चौधरी छाजू राम का जीवन परिचय,चौधरी छाजू राम का जन्म,देशभक्ति की भावना ,सेठ छाजू राम का व्यापार ,सेठ छाजू राम की दानवीरता , सेठ छाजू राम की मृत्यु 

चौधरी छाजू राम का जीवन परिचय

आधुनिक युग में दानवीर सेट चौधरी छाजू राम को अपने समय का भामाशाह, कुबेर का अवतार, हरिश्चंद्र, दधीचि ऋषि और हरियाणा का कोहिनूर हीरा की उपमा दी गई थी हरियाणा में 3 सालों की तरह तीन राम भी हुए थे जिनमें से एक थे देश के महान परोपकारी सेठ, शिक्षित, समाज सेवक, दानवीर ,देश भगत चौधरी छाजू राम हरियाणा में ही नहीं बल्कि भारतवर्ष में भी अपनी एक विशेष बचाने रखते हैं

जहां आधुनिक हरियाणा में तीन लाल हुए जैसे देवी लाल, बंसी लाल, भजन लाल हरियाणा एवं देश को एक नई राह दिखाई वहीं एक समय ऐसा भी था जब तीन राम छाजू राम ,छोटू राम, नेकी राम जैसे महान पुरुषों ने समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी चौधरी छाजू राम का जीवन परिचय

चौधरी छाजू राम का जन्म

सेठ छाजू राम का जन्म 27 नवंबर 1861 को जिला भिवानी तहसील बवानीखेड़ा के अलख पुर गांव में हुआ था इनके पिता जी का नाम चौधरी सालिम ग्राम था इनका बचपन विपत्तियों और संघर्षों से व्यतीत हुआ था लेकिन अपनी लगन ,परिश्रम और दृढ़ निश्चय से सफलता के शिखर तक पहुंचे इनके पिता शालिग्राम जी एक साधारण किसान थे चौधरी राजूराम के पूर्वज झुंझुनू के निकटवर्ती गांव लांबा गोठड़ा से आकर भिवानी जिले के ढाणी माहू गांव में बसे थे

इनके दादाजी मनीराम ढाणी माहू को छोड़कर सिरसा जा बसे लेकिन कुछ दिनों के बाद इनके पिताजी अलखपूर आकर बस गए चौधरी छाजू राम की शिक्षा में बचपन से ही रुचि रही इसी रुचि को लेकर आर्थिक स्थिति अच्छी न रहने के बावजूद भी इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 1877 में बवानीखेड़ा के स्कूल से प्राप्त की थी चौधरी छाजू राम गांव से 11 किलोमीटर दूर बवानीखेड़ा के प्राइमरी स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे

जब इनका पांचवी कक्षा का बोर्ड का परिणाम आया तो न केवल अपनी परीक्षा में प्रथम बल्कि प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए मिडिल शिक्षा 1880 भिवानी से पास करने के बाद इन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक की परीक्षा 1882 में पास की थी मेधावी छात्र होने के कारण इनको छात्रवृत्ति मिलती रही लेकिन परिवार की स्थिति अच्छी न होने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए

इन्होंने मैट्रिक संस्कृत, अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू और गणित विषयों से प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की थी यह बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपना खर्चा चलाते थे भिवानी में पढ़ते हुए इनका संपर्क यहां के आर्य समाजी इंजीनियर “श्री राय साहब शिवनाथ राय” से हो गया जो इनकी मेहनत से खुश थे वह अपने साथ इनको हजारीबाग कोलकाता ले गए यह घर में रहकर इनके बच्चों को पढ़ाते रहे उस समय इनकी आयु 22 वर्ष की थी

कुछ समय में इनका संपर्क यहां राजगढ़ के सेठ के साथ हो गया था उस समय कोलकाता में अधिकांश व्यापार पर मारवाड़ी सेठों का कब्जा था मारवाड़ी लोग अंग्रेजी भाषा बहुत कम जानते थे सेठ छज्जू राम समय निकालकर उन्हीं सेठों की व्यापार संबंधित चिट्ठी आदि अंग्रेजी में लिख दिया करते थे उस समय इन्हें सभी मुंशीजी या मास्टर जी कहकर बुलाते थे

कोलकाता में व्यापार संबंधी लोगों की चिट्ठियां लिखते रहने के कारण इनको व्यापार संबंधी बातों की विशेष जानकारी हो गई थी कोलकाता में रहते हुए इन्होंने दलालों के साथ बाजार में जाना शुरू कर दिया था इनकी बातचीत तथा कार्य व्यवहार बड़े ध्यान से देखते हुए और कुशाग्र बुद्धि होने के कारण इन्होंने दलालों की सब बातें समझ ली इसके बाद इन्होंने पुरानी बोरियों का काम शुरू कर दिया दिन रात के कठोर परिश्रम के कारण आय में विशेष वृद्धि होने लगी

कुछ समय के बाद नई बोरियों की दलाली तथा क्रय-विक्रय आरंभ कर दिया इस प्रकार इन्होंने काफी धन कमाया और शीघ्र ही बड़े दलालों में गिनती होने लगी इसके बाद इन्हें एक दलालों की कंपनी में काम मिल गया जिसमें इन्हें 75% दलाली मिलती थी जबकि दूसरे दलालों को केवल 25% ही दलाली मिलती थी यह अंग्रेज कंपनी थी जिसमें जूट का कारोबार था जिसमें उन्होंने दलाली का काम शुरू किया था उस समय यह एक ब्राह्मण के ढाबे पर रोटी खाते थे तथा उसका महीना भर में हिसाब कर देते थे

देशभक्ति की भावना 

सेठ छाजू राम दानदाता ही नहीं थे बल्कि वह उच्च कोटि के देश भगत भी थे उनकी आंखों में भी भारत की आजादी का सपना था वह भी भारत को आजाद देखना चाहते थे जब 17 दिसंबर 1928 को सरदार भगत सिंह ने अंग्रेज अधिकारी सांडर्स को गोली मारकर हत्या कर दी थी तो वह भाभी दुर्गा व उनके पुत्र को साथ लेकर पुलिस की आंखों में धूल झोंकते हुए रेलगाड़ी से लाहौर से कोलकाता पहुंचे और कोलकाता में छाजू राम की कोठी पर पहुंचे

और सेठ साहिब की धर्मपत्नी वीरांगना लक्ष्मी देवी जी ने उनका स्वागत किया यहां भगत सिंह लगभग ढाई महीने तक रहे जिसकी उस समय कल्पना करना भी संभव नहीं था लेकिन सेठ जी के देश प्रेम के कारण यह संभव हो पाया उन्होंने देश की आजादी में सबसे अधिक आर्थिक सहयोग दिया चौधरी छाजू राम का जीवन परिचय

सेठ छाजू राम का व्यापार 

जिस ब्राह्मण ढाबे पर यह भोजन करते थे वहीं पर भोजन करने वाले महाजनों और ब्राह्मणों ने उस ढाबे के स्वामी को मिलकर कहा कि एक जाट का लड़का हमारे साथ बैठकर भोजन नहीं कर सकता तो इस जाट युवक को यहां भोजन खिलाना बंद कर दो अन्यथा हम यहां तुम्हारे ढाबे से भोजन करना छोड़ देंगे इसके बाद ढाबे के मालिक ने अगले दिन छाजू राम को सब बातें बताई और भोजन खिलाने से मना कर दिया

इसके बाद युवक छाजू राम ने बहुत ऊंचा उठने का दृढ़ संकल्प किया एक लखपति, करोड़पति ,सेठ, महाजन से तथा ब्राह्मण से भी ऊंचा सम्मान पाने तथा अपनी जाति को ऊपर उठाने की तीव्र लालसा जाग उठी कुछ समय बाद धीरे-धीरे कोलकाता में कंपनियों के हिस्से खरीदते रहे और बड़े-बड़े व्यापारियों की गिनती में आ गए कुछ समय बाद अपने कोलकाता में जूट का कारोबार पूर्ण रूप से अपने हाथ में ले लिया

कोलकाता की मार्केट में इन्हें पटसन का बादशाह के नाम से जाना जाने लगा इसके बाद देश के बड़े करोड़पति ओं में इनकी गणना होने लगी यह कोलकाता की 24 कंपनियों के सबसे बड़े शेयर होल्डर हिस्सेदार थे एण्डरुयल एण्ड कंपनी की 10 और बिड़ला ब्रदर्स की कुल 12 कंपनियों के यह निर्देशक थे यह पंजाब नेशनल बैंक के निर्देशक भी बने परंतु बाद में त्यागपत्र दे दिया

इन्हें हिस्सों के कारण 16लाख रुपए प्रति वर्ष का लाभ मिलता था उस समय इनका व्यापार चरम सीमा तक पहुंच गया था करोड़ों रुपए बैंकों में जमा थे 24 कंपनियों के 75% हिस्से इनके थे हिसार में पांच संपूर्ण गांव इनके थे अलकपूर और शेखपुरा में दो शानदार महल खड़े हैं कोलकाता में आलीशान कोठियों के अतिरिक्त शानदार वैभव युक्त दर्शनीय एक अतिथि भवन था

जो उन दिनों ₹5 लाख की लागत से बना था इन्होंने लाखों रुपए में कई गांवों की जमीनदारी का विशाल भू-भाग खरीद कर विशाल जमीन दारी अलकपूर पैतृक जन्म स्थान के आसपास बनाई इनकी विशाल जमींदारी को लोग अलकपूर रियासत तक कह दिया करते थे इनकी गणना भारतवर्ष के बड़े-बड़े करोड़पति सेठों में की जाती थी इनके पास अनेकों बहुमूल्य वस्तुएं थी किंतु एक कार जिसका नाम “रोल्स रॉयस” था वह उन दिनों में ₹100000 की खरीदी थी कोलकाता में सबसे पहले इस कीमती कार को इनके सुपुत्र श्री सज्जन कुमार ही लाए थे चौधरी छाजू राम का जीवन परिचय

सेठ छाजू राम का विवाह 

सेठ छाजू राम की दो शादियां हुई थी इनका पहला विवाह दादरी की डोहकी गांव की एक सुंदर कन्या से हुआ था विवाह के कुछ दिनों के बाद हैजा की बीमारी के कारण इनका स्वर्गवास हो गया और इस से इन्हें कोई भी संतान नहीं हुई थी इसके बाद इनका दूसरा विवाह भिवानी के बिलावल गांव की बुद्धिमता कन्या लक्ष्मी देवी से 1890 के आसपास हुआ लक्ष्मी देवी से इन्हें 6 संतान प्राप्त हुई थी

लक्ष्मी देवी का 19 मार्च 1973 को स्वर्गवास हो गया था इन के सबसे बड़े पुत्र का नाम सज्जन कुमार था जो युवावस्था में ही स्वर्ग सिधार गया उससे छोटा पुत्र भी छोटी आयु में ही गुजर गया था कमलादेवी लड़की बचपन में स्वर्ग धाम चली गई थी जिसकी याद में सेठ छाजू राम ने “लेडी हेली हॉस्पिटल भिवानी” में बनवाया था वैदिक धर्म की शिक्षाओं तथा आर्य समाज के सिद्धांतों का इनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा जो जीवन भर बना रहा आर्य समाज और सर साधुराम में चोली दामन का सा गहरा संबंध रहा चौधरी छाजू राम का जीवन परिचय

सेठ छाजू राम की दानवीरता 

इन्होंने आर्य समाज की सैकड़ों संस्थाओं में दान दिया आर्य समाज के उच्च कोटि के त्यागी तपस्वी संत स्वामी श्रद्धानंद जी ने गंगा के किनारे हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना की सेठ चौधरी छाजू राम ने उस गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के भवन बनवाने में काफी धनराशि दान दी थी कर्मवीर डॉक्टर संसार सिंह जी ने कन्या “गुरुकुल कनखल” की स्थापना की इनकी संस्था में भी इन्होंने कन्या शिक्षा प्रसार हेतु सबसे बड़ी धनराशि भवन निर्माणर्थ दान में दी

गुरुकुल वृंदावन आदि शिक्षण संस्थाओं में भी इनके द्वारा दी गई धनराशि आज भी पत्थरों पर अंकित है इनके द्वारा दिया गया दान भारतवर्ष के विभिन्न भागों में उच्च कोटि की शिक्षण संस्थाओं के रूप में फल फूल रहा है जिन दिनों डी.ए.वी कॉलेज लाहौर आर्थिक संकट से गुजर रहा था उन दिनों सेठ छाजू राम ने उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की थी जिस समय प्रथम महायुद्ध में गांधीजी ने अंग्रेजो को सहायता देने का वचन दिया था

उसी तरह सेठ छाजू राम ने प्रथम महायुद्ध सन 1914 में सरकार को युद्ध फंड में ₹1,40000 का योगदान दिया और सरकार को युद्ध ऋण में कई हजार रुपए देकर मदद के और स्वयं के प्रति तथा कुछ अंश में आर्य समाज के प्रति सरकार के शक को ठीक नीति से दूर करके यह सिद्ध कर दिया कि आर्य वसुदेव कुटुंबकम पर विश्वास करते हैं

इन्होंने जाट महासभा तथा आर्य समाज के नियमों का पालन करते हुए दहेज प्रथा का डटकर विरोध किया था सेठ चौधरी छाजू राम की मित्रता अंग्रेजों की झूठी पत्तल चाटने वाले अंग्रेजों के दासो से नहीं थी बल्कि देश भगत, आंदोलनकारी ,विद्रोही, क्रांतिकारी ,आर्य पुरुषों से थी

 सेठ छाजू राम की मृत्यु 

लगभग 4 माह की लंबी बीमारी के बाद 7 अप्रैल 1943 ईस्वी को 82 वर्ष की आयु में सेठ छाजू राम का निधन हो गया था दानवीर सेट चौधरी छाजू राम के स्वर्गवास की सूचना मिलने पर दीनबंधु सर छोटू राम ने आंखों में आंसू भर कर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था कि भारतवर्ष का महान दानवीर गरीब और अनाथो का धनवान आज अमर होकर हमारे लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं

चौधरी छाजू राम का जीवन परिचय