बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय
बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय, बटुकेश्वर दत्त का जन्म, बटुकेश्वर दत्त द्वारा बम फेकना , भगत सिंह द्वारा बटुकेश्वर दत्त को पत्र, आजादी के बाद का जीवन, बटुकेश्वर दत्त की मृत्यु
बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय
बटुकेश्वर दत्त एक महान क्रांतिकारी थे वर्ष 1924 में इनकी मुलाकात भगत सिंह से हुई थी एक समय गंगा में बाढ़ आ गई थी जिस वजह से जनता को बड़ी हानि का सामना करना पड़ा था इस समय बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह ने मिलकर पीड़ितों की सेवा की थी देश प्रेमी बटुकेश्वर दत्त हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए और भगत सिंह और उनके साथियों के साथ कार्य करने लगे इसी दौरान उन्होंने बम बनाना भी सीख लिया था
बटुकेश्वर दत्त का जन्म
बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था इनका बचपन बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खंडा और मौसु में बीता था इनके पिता जी का नाम “गोष्ट बिहारी दत्त” था तथा माता का नाम “कामिनी देवी” था वे एक दवा कंपनी में काम करते थे जो बाद में कानपुर उत्तर प्रदेश में रहने लगे इसलिए बटुकेश्वर दत्त की प्रारंभिक शिक्षा पी.पी.एन. हाई स्कूल कानपुर में हुई कानपुर शहर में इनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद से हुई उन तीनों चंद्रशेखर आजाद झांसी, कानपुर और इलाहाबाद के इलाकों में अपनी क्रांतिकारी गतिविधियां चला रहे थे 1924 में भगत सिंह भी वहां आए थे देश प्रेम के प्रति उनके जज्बे को देखकर भगत सिंह उनकी पहली मुलाकात से ही इन्हें अपना दोस्त मानने लगे थे इनमें देशभक्ति तथा समाज सेवा का भाव बचपन से ही था यह भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के सबसे करीबी साथियों में से एक थे वह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के अहम सदस्य थे इन्होंने अपने मित्रों के साथ कानपुर “जिमनास्टिक क्लब” की स्थापना भी की थी उन दिनों कानपुर क्रांतिकारियों का एक बड़ा केंद्र था बटुकेश्वर दत्त अपने मित्रों में मोहन के नाम से प्रसिद्ध थे
बटुकेश्वर दत्त द्वारा बम फेकना
1928 में जब हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन चंद्रशेखर आजाद की अगुवाई में हुआ तो बटुकेश्वर दत्त भी उसके अहम सदस्य थे बम बनाने के लिए बटुकेश्वर दत्त ने खास ट्रेनिंग ली और इसमें महारत हासिल कर ली कई क्रांतिकारी गतिविधियों में वह सीधे तौर पर शामिल थे जब क्रांतिकारी गतिविधियों के खिलाफ अंग्रेज सरकार ने डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट लाने की योजना बनाई तो भगत सिंह ने उसी तरह से सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने का इरादा बनाया जैसे कभी फ्रांस के चेंबर ऑफ डेप्यूटीज में एक क्रांतिकारी ने बम फेंका था भगत सिंह के साथ 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली के संसद भवन में बम फेंकने के बाद वे चाहते तो भाग सकते थे पर क्रांतिकारी दल के निर्णय के अनुसार दोनों ने गिरफ्तारी दे दी इसके बाद 6 जून 1929 को न्यायालय में दोनों ने एक लिखित वक्तव्य दिया जिसमें क्रांतिकारी दल की कल्पना “इंकलाब जिंदाबाद” का अर्थ तथा देश की व्यवस्था में आमूल परिवर्तन की बातें कही गई थी इसके बाद 25 जुलाई 1929 को उन्होंने गृह मंत्री के नाम एक पत्र भी लिखा जिसमें जेल में राजनीतिक बंदियों व हो रहे अत्याचार एवं उनके अधिकारों की चर्चा की गई उन्होंने अन्य साथियों के साथ इस विषय पर 114 दिन तक भूख हड़ताल भी की थी भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु को फांसी घोषित हुई जबकि दत्त को आजीवन कारावास
भगत सिंह द्वारा बटुकेश्वर दत्त को पत्र
इस पर भगत सिंह ने उन्हें एक पत्र लिखा उसमें कहा गया है कि हम तो मर जाएंगे पर तुम जीवित रह कर दिखा दो कि क्रांतिकारी जैसे हंस कर फांसी चढ़ता है, वैसे ही वह अपने आदर्शों के लिए हंसते हुए जेल की अंधकार पूर्ण कोठरीयों में यातनाएं और उत्पीड़न भी सहन कर सकता है 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में भगत सिंह आदि को फांसी हुई और बटुकेश्वर दत्त को पहले अंडमान और फिर 1938 में पटना जेल में रखा गया जेल में वह सहरोग और पेट दर्द से पीड़ित हो गए इसके बाद 8 1938 को कुछ शर्तों के साथ रिहा किए गए पर 1942 में वे फिर ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में जेल चले गए इसके बाद बटुकेश्वर दत्त को 1945 में पटना में अपने बड़े भाई के घर में नजरबंद किए गए इसके बाद 1947 में हजारीबाग जेल से मुक्त होकर वे पटना में ही रहने लगे इतनी लंबी जेल के बाद भी उनका उत्साह जीवित था 36 वर्ष की अवस्था में उन्होंने आसनसोल में सादगी पूर्ण रीति से “अंजलि दत्त” से विवाह किया भगत सिंह की माता “विद्यावती जी” उन्हें अपना दूसरा बेटा मानती थी पटना में बटुकेश्वर दत्त को बहुत आर्थिक कठिनाइयां झेलनी पड़ी उन्होंने एक कंपनी के एजेंट की तथा पत्नी ने एक विद्यालय में ₹100 मासिक की नौकरी की 1963 में कुछ समय के लिए वे विधान परिषद में मनोनीत किए गए पर वहां उन्हें काफी विरोध सहना पड़ा उनका मन इस राजनीति के अनुकूल नहीं बना था 1964 में स्वास्थ्य बहुत बिगड़ने पर पहले पटना के सरकारी अस्पताल और फिर दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में उनका इलाज हुआ उन्होंने बड़ी वेदना से कहा कि जिस दिल्ली की संसद पर मैंने बम फेंका था वह मुझे स्ट्रेचर पर आना पड़ेगा यह कभी सोचा भी नहीं था बीमारी में उनकी मां विद्यावती जी उनकी सेवा में लगी रही
आजादी के बाद का जीवन
बटुकेश्वर दत्त भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे बटुकेश्वर दत्त ने देश की आजादी के लिए 15 साल से ज्यादा का समय जेल में बिताया था और जब भारत आजाद हुआ तो उनके सामने कमाने और घर चलाने की समस्या आ गई देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने के कारण बटुकेश्वर दत्त के पास कुछ नहीं बचा था उनके पास ना तो कोई रोजगार था और ना ही अपना जीवन चलाने का कोई साधन था सरकार ने लोन पर जक्कनपुर में जमीन दी जहां बटुकेश्वर दत्त ने बाकी का जीवन संघर्ष करते हुए बिताया प्रारंभ में बटुकेश्वर दत्त ने एक सिगरेट कंपनी में एजेंट की नौकरी करी वह जगह-जगह सिगरेट बेच कर अपना गुजारा करते थे बाद में उन्होंने बिस्कुट बनाने का एक छोटा कारखाना भी खोला लेकिन नुकसान होने की वजह से इसे बंद करना पड़ा
बटुकेश्वर दत्त की मृत्यु
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और उनके कई पुराने साथी उनसे मिले 20 जुलाई 1965 की रात में 2:00 बजे इस महान क्रांतिकारी ने शरीर छोड़ दिया उनका अंतिम संस्कार वहीं हुआ जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के शव जलाए गए थे अपने मित्रों और माता विद्यावती के साथ बटुकेश्वर दत्त आज भी वहां शांत सो रहे हैं
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