अवतार सिंह पंवार का जीवन परिचय ,अवतार सिंह पंवार का जन्म,अवतार सिंह पंवार का पद ,अवतार सिंह पवार की तकनीक ,अवतार सिंह पंवार की मृत्यु
अवतार सिंह पंवार का जन्म
अवतार सिंह पवार का जन्म 14 जनवरी 1929 को उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल के लसिया पट्टी के धनिया गांव में हुआ था इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पी. आई. कॉलेज टिहरी गढ़वाल से ही प्राप्त की थी इसके बाद इन्होंने सेंट जॉर्ज कॉलेज मैसूरी में दाखिला लिया था इसके बाद इन्होंने रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज देहरादून में शिक्षा ग्रहण की थी देहरादून में शिक्षा ग्रहण करने के बाद इन्होंने कला की शिक्षा शांतिनिकेतन कोलकाता पश्चिम बंगाल से ग्रहण की थी
प्रोफेसर पवार भारत में पांच प्रमुख ऑलराउंडर कलाकारों में से एक हैं जिसमें पवार सहित डी.पी. रॉय चौधरी, रामकिंकर बेज, सतीश गुजराल और के.जी. सुब्रमण्यम शामिल है पवार जन्म से ही कला के विशेष पारखी रहे हैं इन्हें भारत का एक “मोबाइल आर्ट ट्रेनर” कहा जाता था प्रोफेसर पवार चित्रकार, मूर्तिकार के साथ कला आलोचक और कला इतिहासकार भी थे अवतार सिंह पवार बचपन से ही अलग प्रवृत्ति के थे
प्रकृति व पशु पक्षियों के प्रति अधिक आसक्त थे गढ़वाल क्षेत्र की सुंदरता, भूमि, पर्वत, धाराएं, देवी, देवताओं की भूमि मंदिरों, पवित्र नदियों, गंगा और यमुना, मोटी जंगलों, पेड़ पौधों और फूल और प्राकृतिक क्षेत्र आदि ने इनकी प्राकृतिक वृत्ति को विकसित किया इनका प्राकृतिक संपदा की तरफ अधिक झुकाव था प्रकृति के साथ इनका प्यार और लगाव हमेशा इनके चित्र कृतियों, भित्ति चित्रों और अन्य विषयों के माध्यम से देखा जाता है
प्रोफेसर पंवार ने आरंभ में किसी भी स्कूल से या किसी भी शिक्षक से कला प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था, बल्कि प्रकृति और परमेश्वर के प्राणियों को पेंट करने के लिए सभी प्राकृतिक माध्यमों और संसाधनों का इस्तेमाल किया था बचपन में पंवार को लोग और रिश्तेदार यहां तक कि शिक्षक भी उन्हें हमेशा उनके सौंदर्य गतिविधियों के लिए उन्हें हतोत्साहित किया करते थे यानी कि कला के लिए किसी ने भी उन्हें कभी भी प्रोत्साहित नहीं किया था
परंतु फिर भी पवार के मन में कला की तरफ जाने का निश्चय था लेकिन पंवार अपनी कला के लिए पागल थे और दुनिया में कला प्रसारित करने के लिए ही जन्मे थे अब वह अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा के लिए एक कलाकार बन चुके हैं जिन्हें हिमालय का बेटा कहा जाता है क्योंकि यह हिमालय की तलहटी में ही जन्मे थे और यहीं पर इनका जीवन यापन हुआ था
एक बार 1966 में अवतार सिंह पंवार ने अपने इंटरव्यू में कहा कि “मैं कोई कलाकार नहीं था, और ना ही ऐसा कोई कला मंदिर या कला केंद्र था जहां मैं कला के नमूनों का अध्ययन कर सकता था, यह प्रकृति थी जो मेरी पहली गुरु थी”इनकी कला को सर्वप्रथम यूपी के कला समीक्षक ‘बैरिस्टर मुकंदी लाल’ ने पहचाना और साथ ही शांतिनिकेतन में दाखिला लेने का सुझाव दिया
1997 में पवार ने एक और इंटरव्यू में कहा कि बंगाल में मेरे उन दिनों एक छात्र और शिक्षक के रूप में कला भवन शांतिनिकेतन और विश्व भारती ने मुझे एक नई दृष्टि और दिशा प्रदान की, टैगोर की भूमि, विवेकानंद और अरबिंदो ने मुझे प्रोत्साहित किया वह मेरी भावनाओं में अनुभवों के परिदृश्य को पेंट करने के लिए प्रेरित किया गया पवार जी आचार्य नंदलाल बोस और प्रोफेसर रामकिंकर बेज को अपना असली गुरु मानते हैं
क्योंकि शांतिनिकेतन में इन्हीं दोनों से इन्होंने शिक्षा ग्रहण की थी अवतार सिंह पवार ने रविंद्र नाथ टैगोर को भी भारत के असली पुत्र के रूप में सम्मान और श्रद्धांजलि प्रदान की थी क्योंकि यह इनसे बहुत अधिक प्रभावित थे इन्होंने रविंद्र नाथ टैगोर के जीवन से बहुत कुछ सीखा और उन्हीं के पद चिन्हों को चुना था |
अवतार सिंह पंवार का जीवन परिचय
अवतार सिंह पंवार का पद
कला भवन शांतिनिकेतन से स्नातक होने के बाद पवार ने आचार्य नंदलाल बोस के तहत चित्रकारी और प्रोफेसर रामकिंकर बैज से मूर्तिकला की विशेष शिक्षा प्राप्त की थी अवतार सिंह पवार फुटबॉल के खिलाड़ी भी थे और अन्य खेलों में भी रुचि रखते थे क्योंकि इंडियन मिलिट्री कॉलेज के दौरान शारीरिक प्रशिक्षण की भी इन्होंने ट्रेनिंग प्राप्त की थी
सन 1956 में ललित मोहन सेन की मृत्यु के बाद सुधीर रंजन खस्तगीर लखनऊ आर्ट्स कॉलेज के नए प्रिंसिपल नियुक्त किए गए जिन्होंने शांतिनिकेतन से पवार को लखनऊ आर्ट कॉलेज में बुलाया था सुधीर रंजन खस्तगीर 1956 से 1962 तक लखनऊ आर्ट कॉलेज के प्रिंसिपल रहे थे प्रोफेसर पंवार अधिकतर समय लखनऊ में रहे और लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट में सन 1956 से 1989 तक प्रोफेसर के पद पर कार्य किया था
राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त प्रोफ़ेसर पवार लखनऊ कॉलेज ऑफ आर्ट के पास एक छोटी सी क्वाटर में रहते थे, जहां काम करने के लिए उचित स्थान नहीं था ,परंतु फिर भी बड़ी संख्या में मूर्तियां आंगन में देखी जा सकती थी प्रोफेसर पंवार ने अपने जीवन की कड़ी मेहनत के पैसे से गढ़वाल में कला के उत्थान के लिए एक सांस्कृतिक केंद्र त्रिवेणी आश्रम बनाया जिसके निर्माण के लिए उत्तराखंड में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली द्वारा जमीन दान की गई थी
प्रोफेसर पवार ‘त्रिवेणी आश्रम’ के माध्यम से अपने सपनों को पेश करना चाहते हैं, वे कहते हैं कि त्रिवेणी आश्रम एक कला केंद्र होगा जहां गरीब बच्चों को कला और शिल्प के चित्रकला, मूर्तिकला और विभिन्न अन्य विधाओं को पढ़ाया जाएगा वास्तव में यह स्वयं आय उत्पादक के लिए एक प्रशिक्षण सह प्रोडक्शन सेंटर होने जा रहा है, जिसमें स्थानीय शिल्प के विकास शामिल है
अवतार सिंह पवार की तकनीक
प्रोफ़ेसर पवार ने पेंटिंग में तेल, टेंपरा, वाश और चीनी स्याही का प्रयोग किया है वह मूर्ति कला में, पत्थर कास्य, लकड़ी ,कंक्रीट सीमेंट आदि का प्रयोग करते थे टेराकोटा में उनके काम एक महान क्राफ्ट्समैनशिप का है उन्होंने टेराकोटा और कास्ट स्टोन में अपने अधिकांश काम प्रदर्शित किए हैं
साथ ही मोम पर काम करना उनका पसंदीदा माध्यम था महात्मा गांधी के जीवन पर उनकी पेंटिंग, शहीद स्मारक जबलपुर का म्यूरल है, बोकारो बांध का कार्य है, राष्ट्रीय चीनी संस्थान कानपुर में स्कल्पचर म्यूरल और भारत और विदेशों में महान व्यक्तियों के मिट्टी में पोट्रेट आदि ने उन्हें भारत के एक महान मूर्तिकार के रूप में बदल दिया
प्रोफेसर पवार ने लखनऊ गढ़वाल, कुमाऊं और बेंगलुरु में कई स्मारक उद्यान की मूर्तियां बनाई साथ ही वह अपने छात्रों को काम पर खुद के साथ व्यस्त रखते थे प्रोफेसर पवार के परिवार में पवार सहित पांच अंतरराष्ट्रीय शतक के कलाकार हैं जिनमें उनकी पत्नी ‘प्रभा पवार’, उनके सबसे बड़े बेटे ‘पंकज पवार’ उनकी बहू श्री ‘पंपा पवार’ और उनका भतीजा व शिष्य ‘मुकुल पवार’ शामिल है प्रोफ़ेसर पवार द्वारा लिखित प्रमुख रचनाएं हैं जैसे –
माय एनकाउंटर विद माय मॉडल, माय जापान विजिट, बंगाल स्कूल ऑफ पेंटिंग, द आर्ट ऑफ स्कल्पचर, वैनिशिंग लैंडस्केप ऑफ गढ़वाल, द वैनिशिंग लैंडस्केप ऑफ शांतिनिकेतन, द वैनिशिंग लैंडस्केप ऑफ लखनऊ,द कॉक फाइट, द डॉग, पवार 7 क्वेश्चन अवतार सिंह पंवार का जीवन परिचय
अवतार सिंह पवार की यात्रा
इन्होंने महत्वपूर्ण कला केंद्रों का दौरा किया जिसमें भारत सहित बैंकॉक, हांगकांग और जापान के कई कला केंद्र शामिल है आचार्य नंदलाल बोस के सानिध्य में भारतीय संविधान को सजाने, बोकारो बांध भित्ति चित्र के लिए तथा शहीद स्मारक जबलपुर, मध्य प्रदेश के भित्ति चित्र तैयार करने के लिए इनका चयन किया गया था इन्होंने 1951 में कांग्रेस अधिवेशन लेक मैदान कोलकाता के लिए पंडाल को सजाया था
इसके बाद 1954 में कल्याण के कांग्रेस अधिवेशन के पंडाल को भी इन्होंने ही सजाया था बिड़ला हाउस, नई दिल्ली में कृपाल सिंह शेखावत के अधीन महात्मा गांधी के जीवन पर फ्रेश को चित्र के लिए चयनित तीन कलाकारों में से एक कलाकार के रूप में इन्होंने कार्य किया था नेशनल डेकोरेशन कमेटी द्वारा राष्ट्रीय चिन्ह संस्थान कानपुर में मूर्तिकला भित्ति चित्र तैयार करने के लिए इन्हें चुना गया था
इसके बाद 1974 में कंसास विश्वविद्यालय अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय मूर्तिकार शिविर के लिए आमंत्रित हुए परंतु बीमारी की वजह से भाग नहीं ले सके थे इसके बाद श्रीनगर सहित गवालियर, बनारस, महाबलीपुरम और दिल्ली आदि के कला शिविरों में भाग लेने के लिए चयनित हुए थे अवतार सिंह पवार ने खजुराहो, शांति निकेतन, वाराणसी और बेंगलुरु में अखिल भारतीय कलाकार संगोष्ठी में भाग लिया था
इनका केंद्रीय ललित कला द्वारा मूर्ति कला में राष्ट्रीय विद्वानों का मार्गदर्शन करने के लिए विशेषज्ञ के रूप में चयन किया गया था अवतार सिंह पवार ने मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी,केफ अहमद, एनटी रामा राव, महादेवी वर्मा, सुनील गावस्कर, अमिताभ बच्चन, चंद्र सिंह गढ़वाली, मुकंदी लाल बैरिस्टर, ललिता प्रसाद नैथानी, गुरु टैगोर सहित 135 से अधिक दुनिया की 100 महान हस्तियों के चित्र बनाए थे
प्रोफ़ेसर पवार अलग-अलग कला अकादमी व संस्थाओं में चयनकर्ता व जज के रूप में आमंत्रित किए गए जिनमें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, विश्व भारती शांति निकेतन, जे.एल. नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद आदि शामिल है प्रोफेसर पवार ने लखनऊ के सौंदर्यीकरण के लिए सम्मान प्राप्त किया था हाथी की प्रतिमा, भगवान बुद्ध पार्क, सूरजकुंड और जूलॉजिकल गार्डन आदि में इनकी कलाकृतियां देखी जा सकती है अवतार सिंह पंवार का जीवन परिचय
अवतार सिंह पवार को सम्मान
प्रोफेसर अवतार सिंह पवार को ललित कला अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था राष्ट्रीय ललित कला अकादमी द्वारा फेलोशिप, डी लिट की उपाधि कानपुर यूनिवर्सिटी उत्तर प्रदेश इसके बाद 1994 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा इन्हें “यश भारती” का सम्मान दिया गया था रोटरी क्लब लखनऊ का इंटरनेशनल रोटरी क्लब कोटद्वार उत्तराखंड द्वारा भी ने सम्मानित किया गया था
हिंदी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा इन्हें कला भूषण पुरस्कार दिया गया था 1963 में पेंटिंग कुत्तों की लड़ाई के लिए राज्य ललित कला अकादमी लखनऊ द्वारा भी सम्मानित किया गया था 1967 में फाइन आर्ट अकैडमी कोलकाता द्वारा चित्रों के लिए सर्वश्रेष्ठ चित्रकला पुरस्कार दिया गया 1969 में मूर्ति मुर्गा के लिए राष्ट्रीय ललित कला अकादमी द्वारा पहला राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था 6 जून 1987 को ललित कला अकादमी लखनऊ यूपी द्वारा मूर्तिकला के सम्मानित कलाकार के रूप में सम्मान दिया गया था
अवतार सिंह पंवार की मृत्यु
18 जुलाई 2002 को 73 वर्ष की आयु में हृदयाघात के कारण कोटद्वार, उत्तराखंड में निधन हो गया था
अवतार सिंह पंवार का जीवन परिचय