चौथ माता का इतिहास, चौथ माता की उत्पत्ति ,चौथ माता मंदिर का,चौथ माता का चमत्कार ,चौथ माता की कितनी सीढ़ियां है, माता का मंदिर कहां है
चौथ माता का इतिहास
भारत का सबसे प्राचीन चौथ माता का मंदिर चौथ का बरवाड़ा राजस्थान के सवाई माधोपुर शहर में स्थापित है, चौथ का बरवाड़ा शहर में हर महीने की चतुर्थी पर लाखो भगत माता जी के दर्शन करने के लिए आते हैं चौथ माता हिंदू धर्म की प्रमुख देवी है चौथ माता को पार्वती का रूप माना जाता है यह सबसे प्राचीनतम मंदिर है चौथ माता मंदिर में महिलाएं सदा सुहागन होने का आशीर्वाद मांगती है और चांद निकलने पर वह अपना व्रत खोलती है करवा चौथ और माही चौथ पर इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु आते हैं|चौथ माता का इतिहास
चौथ माता की उत्पत्ति
करवा के तप के कारण भगवान चित्रगुप्त ने सौभाग्य की रक्षा का आशीर्वाद दिया और उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि होने के कारण करवा और चौथ के मिलने से इस व्रत का नाम करवा चौथ पड़ा इस तरह मां करवा वह पहली महिला हैं, जिन्होंने सुहाग की रक्षा के इस व्रत को न केवल पहली बार किया बल्कि इसकी शुरुआत भी की थी चौथ माता “कंजर” जाति की कुलदेवी है
चौथ का बरवाड़ा शहर अरावली पर्वत श्रंखला की गोद में बसा हुआ मीणा व गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र है बरवाड़ा के नाम से मशहूर यह छोटा सा शहर संवत 1451 में चौथ माता के नाम पर “चौथ का बरवाड़ा” के नाम से प्रसिद्ध हो गया जो वर्तमान तक बना हुआ है चौथ माता का मंदिर हजार फिट की ऊंचाई पर स्थित है यह मंदिर 570 साल पुराना है यहां 700 सीढ़ियां चढ़कर भगत दर्शन करने के लिए आते हैं
इस मंदिर की स्थापना “राजा भीम सिंह” ने करवाई थी चौथ माता का मंदिर राजपूताना शैली में सफेद संगमरमर का बना हुआ है इस मंदिर की दीवारों और छत पर जटिल शिलालेख के साथ यह वास्तुकला की परंपरागत राजपूताना शैली के लक्षणों को प्रकट करता है मंदिर परिसर में गणेश जी वह भैरव जी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है इस मंदिर में सैकड़ों वर्षो से अखंड ज्योति भी प्रज्वलित है इस मंदिर में दर्शन के लिए राजस्थान से ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों से भी लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं
नवरात्र के दौरान यहां होने वाले धार्मिक आयोजनों का विशेष महत्व है बरवाड़ा में चौथ माता जी की प्रतिमा स्थापित होने के बाद इस गांव का नाम चौथ का बरवाड़ा हो गया राजा भीम सिंह ने अपने पिता की स्मृति में गांव के बाहर एक विशाल छतरी का निर्माण करवाकर शिवलिंग की स्थापना करवाई तथा उसके समीप एक तालाब का निर्माण करवाया था छतरी आज भी ‘बिजल’ की छतरी तथा तालाब माताजी का तालाब के नाम से प्रसिद्ध है चौथ माता का इतिहास
चौथ माता मंदिर का
चौथ माता मंदिर का निर्माण 1451 ईस्वी में राजा भीम सिंह ने करवाया था चौथ का बरवाड़ा में इसके अधीन 18 गांवों में अक्षय तृतीया को कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं इसका कारण यह है कि एक बार राजा भीम सिंह के उत्तराधिकारीयो पर राठौड़ों ने आक्रमण कर दिया भीम सिंह के उत्तराधिकारी देवी चौथ माता को भूल चुके थे वह उनकी पूजा उपासना नहीं किया करते थे जिस समय राठौड़ों ने आक्रमण किया
उस समय माता जी के मंदिर के नीचे वाली बस्ती में अक्षय तृतीया को एक बरात प्रवेश कर रही थी उस हमले में संपूर्ण बरात मारी गई इस कारण आखा तीज के दिन की चौथ का बरवाड़ा व इसके 18गांवो में माताजी की आट पड़ गई इसलिए इन गांवों में आखा तीज के दिन शादी विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं यहां तक कि घरों में कढ़ाई भी नहीं चढ़ाई जाती है चौथ माता का इतिहास
चौथ माता का चमत्कार
आज से 35 वर्ष पहले चौथ माता जी के मंदिर के ऊपर भयंकर बिजली गिरी थी उस समय मंदिर में 10 12 व्यक्ति तथा कन्हैयालाल जी ब्रह्मचारी मौजूद थे दो-तीन व्यक्ति बेहोश हो गए तथा सभी का जीवन संकट में पड़ गया था उस समय ब्रह्मचारी जी ने चौथ माता की परिक्रमा देकर सबको भभूत दी और चौथ माता का ध्यान करते ही बिजली का असर खत्म हो गया जो बेहोश व्यक्ति थे
वह भी ठीक हो गए मंदिर का भी कुछ नहीं बिगड़ा बिजली गिरने के निशान मंदिर में आज भी मौजूद है कहा जाता है कि प्राचीन काल में चोरू जंगलों में एक भयानक अग्निकुंड प्रकट हुआ जिसेसे दारूद भैरव का विनाश हुआ था इस प्रतिमा के चमत्कारों को देखकर जंगल के आदिवासियों को प्रतिमा के प्रति लगाव हो गया और उन्होंने अपने कुल के आधार पर चोर माता के नाम से इसकी पूजा करने लगे इसके बाद में चोर माता का नाम धीरे-धीरे चौथ माता हो गया
वर्षों बाद चौथ माता की प्रतिमा चोरों के विकेट जंगलों से अचानक विलुप्त हो गई मगर इसके वर्षों बाद यही प्रतिमा बरवाड़ा क्षेत्र की पचाला तलहटी में महाराजा भीम सिंह चौहान को स्वपन में दिखाई देने लगी लेकिन भीम सिंह चौहान ने इसे अनदेखा कर दिया था कहा जाता है कि एक बार महाराजा भीम सिंह चौहान को रात में सपना आया कि शिकार खेलने की परंपरा को मैं भूलता जा रहा हूं इसी स्वपन की वजह से महाराजा भीम सिंह चौहान ने शिकार खेलने जाने का निश्चय किया
महाराजा भीम सिंह चौहान बरवाड़ा से संध्या के वक्त जाने का निश्चय किया एवं शिकार खेलने की तैयारी करने लगे तभी उनकी रानी रत्नावली ने उन्हें शिकार करने से मना कर दिया परंतु महाराजा भीम सिंह ने उनकी बात को अनदेखा कर के अपनी सैनिकों के साथ शिकार करने के लिए जंगल में निकल पड़े जंगल में पहुंचे तो उन्हें वहां पर एक हिरण दिखाई दिया और हिरण का शिकार करने के लिए उसके पीछे-पीछे चलने लगे लेकिन रात हो जाने के कारण राज्य के सभी सैनिक जंगल में एक दूसरे से भटक गए थे
इसके बाद वह राजा हिरण की आवाज के पीछे पीछे चलने लगे चलते समय वह इतना थक गए थे कि उन्हें बहुत अधिक प्यास लगी और वह मूर्छित होकर जंगल में कहीं गिर पड़े तभी उन्हें स्वपन में वही प्रतिमा दिखाई दी इसके बाद जोर से बारिश होने लगी और राजा ने बारिश के पानी से अपनी प्यास बुझाई तभी उन्होंने देखा कि अंधकार में एक नन्ही सी कन्या खेल रही थी
पहले तो राजा उसे देखकर डर गए बाद में राजा ने उस कन्या से पूछा कि तुम इतनी रात को इस जंगल में क्या कर रही हो तभी चौथ माता अपने असली रूप में आती है और राजा को दर्शन देती है और राजा चौथ माता के चरणों में गिर जाते हैं और कहते हैं कि यदि आप मेरे से प्रसन्न हो तो मैं चाहता हूं कि हमारे क्षेत्र में आप हमेशा निवास करें इसके बाद चौथ माता ने कहा कि हे राजन आपकी इच्छा पूरी होगी यह कहकर चौथ माता अंतर्ध्यान हो गई जहां से चौथ माता लुप्त हुई वहां से राजा को चौथ माता की प्रतिमा मिली उसी चौथ माता की प्रतिमा को लेकर राजा बरवाड़ा आ गए और उस प्रतिमा को वहां लाकर ऊंची पहाड़ी पर स्थापित कर दिया चौथ माता का इतिहास