भीमाबाई का इतिहास,भीमाबाई होल्कर का जन्म,भीमाबाई होल्कर का विवाह,भीमाबाई से युद्ध ,भीमाबाई और हंट के बीच युद्ध , भीमाबाई की जीवनी

भीमाबाई का इतिहास

भीमाबाई होल्कर का जन्म

 भीमा बाई होलकर का जन्म 22 सितंबर 1795 को राजवाड़ा, इंदौ,र मध्यप्रदेश में हुआ इनके पिता का नाम महाराजा “जसवंत राव होल्कर” तथा माता का नाम “कृष्णा बाई होलकर” था यह रानी अहिल्याबाई की पोती और मल्हार राव होलकर तृतीय की बड़ी बहन थी बाल्यकाल से ही अपनी माता के साथ रामायण और महाभारत का अध्ययन करती और गीता को अपने जीवन का आदर्श मानती थी

उनका कथन था मनुष्य को अपने जीवन में गीता का अनुसरण करना चाहिए आत्मा अमर है और यह शरीर एक वस्त्र के समान परिवर्तनशील है अतः मनुष्य को मृत्यु के भय का त्याग कर सतत रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए

इसके साथ ही भीमाबाई  बचपन से ही अपने भाइयों के साथ हथियार चलाने का कठिन अभ्यास करती थी भीमाबाई को तलवारबाजी में हरा पाना बहुत ही मुश्किल था इसके साथ ही वह अच्छी चित्रकार भी थी भीमाबाई शिवाजी,महाराज, महाभारत तथा रामायण के युद्ध चित्र बनाती रहती थी भीमाबाई का इतिहास

भीमाबाई होल्कर का विवाह 

कम उम्र में ही इनका विवाह 12 फरवरी 1809 में एक वीर राजकुमार गोविंदराव बोलिया के साथ हो गया था दुर्भाग्यवश, 14 दिसंबर 1815 को पति की ऐसे में मृत्यु हो जाने पर यह विधवा हो गई और शीघ्र ही इनके पिता का साया भी इनके सर से उठ गया था तब भीमाबाई इंदौर आकर अपने छोटे भाई मल्हारराव की शासन व्यवस्था में मदद करने लगी मल्हारराव भी अपनी बड़ी बहन का बहुत ही आदर करते थे

वह राजा होने पर भी सारा कामकाज अपनी बड़ी बहन की सलाह के अनुसार ही किया करते थे उन दिनों अंग्रेज सारे देश पर अपना पंजा जमाने में लगे हुए थे वह देशी रियासतों को धीरे-धीरे हड़पते जा रहे थे सारे देश की तरह मध्यप्रदेश की रियासतों को भी अंग्रेज हड़पते जा रहे थे वे शीघ्र ही होलकर राज्य को भी हड़पना चाहते थे क्योंकि मध्य प्रदेश के राज्य में होलकर राज्य का काफी महत्वपूर्ण स्थान था परंतु वीर जसवंत के सामने अंग्रेजों की एक नहीं चल पाती थी जब तक राजा जसवंत सिंह जीवित रहे होलकर राज्य की ओर देखने का अंग्रेजों ने साहस नहीं किया

लेकिन जब से राजा जसवंत की मृत्यु हो गई और होलकर राज्य के शासन की बागडोर मल्हारराव ने अपने हाथ में ली तो अंग्रेज धीरे-धीरे होलकर राज्य की ओर बढ़ने लगे उन्होंने सोचा कि मल्हारराव अभी कच्ची उम्र का है और उसके पास अनुभव भी नहीं है उसे आसानी से अपनी मुट्ठी में किया जा सकता है इसके बाद अंग्रेज राजकाज में बाधा डालने लगे मल्हारराव भी समझ गया कि अंग्रेज उसके राज्य को हड़पना चाहते हैं

इसके बाद मल्हारराव ने अपनी बड़ी बहन भीमाबाई से सलाह की भीमा बाई भी अंग्रेजों के षड्यंत्र को देख रही थी उन्होंने कहा कि अंग्रेजों की गति को रोकने के लिए उनके साथ युद्ध करना ही होगा उन्हें हमारे राजकाज में बाधा डालने का कोई अधिकार नहीं है इसके बाद भाई-बहन दोनों ने आपस में सलाह करके युद्ध का निश्चय कर लिया दोनों बड़े उत्साह के साथ युद्ध की तैयारियां करने लगे भीमाबाई प्रतिदिन घोड़े पर सवार होकर गांव में निकल जाती थी

और अपने ओजस्वी वाणी से जनता को जागृत करती थी वह लोगों से कहते कि फिरंगी हमारी स्वतंत्रता को नष्ट करना चाहते हैं उन्होंने लोगों से कहा कि हम अंग्रेजों को ऐसा सबक सिखाएंगे कि वह कभी भी हमारी तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखेंगे उनकी इन बातों का लोगों पर बहुत ही प्रभाव पड़ा जिसके परिणाम स्वरुप हजारों युवक होलकर कि सेना में भर्ती हो गए देखते ही देखते हैं होलकर राज्य की एक बहुत बड़ी और संगठित सेना तैयार हो गई उनकी सेना में 10,000 पैदल सैनिक, 15000 घुड़सवार और आग उगलने वाली 100 तोपे थी घुड़सवारो की कमान भीमाबाई के हाथों में थी 

भीमाबाई से युद्ध 

मल्हार राव ने युद्ध की घोषणा कर दी थी मल्हार राव अपनी बड़ी बहन भीमाबाई के साथ सेना लेकर महिदपुर जा पहुंचा उधर अंग्रेज सेनापति हीस्लिप पहले से ही युद्ध के लिए तैयार था जब उसके कानों में मल्हारराव के युद्ध की घोषणा पड़ी तो वह भी अपनी सेना लेकर मूहीदपुर जा पहुंचा हीस्लिप बड़ा शूरवीर और अनुभवी सेनापति था उसकी सेना में हिंदुस्तानी और गोरे दोनों थे

अंग्रेज फौज के घुड़सवारो की कमान कैप्टन हंट के हाथों में थी हंट अंग्रेजी सेना का एक साहसी कैप्टन था वह औसत दर्जे के कद का दुबला पतला आदमी था उसकी वीरता के किस्से दूर-दूर तक फैले हुए थे उसे अपने रण विद्या पर बड़ा गर्व था वह भीमाबाई से युद्ध करना नहीं चाहता था उसे एक ही स्त्री के साथ युद्ध करना अपनी वीरता का अपमान लगता था वह सोचता था कि वह स्त्री कैसी होगी जो घोड़े पर सवार होकर, हाथ में तलवार लेकर युद्ध करती है

वह उसे देखना चाहता था इसके बाद हंट अपने घुड़सवारो की फौज लेकर रण के मैदान में आ पहुंचा हंट रण के मैदान में भीमाबाई की प्रतीक्षा करने लगा वह अपनी ओर से सजग नहीं था क्योंकि उसे अपनी युद्ध कला पर पूरा भरोसा था वह गर्व के साथ सोचता था कि एक औरत क्या युद्ध करेगी, वह क्या तलवार चलाएगी, मैंने बड़े-बड़े ताकतवर दुश्मनों का सामना किया है

मुझे इससे लड़ने में क्या परेशानी होगी तभी हंट को आकाश पर उड़ती हुई धूल दिखाई पड़ी धीरे-धीरे धूल अधिक हो गई और करीब आती गई हंट समझ गया यह धूल भीमाबाई के घोड़ों की टापो से उड़ी हुई धूल है जिस प्रकार बादलों में बिजली चमकती है उसी प्रकार उस धूल के बीच से निकलती हुई भीमाबाई दिखाई पड़ी वह घोड़े पर सवार नीचे से लेकर ऊपर तक सैनिक वेश में थी उनका गौर वर्ण था, उनके मस्तिष्क पर लाल तिलक लगा था, उनके नेत्र बहुत ही तेजस्वी थे हंट ने अपने जीवन में ऐसी नारी कभी नहीं देखी थी

वह निश्चिंत होकर भीमाबाई की ओर देखने लगा पर भीमाबाई ने उसके पास पहुंचकर बिजली की तरह कड़क ते हुए कहा- हे  फिरंगी क्या देख रहे हो युद्ध करो हंट और भीमाबाई एक-दूसरे पर वार करने लगे हंट भीमाबाई के हाथों से तलवार गिरा देना चाहता था पर भीमाबाई ने उसके कंधे पर ऐसा वार किया कि खून की धारा निकल पड़ी हंट गिरते-गिरते बचा वह काफी घायल हो गया था

भीमाबाई गंभीर वाणी में बोल उठी है फिरंगी हम घायल शत्रु पर वार नहीं करते जाओ अपनी चिकित्सा कराओ तभी हीस्लिप की संगठित से रण के मैदान में पहुंच गई मल्हारराव का हाथी उसे लेकर भाग खड़ा हुआ भीमाबाई ने जब देखा कि उनकी हार निश्चित है तो वह घोड़े पर भागती हुई 1 गांव पहुंची और अपने परिचित एक किसान के घर में विश्राम करने लगी

इसके बाद मल्हारराव अंग्रेजों के साथ संधि करने को विवश हो गया मंदसौर में अंग्रेजों और मल्हारराव के बीच संधि हुई संधि में निश्चय हुआ मल्हार राव राजधानी रामपुरा को छोड़कर इंदौर में रहेंगे अंग्रेजी सरकार उन्हें वार्षिक पेंशन देगी वार्षिक पेंशन के अतिरिक्त उनका राजकाज से कोई संबंध नहीं रहेगा इंदौर में भी अंग्रेजी फौज की छावनी रहेगी भीमाबाई का इतिहास

भीमाबाई और हंट के बीच युद्ध 

 जब मल्हार राव ने संधि की सूचना भीमाबाई को दी तो वह बहुत ही क्रोधित हो उठी और कहा मुझे यह शर्तें मंजूर नहीं है मैं अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अंतिम सांस तक युद्ध करूंगी इसके बाद भीमाबाई अपने घुड़सवारों को लेकर फिर रण के मैदान में जा पहुंची हंट उनके सामने उपस्थित हुआ भीमाबाई ने उसे देखते ही कहा घाव अच्छा हो गया फिरंगी इसके बाद भीमाबाई ने हंट पर तलवार चला दी

हमने भी तलवार का जवाब तलवार से दिया दोनों में युद्ध होने लगा दोनों एक दूसरे पर वार करने लगे हंट इस बार सजगता से लड़ रहा था हंट ने भीमाबाई पर कस कर वार किया उन्होंने उसके वार को अपनी तलवार पर लिया वह स्वयं तो बच गई पर तलवार हाथ से छूटकर दूर जा गिरी कैप्टन हंट एक सच्चा योद्धा था हंट बोला रानी साहिबा आप शूरवीर हो आपकी वीरता के लिए मेरे हृदय में श्रद्धा है आप निहत्थे हो मैं आप पर वार नहीं करूंगा कहिए तो तलवार उठा कर आपके हाथ में दे दूं, भीमाबाई ने उत्तर दिया मुझे भी व्यर्थ युद्ध करने का कोई शौक नहीं है

इसके बाद कैप्टन हंट ने कहा रानी साहिबा मैंने सुना था कि भारतीय नारियां रण में युद्ध करती है आज मैं अपनी आंखों से देख रहा हूं आपकी वीरता से बहुत प्रभावित हूं कहिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं इसके बाद भीमाबाई ने उत्तर दिया आप भारतीयों को आपस में लड़ा कर अपना राज्य स्थापित कर रहे हैं आप चालाकी से भारतीयों को गुलाम बना रहे हैं आप मेरी क्या सेवा करोगे इसके बाद हंट ने कहा मैं सचमुच आप की सेवा करने के लिए तैयार हूं कुछ कह कर तो देखिए

भीमाबाई ने सोचते हुए उत्तर दिया तो फिर वचन दीजिए कि इंदौर में अंग्रेज फौज की छावनी स्थापित नहीं होगी हंट के लिए यह वचन देना बहुत कठिन था यह उसके अधिकार से बाहर का काम था फिर भी उसने कहा रानी साहिबा मैं वचन तो नहीं दे सकता परंतु प्रयत्न अवश्य करूंगा इसके बाद हंट ने सेनापति हीस्लिप से कहा भीमाबाई की इच्छा अनुसार इंदौर में फौज की छावनी ना बनाई जाए

यह बात हीस्लिप के भी अधिकार से बाहर थी उसने हंट को आश्वासन दिया कि वह पोलिटिकल एजेंट को लिखेगा हीस्लिप ने जब अपनी सिफारिश के साथ पोलिटिकल एजेंट को लिखा तो उसने उसकी बात मान ली अंग्रेजी फौज के लिए छावनी इंदौर में नहीं महू में बनाई गई भीमाबाई युद्ध में पराजित अवश्य हो गई परंतु उन्होंने अंग्रेजी फौज की छावनी इंदौर में नहीं बनने दी आज वह हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी बहादुरी को आज भी भारत के लोग अपनी यादों में बसाए हुए हैं

भीमाबाई का इतिहास