बालमुकुंद का जीवन परिचय ,बालमुकुंद गुप्त का जन्म,बालमुकुंद की प्रमुख रचनाएं , साहित्यिक विशेषताएं ,गांधीवादी विचारधारा,बालमुकुंद की मृत्यु 

बालमुकुंद का जीवन परिचय 

 बालमुकुंद गुप्त के साहित्य में समाज सुधार की भावना थी इनके साहित्य में समाज सुधार की भावना को यथोचित स्थान मिला है इन्होंने अपना पूरा जीवन अध्ययन ,लेखन एवं संपादन में लगाया व जीवन भर स्वतंत्रता की अलख जगाए रखी इन्होंने अपने युग के समाज को जीवन को अत्यंत समीप से देखा था उसमें जो कमजोरियां, अवगुण, कुरीतियां स्वार्थी पन आदि व्यक्त था बालमुकुंद ने उनको सावधान रहने की प्रेरणा दी उन्होंने नारी सुधार पर भी खूब कार्य किया था इन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर करारा व्यंग्य कसा था बालमुकुंद का जीवन परिचय 

बालमुकुंद गुप्त का जन्म

 बालमुकुंद गुप्त द्विवेदी युगीन साहित्यकारों में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं भारतेंदु युग और द्विवेदी युग को जोड़ने वाली कड़ी थे वे अच्छे कवि, अनुवादक, निबंधकार और कुशल संपादक थे इनका जन्म 14 नवंबर 1865 में हरियाणा राज्य के रेवाड़ी जिले के गुड़ियानी गांव में लाला पूरणमल के यहां हुआ था

इनके दादा जी का नाम लाल ‘गोवर्धनदास’ था इनका पालन-पोषण इनकी विधवा चाची ने किया था इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी छात्रावास में वे बड़े ही अध्ययन शील एवं सहनशीलता रहे परंतु दादाजी तथा पिताजी के देहांत के बाद इनको अपनी शिक्षा अधूरी छोड़नी पड़ी थी बाद में जब अध्ययन आरंभ किया तो 21 वर्ष की आयु में मिडिल परीक्षा पास कर सके

बालमुकुंद ने उर्दू भाषा और पूर्ण अधिकार प्राप्त कर लिया था बालमुकुंद अखबार चुनार उर्दू अखबार के संपादक नियुक्त हुए थे इसके साथ-साथ वह “कोहिनूर” तथा जमाना जैसे अखबारों के संपादकीय विभाग से जुड़े रहे इसके बाद इनका रुझान हिंदी भाषा की ओर हुआ भारत प्रताप पत्र के साथ जुड़ने के बाद इन्होंने हिंदी लेखन में काफी सुधार किया कालांतर में वे हिंदुस्तान, व भारत मित्र के संपादक भी रहे बालमुकुंद का जीवन परिचय 

बालमुकुंद की प्रमुख रचनाएं 

श्री बालमुकुंद गुप्त के जैसे सिंधु- संधि बिंदु पर खड़े थे वहां इन्हें भारत का अतीत और वर्तमान परिदृश्य के समान साफ साफ दिखाई देता था और भारत का भविष्य अपने निर्णय की प्रतीक्षा में था इसलिए इनके विपुल साहित्य में भारत के स्वर्णिम भविष्य और संभावनाओं का ध्वनि- संकेत, शब्द शब्द में मुखरित हुआ है ‘शिव शंभू’ के चित्र तथा चित्र सर्वाधिक लोकप्रिय व्यंग्यात्मक, सामाजिक और राजनीतिक निबंधों के संग्रह है 1905 में बालमुकुंद गुप्त निबंधावली शीर्षक से उनके निबंधों का संग्रह भी प्रकाशित हुआ इसमें 50 निबंध संकलित है निबंधों के साथ उनके कुछ काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए बालमुकुंद का जीवन परिचय 

 साहित्यिक विशेषताएं 

श्री बालमुकुंद गुप्त मूल्य संपादक से धार्मिक प्रवृत्ति के थे विदेश की पराधीनता के प्रति सदैव चिंतित रहते थे उन्होंने अपने साहित्य निबंध, संपादकीय लेखों और काव्या के विरुद्ध आवाज उठाई उनके निबंधों में कुछ विशेषताएं महत्वपूर्ण थी जैसे राष्ट्रीय भावना, श्री बालमुकुंद गुप्त अल्प मात्रा में ही काव्य की रचना की है

लेकिन उनका समूचा काव्य राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत है गुप्त जी भारत की पराधीनता को लेकर बहुत ही व्याकुल रहते थे डॉ नगेंद्र ने उनके साहित्य के बारे में स्पष्ट लिखा है राष्ट्रीयता और हिंदी प्रेम उनके साहित्य का मुख्य विषय है यदि गहराई से उनके साहित्य का अध्ययन किया जाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि राष्ट्रीयता उनके साहित्य का मुख्य स्वर है बालमुकुंद का जीवन परिचय 

गांधीवादी विचारधारा

गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव इन के काव्य में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है यद्यपि सिद्धांतों में विश्वास रखते हैं फिर भी कहीं-कहीं उनके तेवर बड़े तेज तर्रार प्रतीत बड़े आशीर्वाद उन्होंने कहा है कि हमें विदेशी माल को नकार कर चरखा कातना चाहिए और लघु तथा कुटीर उद्योगों का प्रधानता देनी चाहिए द्विवेदी युगीन कभी होने के कारण गुप्त जी के साहित्य में लोक जागरण का स्वर सुनाई देता है

उन्होंने देश की प्रथम तथा सामाजिक कुरीतियों, धार्मिक आडंबरो का भी चित्रण किया है गुप्त जी ने विदेशी वस्तुओं को त्याग और स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर भी बल दिया है भले ही वे धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत है लेकिन समाज सुधारक की भावना भी उनमें प्रबल थी

इन्होंने अपने विभिन्न लेखों तथा कविताओं द्वारा इस विषय पर अपने विचार व्यक्त किए हैं गुप्तकालीन परिस्थितियां भारतेंदु युग इन परिस्थितियों से भी नहीं थी वह लगभग भारतेंदु के समकालीन थे वैसे तो उनको “शिव शंभू के चिट्ठे” से साहित्य ख्याति प्राप्त हुई लेकिन उनके व्यंग्य लेख काफी तीखा और तेल मिला देने वाला है उन्होंने गवर्नर भजन के माध्यम से अंग्रेजी साम्राज्य पर करारा व्यंग्य किया है उस समय के हालात को देखते हुए यह कार्य सहज नहीं था

बालमुकुंद ने अपने समय में दूसरी भाषाओं के उत्तम कोटि के साहित्य को हिंदी में अनुवाद करने का कार्य किया ताकि हिंदी का प्रचार-प्रसार हो सके बालमुकुंद एक अच्छे अनुवादक थे इन्होंने संस्कृत के रत्नावली नाटक और बांग्ला कि बड़ेल भाग्नि का सुंदर अनुवाद किया इस प्रकार उन्हें उच्च स्तरीय रचनाओं का अनुवाद करके हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में अपना भरपूर योगदान दिया है बालमुकुंद गुप्त कि भाषा शैली

श्री बालमुकुंद गुप्त ने अपने सहायता में सहज, सरल, सामान्य बोलचाल की खड़ी बोली का प्रयोग किया है इनकी भाषा पर कुछ-कुछ ब्रज भाषा का भी प्रयोग है इसका कारण यह है कि भारतेंदु युग और द्विवेदी युग को मिलाने वाली कड़ी के रूप में देखा जाता है फिर भी इनका शब्द चयन सर्वथा उचित और भाव अभिव्यक्ति में समर्थ है एवं दो के समान कविता भी उनकी भाषा शैली की एक ओर विशेषता है शिव शंभू के चिट्ठे गुप्त जी का सुप्रसिद्ध निबंध संग्रह है इसमें कुल 11 निबंध संकलित है इन सब में लॉर्ड कर्जन का जीवन तथा उनकी भारत के प्रति नकारात्मक सोच का उल्लेख है 

बालमुकुंद की मृत्यु 

18 सितंबर 1907 को बालमुकुंद जी की 42 वर्ष अल्पायु में ही मृत्यु हो गई थी लेकिन इनका नाम हिंदी साहित्य में हमेशा बना रहेगा गुप्त जी के निबंधों में निबंधकार की संवेदनशीलता मनुष्य मात्र के प्रति उसकी आत्मीयता, सहानुभूति और राष्ट्र के प्रति प्रेम भावना का उल्लेख होता है इनके द्वारा की गई निबंध कला आगे चलकर खूब प्रसिद्ध और विकसित हुई गुप्त जी के निबंध निबंध साहित्य में नमक का काम किया है इसलिए निबंध साहित्य के विकास में बालमुकुंद गुप्त का श्रेष्ठ स्थान है निबंध कला के विकास के योगदान के लिए इन्हें हमेशा याद किया जाएगा

बालमुकुंद का जीवन परिचय