गढ़ देवी का इतिहास ,गाढ़ की गढ़ देवी,गढ़ देवी की उत्पत्ति ,चौबीस मातृकाओं में से एक है देवी गढ़कालिका,देवताओं की एक जाति
गढ़ देवी का इतिहास
गढ़ देवी उत्तराखंड में पूजे जाने वाली एक दिव्य शक्ति और मां दुर्गा का रूप है इन्हें मां काली का अवतार भी कहा जाता है, इन्हें भगवती भी कहा जाता है और अन्य नामों से भी जाना जाता है यह देवी संपूर्ण उत्तराखंड में नाथपंथी देवताओं के साथ अलग-अलग रूप में पूजी जाती है इन्हें सभी देवताओं की धर्म की बहन माना जाता है भगवान गोलू के साथ यह अनारी देवी के रूप में पूजी जाती है
इनका निवास पहाड़ों के गाढ़ गधेरों में माना जाता है इसीलिए इन्हें गढ़ की देवी कहा जाता है जागरो में कहा जाता है कि यह 22 बहने गढ़ देवी हैं जब रमोला भाइयों द्वारा सीमा ताल में बहुत बड़ा यज्ञ करवाया गया तब सभी देवी देवताओं को निमंत्रण दिया गया था इस यज्ञ में सभी ब्रह्मांड के देवी देवता और पृथ्वी के देवी देवता आए थे उस समय 22 बहने गढदेवी भी आई थी और इंद्रलोक से परियां भी आई थी
जब यह यज्ञ समाप्त हुआ तब उन्होंने सोचा कि अब सभी को बुला तो लिया है परंतु इन्हें क्या दिया जाए इसके बाद गोलू देवता ने इन 22 बहनों को अलग-अलग जगह दी थी इसलिए गोलू देवता को भूमि देने वाला देवता भी कहा जाता है
जिन जिन क्षेत्रों मे इन बहनों को स्थान दिया गया वह उसी स्थान की देवी कहलाती है जैसे तो किसी को हिमालय दिया, तो किसी को जंगल में स्थान दिया गाढ़ की देवी बहुत ही प्रचलित है यह गोलू देवता को अपना धर्म का भाई मानती है यह देवी गोलू देवता के साथ हमेशा रहती है और इनके भाई कलवा देवता के साथ इन देवियों को नचाया जाता है| गढ़ देवी का इतिहास
गाढ़ की गढ़ देवी
जब सात बहने परियों के साथ एक गढ़ की देवी भी थी कहा जाता है कि जो परियां थी वह तो ऊपर उठ गई और जो देवी थी वह पृथ्वी पर ही रह गई थी जब गढ़ की देवी अकेली रह गई थी तब पृथ्वी पर हाहाकार मच गया था और लोग परेशान हो गए थे उस समय राजा देवमल थे उन्होंने गढ़ की देवी को पृथ्वी के नीचे गड्ढा करके दबा दिया था गढ़ की देवी 12 महीने तक नाग लोक में ही रही थी
जब गढ़ देवी का नागलोक में मन नहीं लगा तो वह वहां पर विलाप करने लगी थी उस समय सिद्ध पुरुष गुरु गोरखनाथ थे जब उन्होंने पृथ्वी पर अपने कान लगाकर सुना तो उन्हें गढ़ देवी की आवाज सुनाई दी थी गढ़ देवी दादू दादू की पुकार कर रही थी इसके बाद गुरु गोरखनाथ ने गढदेवी से कहा मैं तुम्हें पृथ्वी पर तो ला सकता हूं, परंतु तुम्हें पहले यह वचन देना होगा कि तुम मृत्यु मंडल में आने के बाद कभी भी किसी को कष्ट नहीं दोगी
इसके बाद गढ़ देवी गुरु गोरखनाथ से कहती है कि आप जो भी कहेंगे वह मैं करूंगी परंतु मुझे इस नाग लोक से बाहर निकाल लीजिए इसके बाद गुरु गोरखनाथ धर्मशील का पत्थर उठाकर गढ़ देवी को बाहर निकाल लेते हैं बाहर आने के बाद गढ़ देवी गुरु गोरखनाथ को अपना धर्म का भाई भी मानती है और साथ ही उन्हें अपना गुरु भी मानती है गढ़ देवी के बाहर आने पर गुरु गोरखनाथ सबसे पहले उनके बाल मुंडवा देते हैं
कानों में कुंडल पहना देते हैं और धुना रमाणा सिखाते हैं और गढ़ देवी को शिक्षा प्रदान करते हैं गुरु गोरखनाथ जी गढ़ देवी को सात्विक विद्या से संबंधित मंत्र भी प्रदान करते हैं गुरु गोरखनाथ गढ़ देवी को अल्लाह की वाणी सिखाते हैं और उन्हें अपनी झोली में रखते हैं कहा जाता है कि गढदेवी 12 वर्षों तक साधु संतों के साथ रहती है
परंतु गुरु गोरखनाथ की झोली में भी उसका मन नहीं लगता है क्योंकि वह संसार को देखना चाहती थी इसके बाद वे गुरु गोरखनाथ से कहती है कि मुझे संसार को देखना है आप मुझे बंगाल ले चलिए बंगाल ले जाने के बाद गुरु गोरखनाथ गढ़ देवी को एक गुरु के पास ले जाते हैं और वह गुरु उस देवी से कहते हैं कि आपका चेहरा तो इतना सुंदर है कि आप को इस तरह से नहीं रहना चाहिए
आपको गढ़ की देवी बन जाना चाहिए इसके बाद उन्हें गढ़ की देवी बना देते हैं और उनका सोलह सिंगार कर देते हैं इसके बाद उन्हें फूलों में और पत्तियों में सजाया जाता है इस प्रकार वह गाढ़ की गढ़ देवी बन जाती है गढ़ देवी का इतिहास
गढ़ देवी की उत्पत्ति
चैत्र माह में गढ़ देवी की जागर लगाई जाती है सब उन्हें फूल और चावल देते हैं और फूलों से सजी हुई उनकी थाल होती है सिवान के महाराजगंज प्रखंड का बलिया गांव गढ़ देवी के नाम से प्रसिद्ध है यह माता रानी के दर्शन करने के लिए राज्य के अलग-अलग हिस्सों से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है
गढ़ देवी को लेकर यहां के लोगों का मानना है कि इनकी उत्पत्ति सन 1600 ईसवी पूर्व दो राजाओं ने की थी हीरा सिंह और धीरा सिंह नामक दो राजा अपने गढ़ पर देवी मां की पूजा अर्चना करते थे अपनी मन्नत सिद्ध कराने के लिए दोनों राजा अपने पुत्रों का गला काट कर उनके चरणों में समर्पित कर देते हैं राजाओं के इतनी बड़ी कुर्बानी को देखकर माता रानी बहुत प्रसन्न होती है
और उनके पुत्रों को जिंदा करने के बाद उनके द्वारा मांगी गई सारी मनोकामनाएं पूर्ण कर देती है जंगल झाड़ियों के बीच दोनों राजाओं का 7 मंजिल ऊंचे टीले पर गढ़ था इससे घुसपैठियों के आने की जानकारी उन्हें दूर से ही चल जाती थी आज भी लोग बताते हैं कि मंदिर के नीचे गहरी गुफा में 24 घंटे दीपक जलता रहता है समय बीतने के साथ-साथ राजाओं ने भी उस गढ़ को छोड़कर कहीं दूसरी जगह प्रस्थान कर लिया था
जिसकी वजह से देवी की पूजा-अर्चना होना बंद हो गई इसके बाद देवी लोगों की सपनों में आने लगी थी साल 1952 में गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर मिट्टी के मंदिर का निर्माण करवाया था समय परिवर्तन के साथ क्षेत्र के लोगों का माता रानी के प्रति अटूट विश्वास जागने लगा था
देवी मां का जिन लोगों ने अनादर किया और मंदिर निर्माण में चंदा नहीं दिया उनके घरों में अचानक से आग लगने लगी थी जिसके बाद से लोगों के मन में माता के प्रति और अधिक विश्वास शुरू हो गया था वर्तमान समय में इस स्थान पर चैत्र रामनवमी के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है राज्य सरकार ने इस मेले को राजकीय महिला भी घोषित कर दिया है गढ़ देवी का इतिहास