बाघा जतिन का जीवन परिचय ,बाघा जतिन का जन्म ,युगांतर पार्टी में योगदान,बाघा जतिन का बलिदान ,बाघा जतिन की मृत्यु
बाघा जतिन का जीवन परिचय
स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे क्रांतिकारी हुए हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो गया एक ऐसा ही नाम था जतिंद्रनाथ मुखर्जी जिन्हें हम लोग बाघा जतिन के नाम से जानते हैं कहते हैं कि देश को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए बाघा जतिन ने एक ऐसी योजना बनाई थी कि देश 1915 में ही आजाद हो गया होता बाघा जतिन का जीवन परिचय
बाघा जतिन का जन्म
बाघा जतिन का जन्म 7 दिसंबर 1879 को जिला जसोर बंगाल में हुआ था इनके पिता जी का नाम ‘उमेश चंद्र’ और इनकी माता जी का नाम ‘शरद शशि’ था इनका पूरा नाम “जतिंद्रनाथ मुखर्जी” था 5 वर्ष की अल्पायु में पिता को खो देने के बाद जतिंद्रनाथ का उनकी माता ने कठिनाइयों से लालन-पालन किया
खेलकूद में इनकी बहुत ही रुचि थी इसी कारण से इनका शरीर बलवान था बचपन में अपने मामा के साथ इनकी मुलाकात रविंद्र नाथ टैगोर से होती थी और यह रविंद्र नाथ टैगोर से बहुत ही प्रभावित थे बाघा जतिन किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में भी हिस्सा लेते थे एक बार किसी भारतीय का अपमान करने पर इन्होंने एक साथ पांच अंग्रेजों की पिटाई कर दी थी वह सन 1897 में मैट्रिक पास करने के बाद स्टेनोग्राफर की नौकरी करने लगे उनके बारे में एक सत्य कथा है कि 27 वर्ष की आयु में जंगल से गुजरते हुए जतिंद्रनाथ ने हंसीये से एक बाघ को मार गिराया था
इस घटना के उपरांत वह “बाघा जतिन” के नाम से विख्यात हो गए दिल में स्वतंत्रता के प्रति ज्वाला लिए बाघा जतिन ज्यादा समय तक नौकरी नहीं कर पाए और क्रांति की राह पकड़ ली इन्हीं दिनों में अंग्रेजों ने “बंग भंग” करने का षड्यंत्र था इस षड्यंत्र का पता चलने पर बंगाल में अंग्रेजों का खुलकर विरोध होना शुरू हो गया और क्रांति की चिंगारी पूरे बंगाल में भड़क उठी इसी दौरान वर्ष 1905 में ब्रिटेन के राजकुमार कोलकाता में थे उनके स्वागत समारोह में जतिन ने महिलाओं के अपमान से नाराज होकर कई अंग्रेजों की पिटाई कर दी
इस घटना के बाद क्रांतिकारियों के मन में बाघा जतिन के प्रति सम्मान और अधिक बढ़ गया था इसके बाद बाघा जतिन ने वीरेंद्र की मदद से देवघर में एक बम फैक्ट्री की स्थापना की थी इसके बाद वह 3 साल तक दार्जिलिंग में रहे एक दिन वही के सिलीगुड़ी स्टेशन पर उनका सामना अंग्रेज सैनिकों से हो गया और गुस्से में आकर जतिन ने उस टुकड़ी के कैप्टन सहित आठ अंग्रेजों की पिटाई कर दी बाघा जतिन का जीवन परिचय
युगांतर पार्टी में योगदान
सन1910 में क्रांतिकारी संगठन मे काम करते समय जतिंद्रनाथ हावड़ा षड्यंत्र में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें साल भर की जेल भी हुई इसके बाद जेल से मुक्त होने पर बाघा जतिन “युगांतर पार्टी” का कार्य देखने लगे उन दिनों युगांतर पार्टी एक प्रमुख संगठन था जिसका एकमात्र उद्देश्य था भारत को स्वतंत्र कराना दार्शनिक क्रांतिकारी बाघा जतिन अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ आलेख भी लिखते थे
इसके बाद अलीपुर बम कांड में भी जतिन बाघा का नाम आया था बाघा जतिन ने सर डेनियल की मदद से कई छात्रों को विदेश पढ़ने भेजा वहां उन्हें सैन्य प्रशिक्षण दिया गया अप्रवासी भारतीयों से सहायता ली गई थी ऐसे ही पांडुरंग और हेमदास ने एक रूसी क्रांतिकारी से बम बनाना सिखा इसी बीच जतिंद्र नाथ को गिरफ्तार किया गया तत्कालीन अंग्रेजी सरकार क्रांतिकारियों से बहुत परेशान थी इसलिए सन 1912 में राजधानी कोलकाता से बदलकर दिल्ली बनाई गई सीक्रेट सोसाइटी उन दिनों भारतीयों पर जुल्म ढहाने वालों का खात्मा कर रही थी
तभी एक क्रांतिकारी पकड़ा गया और उसने जतिन बाघा के नाम का खुलासा कर दिया इसके बाद जतिन को एक अंग्रेज अफसर की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया इसी बीच बाघा जतिन ने जेल में रहते हुए अन्य कैदियों के साथ मिलकर एक योजना बनाई देश को आजाद कराने के लिए यह अब तक की सबसे बड़ी योजना थी इतिहास में इस योजना को ‘हिंदू जर्मन कॉन्फ्रेंसि’के नाम से जाना जाता है यदि यह योजना कामयाब हो जाती तो हमारा देश1915 में ही आजाद हो जाता
इसी योजना के मुताबिक फरवरी 1915 में 1857 की तरह क्रांति करने की योजना थी मगर इसी दौरान पंजाब के एक विद्रोही सैनिक के भाई कृपाल सिंह ने क्रांतिकारियों को धोखा दिया और उनकी सारी योजना अंग्रेजी सरकार तक पहुंचा दी इसके बाद अंग्रेजी सरकार को जतिन और उनके साथियों की खबर लग चुकी थी बाघा जतिन का जीवन परिचय
बाघा जतिन का बलिदान
जनसाधारण में बाघा जतिन एक अलग ही स्तर का आदर और सम्मान प्राप्त कर चुके थे क्रांति के लिए धन जुटाने के लिए बाघा जतिन और अन्य क्रांतिकारी सरकारी खजाने को लूटते जिसमें से दुलरिया और गार्डन रीच के नाम अधिक प्रसिद्ध है बंगाल में उन दिनों ‘राडा कंपनी’ बंदूक और कारतूस का व्यापार करती थी बाघा जतिन और उनके साथियों ने कंपनी की एक गाड़ी को रास्ते में ही गायब कर दिया था
जिसमें क्रांतिकारियों को 52 पिस्तौले और 50000 गोलियां प्राप्त हुई 9 सितंबर 1915 को पुलिस ने बाघा जतिन के गुप्त स्थान को ढूंढ निकाला राज महंती नामक पुलिस अफसर ने वहां धावा बोल दिया बाघा जतिन की गोली से राज महंती वहीं ढेर हो गया इसके बाद यह समाचार मिलने पर मजिस्ट्रेट किलवी दलबल सहित वहां पहुंच गया
इसके बाद दोनों तरफ से गोलियों की बौछार हुई बाघा जतिन, यतीश ,जीत प्रिय,वीरेंद्र और मनोरंजन इन पांच क्रांतिकारियों ने डटकर उनका मुकाबला किया जीत प्रिय गोली लगने से वही शहीद हो गए बाघा जतिन का शरीर भी गोलियों से छलनी हो गया ,परंतु दिलेर क्रांतिकारी डटकर मुकाबला करते रहे शरीर ज्यादा छलनी होने के कारण वह जमीन पर गिर गए बाघा जतिन का जीवन परिचय
बाघा जतिन की मृत्यु
इसके बाद किल्बी ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया अगले दिन 10 सितंबर 1915 भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त दिलवाने की तमन्ना रखने वाले बाघा जतिन इस संसार से मुक्ति पाकर अमर शहीद हो गए
बाघा जतिन का जीवन परिचय