देवराज इंद्र का इतिहास,  देवराज इंद्र का जन्म, देवराज इंद्र की पूजा क्यों नहीं होती, कर्ण के साथ छल, भगवान इंद्र देव की जीवनी

देवराज इंद्र का इतिहास 

देवराज इंद्र को स्वर्ग का राजा माना जाता है इनके पिताजी का नाम ऋषि कश्यप है और इनकी माता जी का नाम अदिति है और इनकी पत्नी का नाम शचि है देवराज इंद्र के दो भाई हैं अग्नि और पोषण इंद्र की सौतेली माता का नाम दिति है आदित्य से जन्मे पुत्र आदित्य कहलाए और दिति से जन्मे पुत्र दैत्य कहलाए थे इंद्र को हिंदू धर्म में वैदिक देवता, बौद्ध धर्म में संरक्षक देवता और जैन धर्म में सोधर्म कल्प नामक उच्चतम स्वर्ग के राजा के रूप में माना जाता है

इंद्रदेव सर्वाधिक शक्तिमान है इसलिए इन्हें संपूर्ण जगत का एकमात्र शासक और नियंता मानते हैं सोमरस इंद्र का परम प्रिय पेय पदार्थ है जिससे उन्हें स्फूर्ति प्राप्त होती है इंद्रदेव को उग्र स्वभाव का माना जाता है अपने इसी स्वभाव  के कारण इंद्र ने अनेक देवताओं के साथ युद्ध किया था मगर इसी के साथ ही संबर, रोहिणी जैसे असुरों को पराजित कर उनका विनाश भी किया था

वृत्र नामक असुर के साथ युद्ध करते समय सोम रस के भरे तीन सरोवरो को इंदर ने सोमरहित कर दिया था देवराज इंद्र अपने पूज्य का सदा रक्षक, सहायक और मित्र रहा है देवराज इंद्र को ऋग्वेद का सर्व प्रधान देवता ,वर्षा का देवता, अंधकार रूपी दैत्य को दूर करने वाला और आर्यों का देवता भी कहा जाता है इंद्र को यूरोपीय देवताओं जैसे जयूस, जूपिट, परकनास,थोर और ऑडिन के समान माना जाता है | देवराज इंद्र का इतिहास |

 देवराज इंद्र का जन्म 

ऋग्वेद के चौथे मंडल के 18वे सुक्त से इंद्र के जन्म और जीवन का पता चलता है उनकी माता का नाम अदिति था कहा जाता है कि इंद्र अपनी मां के गर्भ में बहुत समय तक रहे थे जिससे अदिति को अधिक  कष्ट उठाना पड़ा था लेकिन अधिक समय तक गर्भ में रहने की वजह से ही वे अत्यधिक बलशाली और पराक्रमी हो गए थे

जब इंद्र ने जन्म लिया तब एक राक्षस ने उनको अपना ग्रास बनाने की चेष्टा की थी लेकिन इंदर ने उन्हें सूतिकाग्रह में मार डाला इंद्र के बल पराक्रम और अन्य कार्यो के कारण उनका नाम ही एक पद बन गया था अब जो भी स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त कर लेता है उसे इंद्र की उपाधि प्रदान की जाती है | देवराज इंद्र का इतिहास |

देवराज इंद्र की पूजा क्यों नहीं होती है

यदि हम पौराणिक कथाओं को देखें तो हमें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि देवराज इंद्र छलावा करने में माहिर थे मगर उनके छलावे का भुक्तभोगी कठिन परिस्थितियों से गुजरता था ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या थी अहिल्या ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी ब्रह्मा ने अहिल्या को सबसे सुंदर स्त्री बनाया था उनकी सुंदरता का प्रभाव ऐसा था कि सभी देवता उनसे विवाह करना चाहते थे

मगर ब्रह्मा जी ने यह शर्त रखी कि जो सबसे पहले तीनो लोकों का भ्रमण करेगा उसी से अहिल्या का विवाह किया जाएगा तो इस मौके को इंदर हाथ से कैसे जाने देते क्योंकि इंद्र अहिल्या की सुंदरता से इतना प्रभावित थे कि वह त्रिलोक का सबसे पहले भ्रमण करके अहिल्या को अपनी पत्नी बनाना चाहते थे

इसके लिए इंद्र ने अपनी सभी चमत्कारी शक्तियों का प्रयोग करके त्रिलोक का भ्रमण किया लेकिन तभी नारद ने ब्रह्मा जी को बताया कि ऋषि गौतम ने इंद्र से पहले त्रिलोक का भ्रमण कर लिया है तो इस तरह ऋषि गौतम और अहिल्या का विवाह हुआ मगर इंद्र को अहिल्या ना मिलने के कारण इंद्र को अहिल्या से छल करने की सूझी

एक बार ब्रह्म मुहूर्त में जब गौतम ऋषि स्नान करने बाहर गए तब इंद्र ने गौतम ऋषि का रूप लेकर अहिल्या को अपने जाल में फंसा लिया ऋषि गौतम को जब इस बात का पता चला, तो उन्होंने अहिल्या को श्राप देकर पत्थर बना दिया इसके साथ ही गौतम ऋषि ने देवराज इंद्र को भी यह श्राप दिया कि तुम्हारी पूजा अन्य देवताओं की तरह नहीं की जाएगी  कालांतर में प्रभु श्री राम के चरण स्पर्श द्वारा वह पुनः स्त्री बनी थी | देवराज इंद्र का इतिहास |

कर्ण के साथ छल

 एक बार जब इंदर ने महारथी कर्ण के साथ छल किया कर्ण बहुत ही दानवीर थे जब कोई जरूरतमंद मांगता तो उसे दिल खोल दान दे देते थे कर्ण के पास सूर्य कवच और कुंडल थे, जिन्हें पहनने वाले को अजय माना जाता था यह कवच और कुंडल सूर्य देवता द्वारा कर्ण को दिए गए थे महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए इंद्र ब्राह्मण का रूप धारण कर कर्ण के पास पहुंचे और दान में उनसे कवच और कुंडल मांग लिया इसी वजह से कर्ण का युद्ध में हार का सामना करना पड़ा था और वह वीरगति को प्राप्त हो गए

एक बार जब इंद्र को अपने घमंड के कारण शक्तिहीन होना पड़ा देवराज इंद्र ने दुर्वासा ऋषि द्वारा भेंट स्वरूप दिए गए पारिजात पुष्प का अपमान किया था जिस वजह से दुर्वासा ने उन्हें श्राप दिया और उन्हें शक्तिहीन कर दिया देवराज इंद्र के शक्तिहीन होते ही स्वर्ग पर असुरों का अधिपत्य हो गया असुरों को स्वर्ग से खदेड़ने के लिए समुंद्र मंथन किया गया था और समुद्र मंथन से प्राप्त हुए अमृत को पीकर देवताओं ने असुरों को हरा दिया और फिर से स्वर्ग पर देवराज इंद्र का आधिपत्य हो गया | देवराज इंद्र का इतिहास |