गंगा नदी का इतिहास , गंगा नदी की पौराणिक कथा , अश्वमेध यज्ञ का आयोजन , राजा सगर की तपस्या , गंगा नदी का उदगम
गंगा नदी का इतिहास
हिंदू धर्म में गंगा नदी को सबसे पवित्र नदी का दर्जा मिला हुआ है तथा इसकी उपासना मां तथा देवी के रूप में की जाती है यह करोड़ों भारतीयों के जीवन का साधन है इस नदी के किनारे घनी आबादी बसी हुई है और लोग इस पर अपनी दिनचर्या एवं जीविका के लिए निर्भर हैं
प्राचीन मगध महाजनपद का उद्भव गंगा घाटी में हुआ जहां से गण राज्यों की परंपरा विश्व में पहली बार प्रारंभ हुई यही भारत का वह स्वर्ण युग विकसित हुआ जब मौर्य और गुप्त वंश के राजाओं ने यहां शासन किया था
गंगा नदी भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2525 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू-भाग को सिंचती है अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है
गंगा नदी की पौराणिक कथा
अयोध्या नगरी में सगर नाम के एक राजा हुआ करते थे राजा सगर ने दो शादियां की थी किंतु वह संतानहीन थे राजा सगर की पटरानी का नाम केशिनी था और राजा सगर की दूसरी पत्नी का नाम सुमती था कई वर्षों तक जब राजा सगर को दोनों पत्नियों से कोई संतान की प्राप्ति नहीं हुई तब वह अपनी दोनों पत्नियों को लेकर हिमालय पर संतान प्राप्ति के लिए तपस्या करने चल दिए
वहां पर वह अपनी दोनों पत्नियों के साथ महर्षि भृगु की तपस्या में लीन हो गए कुछ समय बाद महर्षि भृगु उनकी तपस्या से खुश होकर उनके सामने आए और उन्हें वरदान दिया कि उन्हें अनेक पुत्र प्राप्त होंगे और साथ ही यह भी कहा कि राजा सगर की दोनों पत्नियों में से एक ही पत्नी पुत्र को जन्म देगी जो वंश को आगे बढ़ाएगा और दूसरी पत्नी से राजा सगर के साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति होगी
इसके बाद उन दोनों रानियों ने महर्षि से पूछा कि आप यह बताइए कि हम दोनों में से कौन कितने पुत्रों को जन्म देगी तब महर्षि भृगु ने कहा कि यह तुम दोनों की इच्छा पर निर्भर है इसके बाद रानी केशिनी ने वंश को आगे बढ़ाने वाले एक पुत्र की कामना की और रानी सुमती ने साठ हजार पुत्रों को जन्म देने का फैसला किया इसके बाद राजा सगर अपनी पत्नियों के साथ राजधानी वापस लौट आए
इसके बाद समय आने पर महर्षि के वरदान से रानी केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम “असमंजस” रखा गया वही रानी सुमती से एक तुंबा प्राप्त हुआ जिसे देखकर राजा सगर हैरान हो गए परंतु जब उस तुंबे को फोड़ा गया, तब उसमें से साठ हजार छोटे-छोटे बच्चे पैदा हुए | गंगा नदी का इतिहास |
अश्वमेध यज्ञ का आयोजन
समय के साथ जब वह 60,000 राजकुमार बड़े हुए तब राजा सगर का पुत्र असमंजस दुराचारी हो गया छोटे-छोटे बच्चों को सरयू नदी में फेंक देता था इसके बाद राजा सगर ने उसका विवाह इस उम्मीद से करा दिया कि विवाह के पश्चात वह बुरा कर्म छोड़ देगा परंतु ऐसा नहीं हुआ फिर अंत में राजा सगर ने अपने जेष्ठ पुत्र असमंजस को राज्य से निकाल दिया
राज्य से निर्वाचित होने के पश्चात असमंजस की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम “अंशुमान” रखा गया बड़ा होने पर असमंजस का पुत्र सदाचारी और पराक्रमी हुआ कुछ समय बाद राजा सगर के मन में अश्वमेघ करने का विचार आया तब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ शुरू किया और एक घोड़े को छोड़ा गया वह घोड़ा कई राज्यों से होकर गुजरा किसी ने भी उसे रोकने का दुस्साहस नहीं किया सभी राजाओं ने राजा सगर की मित्रता को स्वीकार कर लिया था
जब देवराज इंद्र को इस बारे में पता लगा तो उन्हें अपना शासन जाने का डर सताने लगा तब देवराज इंद्र ने एक राक्षस का रूप धारण कर के अश्वमेध यज्ञ के अश्व को चुरा लिया और उसे ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया जब अंशुमान अपने सैनिकों के साथ उस अश्व को खोजने लगे परंतु उन्हें वह घोड़ा कहीं पर भी नहीं मिला इसके बाद राजा सगर ने अपने 60 हजार पुत्रों को आदेश दिया कि तीनों लोकों में जाकर उस अश्व को ढूंढ कर लेकर आओ
पिता का आदेश पाते ही 60 हजार राजकुमार उस घोड़े को ढूंढने के लिए निकल पड़े जब वह पतालोक पहुंचे तब उन्होंने देखा कि कपिल मुनि के पास ही उनका घोड़ा बंधा हुआ है कपिल मुनि को घोड़ा चुराने वाला समझ कर वह सब उन्हें भला बुरा कहने लगे और फिर उन्हें मारने के लिए आगे बढ़े जिससे कपिल मुनि की समाधि भंग हो गई इसके बाद कपिल मुनि ने क्रोध में आकर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को जलाकर भस्म कर दिया
जब कई दिनों तक राजा सगर को अपने 60हजार पुत्रों की कोई खबर नहीं मिली तब उन्होंने अपने पोते अंशुमान को उन्हें खोजने के लिए भेजा जब अंशुमान उन्हें ढूंढता हुआ कपिल मुनि के पास पहुंचा तब उसने देखा कि उनके सभी चाचाओ के जले हुए राख के ढेर हैं और यज्ञ का वह घोड़ा भी वहीं पर बंधा हुआ था उनकी इस हालत को देखकर अंशुमान ने सोचा कि उनकी मुक्ति के लिए उन्हें जल अर्पण किया जाए तब उन्होंने आसपास में देखा कि वहां पर कोई भी जल का स्रोत नहीं था तब उनकी नजर पक्षीराज गरुड़ पर पड़ी अंशुमान ने पक्षीराज गुरु को प्रणाम करते हुए पूछा यदि आस-पास में कोई जल का स्त्रोत हो तो वह मुझे बताएं और साथ ही यदि आपको इनकी मृत्यु के बारे में कुछ भी पता हो तो वह भी मुझे बताएं | गंगा नदी का इतिहास |
राजा सगर की तपस्या
तब पक्षीराज गरुड़ ने उन्हें बताया कि किस प्रकार राजा इंद्र ने राक्षस का रूप धारण करके अश्वमेघ का घोड़ा चुराया था और उसे कपिल मुनि के पास छोड़ गए पक्षी राजगुरु मैंने अंशुमान को सारा वृत्तांत सुनाया और उन्होंने कहा कि इन की मुक्ति के लिए गंगा का जल लेकर आना होगा इसके बाद अंशुमान उस घोड़े को लेकर वहां से चल दिए
अयोध्या पहुंचकर अंशुमान ने सारी घटना राजा सगर को बताई इसके बाद अपने पुत्रों की मुक्ति के लिए और गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या करने के लिए वन में चले गए कुछ समय पश्चात तपस्या में लीन राजा सगर स्वर्ग सिधार गये राजा सगर के बाद अंशुमान ने भी गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या की थी लेकिन वह भी सफल नहीं हो सके और स्वर्ग सिधार गए
इसके बाद अंशुमान के प्रतापी पुत्र दिलीप हुए अंशुमान के समक्ष धार जाने के बाद उनके पुत्र दिलीप अयोध्या के राजा बने इसके बाद जब राजा दिलीप का पुत्र भागीरथ पड़ा हुआ तब वह अपना राजपाट भागीरथ को सौंपकर गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या करने लगे पर उन्हें भी सफलता नहीं मिली | गंगा नदी का इतिहास |
गंगा नदी का उदगम
भागीरथ बहुत ही धर्मात्मा और प्रतापी राजा थे किंतु उनकी कोई संतान नहीं हुई इस पर वह अपने राज्य का भार मंत्रियों को सौंपकर स्वयं गंगा अवतरण के लिए कुंकर्ण नामक तीर्थ पर जाकर कठोर तपस्या करने लगे भागीरथ की कठोर तपस्या के कई सालों बाद ब्रह्मा जी प्रकट हुए और उन्हें वर मांगने के लिए कहा तब भागीरथ ने भगवान ब्रह्मा से यह कहा कि यदि आप मेरी तपस्या से खुश हो तो राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को गंगा का जल प्राप्त हो जिससे कि उनका उद्धार हो सके और साथ ही मुझे संतान प्राप्ति का भी वरदान दीजिए ताकि हमारा वंश आगे बढ़ सके
इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हारा मनोरथ जल्द ही पूर्ण होगा, किंतु देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित नहीं हो सकती इसके बाद भागीरथ ने ब्रह्मा से कारण पूछा तब ब्रह्मा जी ने कहा यदि देवी गंगा अपने वेग के साथ पृथ्वी पर अवतरित होगी तो पृथ्वी उनके वेग को संभाल नहीं पाएगी गंगा जी को संभालने की क्षमता भगवान शिव के अतिरिक्त और किसी में नहीं है इसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा तुम्हें भगवान शिव की कठोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न करना होगा
ब्रह्मा जी के जाने के बाद भागीरथ अपने एक पैर के अंगूठे के बल पर भगवान शिव की तपस्या करने लगे फिर 1 साल बाद महादेव राजा भागीरथ की तपस्या से खुश हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि हम तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करने के लिए गंगा जी को अपने मस्तक पर धारण करेंगे जब इस बात की सूचना देवी गंगा को मिली तो वह बहुत ही क्रोधित हो उठी क्योंकि वह देवलोक से कहीं नहीं जाना चाहती थी
फिर देवी गंगा ने निश्चित किया कि वह अपने प्रचंड से महादेव को बहाकर पाताल लोक ले जाएगी जब वह अपने भयानक वेग से शिवजी के मस्तक पर अवतरित हुई तब महादेव जी ने गंगा को अपनी जटाओं में उलझा लिया गंगा जी समस्त प्रयतनो के बाद भी महादेव जी की जटाओं से बाहर नहीं निकल सकी गंगा जी को इस प्रकार शिवजी की जटाओं में विलीन होता देखकर भागीरथ बहुत खुश हुए भागीरथ की तपस्या को देख कर शिव जी ने गंगा जी को हिमालय के बिंदु सर पर छोड़ा और गंगा जी सात धाराओं में बंट गई
गंगा जी की एक धारा भगीरथ के पीछे-पीछे चली भागीरथ जहां भी जाते थे वह धारा उनके पीछे जाती थी जो भी गंगा के जल को स्पर्श करता था वह सभी बाधाओं से मुक्त हो जाता था चलते-चलते गंगा उस स्थान पर पहुंची जहां ऋषि जानकी यज्ञ कर रहे थे गंगा उनके यज्ञ की सामग्री अपने साथ बहाकर ले जाने लगी इससे ऋषि को बहुत ही क्रोध आया उन्होंने क्रोधित होकर गंगा का सारा जल पी लिया जिससे राजा भागीरथ बहुत ही निराश हुए और उन्होंने ऋषि से देवी गंगा को मुक्त करने निवेदन किया और उन्हें सारी घटना बताइए ऋषि जानकी ने अपने कान के रास्ते से देवी गंगा को मुक्त कर दिया
तभी से देवी गंगा का एक नाम जहान्वी पड़ गया इसके बाद राजा भागीरथ उस स्थान पर गए जहां उनके पूर्वजों की राख पड़ी हुई थी फिर देवी गंगा भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी और कपिल मुनि के आश्रम पहुंचकर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मुक्ति दिलाई फिर राजा भागीरथ ने उन्हें धन्यवाद दिया इसके बाद ब्रह्मा जी ने भागीरथ को वरदान दिया कि जो भी इस गंगाजल से स्नान करेगा सभी प्रकार के दुखों से रहित हो जाएगा और स्वर्ग को प्रस्थान करेगा जब तक पृथ्वी मंडल में गंगा प्रवाहित होती रहेगी तब तक उसका नाम भागीरथी कहलाएगा | गंगा नदी का इतिहास |