गुरु द्रोणाचार्य का इतिहास, गुरु द्रोणाचार्य का जन्म , गुरु द्रोणाचार्य का विवाह, द्रुपद का अपमान, युद्ध में द्रोणाचार्य का साथ , गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु
गुरु द्रोणाचार्य का जन्म
गुरु द्रोणाचार्य महर्षि भारद्वाज के पुत्र थे गुरु द्रोणाचार्य का जन्म आज से 5000 वर्ष पहले हुआ था एक बार महर्षि भारद्वाज नदी में स्नान करने के लिए गए जब वह स्नान कर के अपने आश्रम की ओर लौट रहे थे तब उनकी नजर एक अप्सरा पर पड़ी वह अप्सरा नग्न होकर नदी में स्नान कर रही थी उसको स्नान करता देख महर्षि भारद्वाज कामात्र हो उठे
तभी उनके लिंग से वीर्य टपक पड़ा उन्होंने अपने टपकते हुए वीर्य को एक द्रोण कलश में रखा इसके बाद महर्षि भारद्वाज ने उस अप्सरा के साथ शारीरिक मिलन किया उस वीर्य और उस अप्सरा के शारीरिक मिलन से इस पृथ्वी पर द्रोण ने जन्म लिया क्योंकि वे द्रोण कलश से उत्पन्न हुए थे इसलिए उनका नाम द्रोणाचार्य पड़ा था
उस समय महर्षि भारद्वाज एक आश्रम में रहा करते थे क्योंकि राजपूत ही राजा हुआ करते थे और उन्हीं के पास बहुत ज्यादा जमीन हुआ करती थी वही ब्राह्मण जाति के लोग आश्रम में रहा करते थे वह भिक्षा प्राप्त करके अपना जीवन यापन किया करते थे
गुरु द्रोणाचार्य ने अपने पिता महर्षि के आश्रम में रहते हुए चार वेदों और अस्त्र शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था गुरु द्रोणाचार्य ने अपने पिता महर्षि भारद्वाज के शिष्य अग्निवेश से शिक्षा ग्रहण की थी जिस आश्रम में यह शिक्षा ग्रहण कर रहे थे उसी आश्रम में पांचाल नरेश के राजकुमार ‘द्रुपद’ भी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे उन दिनों उन दोनों में गहरी मित्रता थी राजकुमार द्रुपद गुरु द्रोणाचार्य को कहते थे कि जब वह पांचाल के नरेश बनेंगे तब आधा राज पाठ उन्हें दे देंगे | गुरु द्रोणाचार्य का इतिहास |
गुरु द्रोणाचार्य का विवाह
शिक्षा दीक्षा समाप्त करने के बाद गुरु द्रोणाचार्य ने गुरु कृपाचार्य की बहन से विवाह कर लिया था जिनसे उन्हें अश्वत्थामा नाम के पुत्र की प्राप्ति हुई थी एक बार जब गुरु द्रोणाचार्य को यह पता चला कि परशुराम अपनी सारी धन-संपत्ति गरीब ब्राह्मणों को बांट रहे हैं तब वह भी परशुराम के पास जा पहुंचे जब वह परशुराम के पास पहुंचे तब तक परशुराम अपनी सारी धन-संपत्ति ब्राह्मणों को बांट चुके थे और वन में जाने की तैयारी कर रहे थे
परशुराम ने गुरु द्रोणाचार्य से कहा कि हे ब्राह्मण मेरे पास मेरी धनुर्विद्या और मेरा शरीर ही बचा है आप बताइए मैं आपको क्या दान करूं इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने उनसे धनुर्विद्या का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा जताई तब परशुराम ने उन्हें महंत पर्वत पर धनुर्विद्या और अन्य अस्त्र शास्त्रों की विद्या प्रदान की थी
कुछ दिनों के बाद गुरु द्रोणाचार्य ने अपने मित्र द्रुपद को याद किया और वह पांचाल देश की ओर निकल पड़े जब वह द्रुपद के पास पहुंचे तो द्रुपद ने उन्हें अपना मित्र मानने से ही इंकार कर दिया था इस अपमान से गुरु द्रोणाचार्य बहुत ही दुखी हुए और वह अपनी पत्नी और अपने पुत्र के साथ कृपाचार्य के आश्रम में आ गए | गुरु द्रोणाचार्य का इतिहास |
द्रुपद का अपमान
एक बार जब पांडव खेलते हुए उनके आश्रम के पास पहुंचे तब युधिष्ठिर की कीमती अंगूठी वहां मौजूद कुएं में गिर गई थी उन्होंने निकालने की बहुत कोशिश की परंतु वह असफल रहे यह सब गुरु द्रोणाचार्य दूर से देख रहे थे तभी गुरु द्रोणाचार्य वहां पर आए और उन्होंने वह अंगूठी निकाल कर उन्हें दे दी है
सारी घटना पांडवों ने भीष्म पितामह को बताई तब उन्होंने अनुमान लगाया कि वह सिद्ध पुरुष कोई और नहीं बल्कि द्रोण है इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य को महल में बुलाया गया और कौरवों और पांडवों को अस्त्र शास्त्र की विद्या सिखाने का कार्य सौंपा गया इसके बाद गुरु द्रोण ने सभी राजकुमारों को बहुत ही लगन से विद्या सिखाई सभी राजकुमारों में अर्जुन उनके सबसे प्रिय शिष्य सिद्ध हुए
गुरु द्रोणाचार्य का लक्ष्य अपने पुत्र को शक्तिशाली बनाना था क्योंकि वह पंचाल नरेश द्रुपद से अपना बदला लेना चाहते थे गुरु द्रोणाचार्य यह नहीं चाहते थे कि इस धरती पर अर्जुन से अधिक कोई धनुर्धारी हो इसलिए उन्होंने अपने शिष्य एकलव्य से उनका दाहिने हाथ का अंगूठा दीक्षा में मांग लिया था ताकि वह अर्जुन से अधिक शक्तिशाली ना हो जाए जब सभी राजकुमारों ने अपनी शिक्षा समाप्त कर ली तब उन्होंने गुरु द्रोणाचार्य से भिक्षा मांगने के लिए कहा
तब गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि मुझे दीक्षा के रूप में राजा द्रुपद चाहिए तुम लोग उसे कैद कर के ले आओ वही उनकी गुरु दक्षिणा होगी सबसे पहले दुर्योधन और कर्ण ने द्रुपद को पकड़ने का प्रयास किया परंतु वह असफल रहे इसके बाद पांचो पांडव गए और वह द्रुपद और उनके अन्य मंत्रियों को कैद कर गुरु द्रोणाचार्य के सामने ले आए
इसके बाद गुरु द्रोणाचार्य ने उसे आधा राज्य देकर सम्मान सहित वापस छोड़ दिया और बराबरी की हैसियत जताकर अपने अपमान का बदला ले लिया जब सभी राजकुमार शिक्षा समाप्त कर कर वापस जाने लगे तब गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन से कहा कि हे अर्जुन जब भी तुम्हें मेरे साथ युद्ध करना हो तो तुम्हें युद्ध के बदले युद्ध करना होगा मेरे गुरु होने का संकोच मत करना यही वजह थी कि महाभारत के युद्ध अर्जुन ने द्रोणाचार्य के साथ युद्ध किया था | गुरु द्रोणाचार्य का इतिहास |
युद्ध में द्रोणाचार्य का साथ
महाभारत के युद्ध में जब भीष्म पितामह का वध हो गया तब कोरवो ने गुरु द्रोणाचार्य को सेनापति नियुक्त किया इसमें गुरु द्रोणाचार्य ने शर्त रखी कि वह राजा द्रुपद और उनके बेटे का वध नहीं करेंगे महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य युद्ध कौरवो की तरफ से कर रहे थे परंतु उनका स्नेह हमेशा पांडुवो की तरफ ही रहा गुरु द्रोण ने महाभारत के युद्ध में गुरु द्रोण ने ऐसे चक्रव्यूह की रचना की जिसमें पांडू पुत्र अभिमन्यु मारा गया था
जब इस घटना के बारे में अर्जुन को पता चला तब उन्होंने प्रतिज्ञा की कि मैं सूर्यास्त से पहले जयद्रथ को मृत्यु के घाट उतार दूंगा तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी माया से चारों तरफ अंधकार फैला दिया जिससे कोरवो को लगा कि सूर्य अस्त हो गया है ऐसा देखकर जयद्रथ सामने आ गया तब श्री कृष्ण ने अर्जुन को इशारा किया कि अभी सूर्यास्त होने में समय बाकी है जयद्रथ आपके सामने है तो उसका वध करके अपनी प्रतिज्ञा को पूरा कीजिए
पांडवों ने अभिमन्यु की मृत्यु से दुखी होकर रात को भी युद्ध को जारी रखा और उन्होंने सामूहिक रूप से गुरु द्रोण पर आक्रमण कर दिया इसके बाद गुरु द्रोण ने राजा द्रुपद और उसके दो पुत्रों को मार डाला | गुरु द्रोणाचार्य का इतिहास |
गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु
महाभारत की युद्ध में जब गुरु द्रोणाचार्य ने बाणों की वर्षा शुरू कर दी तब पांडुगा को अपनी पराजय नजर आने लगी तब श्री कृष्ण ने उन्हें गुरु द्रोण को रोकने का उपाय बताया और कहा कि यदि कोई उनके बेटे अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार उन्हें दे देगा तो वह इस युद्ध से आसक्त हो सकते हैं इसके बाद भीम ने मालवा नरेश हिंदू वर्मा के अश्वथामा नामक हाथी को मार डाला
अश्वत्थामा मारा गया यह समाचार गुरु द्रोणाचार्य को दे दिया जब इस बात पर गुरु द्रोणाचार्य को विश्वास नहीं हुआ तब उन्होंने सत्यवादी युधिष्ठिर से यह पूछा तब युधिस्टर ने कहा कि अश्वत्थामा मारा गया परंतु उन्होंने धीरे स्वर में यह भी कहा कि अश्वथामा नामक हाथी मारा गया लेकिन ढोल और नगाड़ा की आवाज में उन्हें पूरी बात सुनाई नहीं दी थी
अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुनकर गुरु द्रोण की चेतना लुप्त होने लगी इसके बाद गुरु द्रोण ने कौरवों से कहा कि अब मैं युद्ध नहीं करूंगा तभी ‘दृष्टधूमन’ तलवार लेकर उनके रथ की ओर बढ़ा और गुरु द्रोण के बालों को पकड़ कर उनके सिर को धड़ से अलग कर दिया
| गुरु द्रोणाचार्य का इतिहास |