याग दिया इसके बाद रब का नाम लेता हुआ वह पूरे पंजाब में भटकता रहा अंत में उसे हीर का गांव मिला जहां वह रहती थी
इसके बाद वह हीर के पति सेदा के घर गया और उसका दरवाजा खटखटाया सेदा कि बहन “शेती” ने दरवाजा खोला शेती ने हीर के प्यार के बारे में पहले ही सुन रखा था शेती अपने भाई की अनैच्छिक शादी के विरुद्ध थी उसने अपने भाई की गलतियों को सुधारने के लिए हीर को रांझा के साथ भागने में मदद की थी इसके बाद हीर और रांझा वहां से भाग गए लेकिन उनको राजा ने पकड़ लिया हीर और रांझा का इतिहास
हीर और रांझा की मृत्यु
राजा ने उनकी पूरी कहानी सुनी और मामले को सुलझाने के लिए काजी के पास लेकर गए इसके बाद हीर ने अपने प्यार की परीक्षा देने के लिए आग पर हाथ रख कर कहा कि वह रांझा से बहुत प्यार करती है इसके बाद राजा उनके असीम प्रेम को देखकर समझ गया और उन दोनों को छोड़ दिया
इसके बाद वह दोनों वहां से हीर के गांव गए जहां उनके माता-पिता निकाह के लिए राजी हो गए शादी के दिन हीर के चाचा केदो ने उसके खाने में जहर मिला दिया था ताकि यह शादी रुक जाए जब यह सूचना जैसे ही रांझा को मिली वह दौड़ता हुआ हीर के पास पहुंचा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी
क्योंकि हीर ने वह खाना खा लिया था जिसमें जहर मिला था और उसकी मौत हो गई रांझा अपने प्यार की मौत के दुख को सहन नहीं कर पाया और उसने भी वह जहर वाला खाना खा लिया उसके करीब उसकी भी मौत हो गई इसके बाद हीर और रांझा को उनके पैतृक गांव जंग में दफन किया गया हीर और रांझा का इतिहास
हीर और रांझा की फिल्म
ऐसा माना जाता है कि हीर रांझा की कहानी का शुभ सुखद अंत था लेकिन बारिश शाह ने अपनी कहानी में इसका अंत दुखद बताया था बारिश ने स्थानीय लोकगीतों और पंजाब के लोगों से हीर रांझा की प्रेम कहानी के बारे में पता कर कविता लिखी थी
जिसका वहां के सभी लोग अनुसरण करते हैं उसके अनुसार यह घटना आज से 200 साल पहले वास्तविकता में घटित हुई थी जब पंजाब पर लोदी वंश का शासन था इस कहानी से प्रेरित होकर भारत और पाकिस्तान ने कई फिल्में बनी
क्योंकि इस घटना के बाद भारत पाकिस्तान विभाजन नहीं हुआ था विभाजन से पहले हीर रांझा नाम से 1928,1929, 1931, 1948मे कुल चार फिल्में बनी परंतु यह चारों फिल्में सफल नहीं रही विभाजन के बाद 1971 में हीर रांझा फिल्म भारत में बनी जिसमें राजकुमार और प्रिया राजवंश मुख्य कलाकार थे
और यह फिल्म काफी सफल रही इसके बाद 2009 में हीर रांझा फिल्म पंजाब में बनी जिसमें गुरदास मान मुख्य अभिनेता थे पाकिस्तान में 1970 में हीर रांझा फिल्म बनी थी और 2013 में हीर राजा धारावाहिक पाकिस्तानी चैनल पर प्रसारित होता था
हीर और रांझा का इतिहास