बछेंद्री पाल का जीवन परिचय ,बछेंद्री पाल का जन्म,बछेंद्री पाल की शिक्षा ,बछेंद्री पाल को सम्मान ,बछेंद्री पाल द्वारा किए गए अभियान 

बछेंद्री पाल का जीवन परिचय 

किसी भी कार्य को करने के लिए विश्वास होना जरूरी है विश्वास के दम पर ही व्यक्ति अपने सपनों को सच कर सकता है और इसी विश्वास के कारण ही बछेंद्री पाल ने विश्व की सबसे ऊंची चोटी पर साल 1984 में कदम रखा था इस चोटी पर कदम रखते ही वह पहली ऐसी भारतीय महिला बन गई थी जिसने एवरेस्ट के अभियान को सफलता के साथ पूरा किया था 

बछेंद्री पाल का जन्म 

बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला थी इनका जन्म 24 मई 1954 में नकुरी उत्तरकाशी में हुआ था इनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था इनके पिता जी का नाम “किशन सिंह पाल” था और उनकी माता जी का नाम “हंसा देवी” था यह कुल 7 भाई बहन थे इनके पिता भारत से जाकर तिब्बत में सामान बेचा करते थे और इनकी माताजी एक गृहिणी थी

बछेंद्री पाल बचपन से ही एक पर्वतारोही बनने का ख्वाब देखने लगी पाल हमेशा से ही पढ़ाई लिखाई में तेज थी लेकिन उस समय हमारे देश में लड़कियों की पढ़ाई पर परिवार वाले ज्यादा ध्यान नहीं देते थे जिसके कारण बच्चियों को पढ़ाई से वंचित रहना पड़ता था बछेंद्री पाल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब उन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखने की बात अपने पिता के सामने रखी तो उन्होंने आगे की पढ़ाई करवाने से साफ इंकार कर दिया था

पिता से मंजूरी नहीं मिलने के कारण बछेंद्री पाल काफी परेशान हो गई और इन्हें अपनी शिक्षा बीच में छोड़ने का डर सताने लगा लेकिन पाल की मां जानती थी कि पाल अपने जीवन में कुछ अलग करने का सपना देखती है और पाल के इन्हीं सपनों को पूरा करवाने के लिए इनकी मां ने पाल के पिता को समझाया कि वह पाल को आगे की पढ़ाई करने की अनुमति दे दी जिसके बाद पाल के पिता ने पाल को आगे की पढ़ाई करने के लिए अनुमति दे दी

अनुमति मिलने के बाद पाल ने अपना पूरा ध्यान केवल अपनी पढ़ाई पर लगा दिया और इस तरह से उन्होंने अपने पहले बी.ए. विषय में डिग्री प्राप्त की और इसके बाद संस्कृत भाषा में M.A पोस्ट ग्रेजुएशन किया पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के बाद पाल ने B.Ed की डिग्री भी हासिल की ताकि वह एक अध्यापिका बन सके और अपना ज्ञान बच्चों को बांट सके | बछेंद्री पाल का जीवन परिचय 

बछेंद्री पाल की शिक्षा 

जब वह मात्र 12 वर्ष की आयु में एक स्कूल पिकनिक के दौरान पहली बार अपने दोस्तों के साथ एक 13,123 फीट ऊंची चोटी पर चढ़ाई की तो वह गांव की एकमात्र लड़की थी अपने स्नातक पूर्ण करने वाली जिसके बाद उन्होंने संस्कृत में MA और फिर शिक्षक की नौकरी प्राप्त करने के लिए B.Ed का प्रशिक्षण लिया इतना सब कुछ करने के बाद भी कितने मेधावी और प्रतिभाशाली महिला को उम्मीद के विपरीत कोई ज्यादा अच्छी नौकरी नहीं मिली

इन्होंने अपनी पढ़ाई B.Ed तक की इसके बाद बछेंद्री पाल ने आखिरकार अपने सपनों को पूरा करने की ठानी और सभी परिवार और रिश्तेदारों के तीव्र विरोध के बावजूद भी नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग कोर्स में आवेदन किया इसके बाद 1982 में एडवांस कैंप में गंगोत्री और रुदगैरा पर चढ़ाई करके इतिहास रचा इनकी इन्हीं कामयाबी के कारण ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने इंस्ट्रक्टर इन्हें यही पहली नौकरी दे दी थी

1984 में माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के लिए एक अभियान दल का गठन किया गया था इस दल का नाम 84 था जिसमें लगभग 11 पुरुष और 5 महिलाएं थी इसके बाद इन्होंने अपनी टीम के साथ अपनी यात्रा शुरू की लेकिन यात्रा के दौरान बीच में ही लोटस ग्लेशियर में अचानक भूस्खलन हो गया जिसमें वह और उनकी टीम के कई सदस्य बुरी तरह से जख्मी हो गए इस आपदा के कारण पूरी टीम के कैंप बर्बाद हो गए और टीम के ज्यादातर सदस्य बीच रास्ते से ही हार मान कर वापस घरों की ओर रवाना हो गए थे

इतनी मुसीबतों का सामना करते हुए भी उन्होंने हार नहीं मानी और टीम के कुछ सदस्यों के साथ चटाई पूरी करने के इरादे के साथ आगे चल पड़ी उन्होंने अपनी टीम के साथ 23 मई 1984 के दिन 1:07 पर 29,028 फीट की ऊंचाई पर मौजूद “सागरमाथा” पर भारत का झंडा लहरा दिया और माउंट एवरेस्ट पर अपनी जीत की कहानी लिखी बछेंद्री पाल ने तूफान और कठिनाई का सामना किया और माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला का खिताब हासिल किया इतना बड़ा मुकाम हासिल करके बछेंद्री पाल ने लोगों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत किया है बछेंद्री पाल का जीवन परिचय 

बछेंद्री पाल को सम्मान 

इसके अलावा बछेंद्री पाल ने कई अचीवमेंट हासिल किए हैं जैसे -1984 में भारतीय पर्वतारोहण फाउंडेशन ने इन्हें ‘गोल्ड मेडल’ से सम्मानित किया था इसके बाद भारत सरकार ने भी बछेंद्री पाल को भी देश के प्रतिष्ठित नागरिक अवार्ड ‘पदम श्री’ से सम्मानित किया था बछेंद्री पाल को 1986 में ‘अर्जुन अवार्ड’ से सम्मानित किया गया था उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग ने भी बछेंद्री पाल को ‘गोल्ड पदक’ से भी नवाजा था

बछेंद्री पाल ने आपदा राहत और समाज सेवा के क्षेत्र में भी कई अहम योगदान दिए हैं उन्होंने वर्ष 2000 में पहली बार गुजरात में आए भूकंप के बाद त्रासदी से आम लोगों की मदद के लिए कुछ पर्वतारोही वालंटियर की टीम बनाकर लगभग डेढ़ महीने तक जरूर से जुड़ी वस्तुओं प्रदान कराई अपनी सेवाएं प्रदान की इसके बाद इन्होंने 2006 में उड़ीसा में आई भयंकर चक्रवात से प्रभावित जिलों में लोगों को अपनी टीम के साथ राहत सामग्री इत्यादि पहुंचाने की सेवाएं दी

इसके बाद 2013 में उन्होंने उत्तराखंड में आई भयंकर प्राकृतिक आपदा के बाद अपनी टीम के साथ मिलकर ट्रेकिंग के हुनर और पर्वतीय क्षेत्रों की गहन जानकारी का उपयोग करते हुए लोगों की जान बचाने और मुख्यधारा से कट चुके दूरदराज के इलाकों तक राहत सामग्री पहुंचाने में सशक्त भूमिका निभाई जिसके कारण इन्हें चारों तरफ से ख्याति प्राप्त हुई बछेंद्री पाल का जीवन परिचय 

 बछेंद्री पाल द्वारा किए गए अभियान 

साल 1993 में पाल के नेतृत्व में भारत और नेपाल के एक दल ने सफलतापूर्वक माउंट एवरेस्ट के शिखर की चढ़ाई की थी और इस दल के सभी 7 सदस्य महिलाएं ही थी माउंट एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचने वाले इस दल ने कुल 8 विश्व रिकॉर्ड बनाए थे इसके बाद साल 1994 में पालने एक और इतिहास रच दिया था जब इन्होंने तीन रॉफ्टर के जरिए हरिद्वार में गंगा नदी से अपना सफर शुरू किया था

यह सफर इन्होंने कोलकाता तक किया था और इस 2155 किलोमीटर की यात्रा को पाल और उनकी 16 महिला साथियों ने 39 दिनों में पूरा किया था साल 1986 में यूरोप की सबसे ऊंची चोटी माउंट ब्लैक और साल 2008 में अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी माउंट किलिमंजारो पर भी पाल ने सफलतापूर्वक चढ़ाई की थी

साल 1999 में पाल ने विजय रैली कारगिल शुरू की थी और इस रैली की शुरुआत दिल्ली से मोटरबाइक के जरिए की गई थी और इस रैली का अंतिम चरण कारगिल था इस रैली में मौजूद सभी सदस्य महिलाएं ही थी और इस रैली का लक्ष्य कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देना था

बछेंद्री पाल का जीवन परिचय