बाबा बघेल सिंह का इतिहास, बाबा बघेल सिंह का जन्म ,दिल्ली पर सिखों का कब्जा ,खालसा पंथ का झंडा फहराया,बाबा बघेल सिंह का बलिदान,बाबा बघेल सिंह की मृत्यु 

बाबा बघेल सिंह का इतिहास 

बाबा बघेल सिंह एक अच्छे सिपाही होने के साथ-साथ एक बहुत अच्छे राजनीतिक वार्ताकार भी थे और अपने पक्ष में कई विरोधियों को जीतने में सक्षम थे 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के दौरान अहमद शाह दुर्रानी के लगातार आक्रमणों के कारण पंजाब में मुगल सत्ता के पतन के मद्देनजर, सिखों ने अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया था सरदार बघेल सिंह ने सिख मंदिरों की खोज और निर्माण के लिए शहर में आयात किए जाने वाले सामानों पर कर एकत्र करने के लिए सब्जी मंडी के पास एक चुंगी चौकी स्थापित की थी बाबा बघेल सिंह का इतिहास 

बाबा बघेल सिंह का जन्म 

बाबा बघेल सिंह का जन्म पंजाब के अमृतसर जिले के झाबल कला गांव में 1730 के आसपास 1 जाट परिवार में हुआ था अपने छोटे भाई पैरों शाह के साथ प्रसिद्ध माही भागो के दादा 1580 के दशक में गुरु अर्जुन देव जी के समय में सिख धर्म में परिवर्तित हो गए थे बाबा बघेल सिंह भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में पंजाब क्षेत्र में एक सैन्य जनरल थे वह सतलुज यमुना के आसपास के क्षेत्र में प्रमुखता से उभरा बघेल सिंह करोरा मिशन में शामिल हो गए जो सिख संघ के दौरान एक मिसल थे 1765 में बघेल सिंह इस मिसल के नेता बने थे बाबा बघेल सिंह का इतिहास 

दिल्ली पर सिखों का कब्जा 

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की एक किताब दिल्ली फतह दिवस के अनुसार दिल्ली के लाल किले पर कब्जा करने से पहले बाबा बघेल सिंह और जस्सा सिंह आहलूवालिया ने गंगा यमुना के बीच कई क्षेत्रों पर आक्रमण कर उनसे लगान वसूला और वहां के नवाबों की दौलत पर कब्जा कर लिया यहां से वसूले गए धन में से जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कुछ राशि अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के कारण 1762 में तबाह हुए श्री दरबार साहिब अमृतसर के निर्माण के लिए भेज दी थी सिखों के बार-बार आक्रमण ने दिल्ली के मुगल सम्राट आलम को परेशान कर दिया था

इस संबंध में उसने अपने वजीरो को सिक्खों से बातचीत के लिए कहा लेकिन कोई हल न निकला इसके बाद सिख सेना ने 12 अप्रैल 1781 को यमुनापार की और दिल्ली से 32 मील दूर बागपत पर आक्रमण कर दिया इसके बाद विजई अभियान को जारी रखते हुए उन्होंने 16 अप्रैल को शाहदरा और परपरगंज पर हमला बोल दिया 8 अप्रैल 1783 को बाबा बघेल सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया और जस्सा सिंह रामगढ़िया की अगुवाई में 40000 सैनिक बुराड़ी घाट पारकर दिल्ली में दाखिल हुए आहलूवालिया के निर्देश पर सेना को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया

5000 सिपाही मजनू के टीले पर तैनात कर दिए गए, 5000 सिपाहियों की दूसरी टुकड़ी अजमेरी गेट पर तैनात की गई और बाकी बची 30,000 की सेना जिसमें अधिकतर घुड़सवार थे उनको सब्जी मंडी व कश्मीरी गेट के स्थान पर खड़ा कर दिया गया जिसे आजकल “तीस हजारी” के नाम से जाना जाता है

तीस हजारी को यह नाम लाल किले पर आक्रमण करने वाले 30 हजार सिख सैनिकों के कारण ही दिया गया था जो नंगी तलवार लेकर मुगलों का काम तमाम करने के लिए वहां पर तैनात थे यह सेना मलका गंज, मुगलपुरा और सब्जी मंडी में फैल गई सिखसेना की दिल्ली में होने की खबर सुनकर “बादशाह शाह आलम” घबरा गया और उसने मिर्जा सिखों के नेतृत्व में मेहतापुरा किले पर सिख सेना को रोकने की कोशिश की हालांकि वहां पर पराजित होकर वह वहां से भाग गया और लाल किले में जाकर छिप गया

खालसा पंथ का झंडा फहराया 

 9 मार्च को फजल अली खान ने भी सिखों को रोकने का असफल प्रयास किया इसके बाद “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह” के उद्घोष के साथ सिक्ख सेना लाल किले की ओर बढ़ी और दूसरी तरफ अजमेरी गेट पर तैनात सिख सेना ने शहर पर आक्रमण कर दिया मुगल सेना युद्ध करने की बजाय छिप गई

11 मार्च को सिख सेना लाहौरी गेट और मीना बाजार को पार करती हुई लाल किले के दीवाने आम में पहुंच गई और वहां कब्जा कर लिया दीवाने आम पर कब्जा करने के बाद सिख सेना ने लाल किले के मुख्य द्वार पर खालसा पंथ का केसरी निशान साहिब झंडा फहराया ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ था जब सिख सेना ने लाल किले पर कब्जा किया था जब शाह आलम ने देखा कि सिखों ने दीवाने आम पर कब्जा कर लिया है तो वह अपने वकील रामदयाल और बेगम समरू के साथ अपने जीवन की भीख मांगने लगा बेगम समरू भी राजनीतिज्ञ थी

इसलिए उसने तुरंत तीनों जनरलो को अपना भाई बना लिया और दो शर्तें उनके सामने रख दी पहली शर्त यह थी कि आलम का जीवन बक्श दिया जाए और दूसरा लाल किला उसके कब्जे में रहने दिया जाए इन मांगों के बदले में तीनों जनरलो ने 4 शर्तें रखी वह सभी स्थान जहां गुरु साहिबान के चरण पड़े, जहां गुरु तेग बहादुर साहिब को शहीद किया गया और माता सुंदरी व माता साहिब कौर जी के निवास स्थानों का अधिकार सिखों को दिया जाए

बादशाह शाह आलम को कहा गया कि वह 7 स्थानों पर गुरुद्वारा साहिबान के निर्माण के आदेश जारी करें गुरुद्वारों के निर्माण तथा अन्य खर्चों की पूर्ति के लिए कर की वसूली में से 6आने प्रति रुपैया उन्हें दिया जाए और जब तक गुरुद्वारों का निर्माण पूरा नहीं हो जाता तब तक 4000 सिख सैनिक दिल्ली में ही रहेंगे बाबा बघेल सिंह का इतिहास 

बाबा बघेल सिंह का बलिदान

 इसी के साथ बाबा बघेल सिंह गुरुद्वारों के निर्माण के लिए दिल्ली में ही रुके रहे वही जस्सा सिंह आहलूवालिया, व जस्सा सिंह रामगढ़िया दीवाने आम का 6 फुट लंबा, 4 फुट चौड़ा और 9 इंच मोटा पत्थर का तख्त उखाड़कर घोड़े के पीछे बांधकर अपने साथ अमृतसर ले गए यह तख्त आज भी दरबार सिंह अमृतसर के नजदीक बने रामगढ़िया बुर्ज में रखा हुआ है बाबा बघेल सिंह का इतिहास 

बाबा बघेल सिंह की मृत्यु 

बाबा बघेल सिंह की मृत्यु 1802 में हरियाणा में हुई थी

बाबा बघेल सिंह का इतिहास