अल्लूरी सीताराम राजू का इतिहास ,अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म,अल्लूरी सीताराम राजू की साधना,अंग्रेजों के साथ युद्ध,अल्लूरी सीताराम राजू को सम्मान
अल्लूरी सीताराम राजू का इतिहास
अल्लूरी सीताराम राजू का इतिहास
अल्लूरी सीताराम राजू एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था वर्ष 1922 में अल्लूरी सीताराम राजू ने रंपा विद्रोह आंदोलन शुरू किया जिसमें स्थानीय आदिवासी लोग और आंदोलन के समर्थकों ने वर्तमान आंध्र प्रदेश में मद्रास प्रेसीडेंसी के पूर्वी गोदावरी और विशाखापट्टनम क्षेत्रों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे असहयोग आंदोलन के दौरान अल्लूरी ने हथियारों को लूटने के लिए पुलिस स्टेशनों में आग लगा दी थी
अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म
अल्लूरी सीताराम राजू आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले के मोगल्लू ग्राम में 4 जुलाई 1857 को जन्मे थे उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजमुंद्री व रामचंद्रपुरम में हुई थी छात्र जीवन में ही उनका संपर्क निकट के वनवासियों से होने लगा था उनका मन पढ़ाई में विशेष नहीं लगता था कुछ समय के लिए उनका मन अध्यात्म की ओर झुका उन्होंने आयुर्वेद और ज्योतिष शास्त्र का अध्ययन किया पर उनका मन वहां भी नहीं लगा
अतः निर्धन वनवासियों की सेवा के लिए उन्होंने संन्यास ले लिया और भारत भ्रमण पर निकल पड़े भारत भ्रमण के दौरान उन्हें गुलामी की पीड़ा का अनुभव हुआ अब उन्होंने निर्धन सेवा के साथ स्वतंत्रता प्राप्ति को भी अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया इसके बाद कृष्णा देवी पेट के नीलकंठेश्वर मंदिर में उन्होंने अपना डेरा बनाकर साधना प्रारंभ कर दी जातिगत वेदों से ऊपर उठकर थोड़े ही समय में उन्होंने आसपास की जनजातियों में अच्छा संपर्क बना लिया
अल्लूरी राजू ने उनके बीच संगठन खड़ा किया तथा नरबलि, शराब, अंधविश्वास आदि कुरीतियों को दूर करने में सफल हुए इस प्रारंभिक सफलता के बाद राजू ने उनके मन में गुलामी के विरुद्ध संघर्ष का बीजारोपण किया उस समय लोग अंग्रेजों के अत्याचार से दुखी तो थे ही अतः सब ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध शंखनाद कर दिया | अल्लूरी सीताराम राजू का इतिहास |
अल्लूरी सीताराम राजू की साधना
अल्लूरी सीताराम राजू जब छोटे थे तो वह अकेले में रहना और ध्यान करना पसंद करते थे एक बार उनकी एक अमीर लड़के से दोस्ती हो गई राजू इस लड़के की बहन पर मोहित हो गए जिसका नाम सीता था सीता की बहुत जल्दी मृत्यु हो गई और सीता की मृत्यु के बाद राजू ने उसके मूल नाम से अपना नाम को जोड़ दिया
इस प्रकार राम राजू ने अपना नाम बदलकर सीताराम राजू कर लिया था अल्लूरी सीताराम राजू ने सर्कस करतब और कलाबाजी में रुचि तब तक विकसित की जब वह अपने पिता की मृत्यु के बाद अपने चाचा के घोड़े की सवारी करते थे अल्लूरी सीताराम राजू ने पढ़ाई छोड़ने के बाद भी तेलुगु, संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में महारत हासिल की थी अल्लूरी सीताराम राजू को बचपन से ही गंगा और गोदावरी जैसे तीर्थ स्थानों पर जाने का शौक था | अल्लूरी सीताराम राजू का इतिहास |
अंग्रेजों के साथ युद्ध
इसके बाद वनवासी युवक तीर, कमान, भाले, परसे जैसे अपने परंपरागत शस्त्रों को लेकर अंग्रेज सेना का मुकाबला करने लगे अगस्त 1922 में राजू एवं उनके वनवासी क्रांति भी वीरों ने चिंतापल्ली थाने पर हमला कर उसे लूट लिया भारी मात्रा में आधुनिक शस्त्र उनके हाथ लगे अनेक पुलिस अधिकारी भी हताहत हुए अब तो राजू की हिम्मत बढ़ गई उन्होंने दिनदहाड़े थानों पर हमले प्रारंभ कर दिए इसके बाद वह अपने साथियों को छुड़ाकर शस्त्र लूट लेते थे यद्यपि यह लड़ाई दीपक और तूफान जैसी थी फिर भी कई अंग्रेज अधिकारी तथा सैनिक इसमें मारे गए
आंध्र प्रदेश के के कई क्षेत्रों से अंग्रेज शासन समाप्त होकर राजू का अधिकार हो गया उन्होंने ग्राम पंचायतों का गठन किया इससे स्थानीय मुकदमे शासन के पास जाने बंद हो गए लोगों ने शासन को कर देना भी बंद कर दिया अनेक उत्साही युवकों ने तो सेना के शस्त्र कारों को भी लूट लिया अंग्रेज अधिकारियों को लगा कि यदि राजू की गतिविधियों पर नियंत्रण नहीं किया गया तो बाजी हाथ से बिल्कुल ही निकल जाएगी
उन्होंने राजू का मुकाबला करने के लिए गोदावरी जिले में असम से सेना को बुला लिया राजू के साथियों के पास तो परंपरागत शस्त्र थे जिनमें आमने-सामने का मुकाबला हो सकता था पर अंग्रेजों के पास आधुनिक हथियार थे फिर भी राजू ने मुकाबला जारी रखा पिंडावल सा के संघर्ष में उनको भारी क्षति हुई पर राजू बच निकले अंग्रेज फिर भी हाथ मलते रह गए
जब बहुत समय तक राजू हाथ नहीं आए तो अंग्रेज उनके समर्थकों और निरपराध ग्रामीणों पर अत्याचार करने लगे यह देखकर राजू से रहा नहीं गया और उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया अंग्रेज तो यही चाहते थे उन्होंने 7 मई 1924 को राजू को पेड़ से बांधकर गोली मार दी इस प्रकार एक क्रांतिकारी, सन्यासी, भगवान भक्त और समाज सुधारक का अंत हुआ अल्लूरी का मकबरा आंध्र प्रदेश के कृष्णा देवी पेटा गांव में स्थित है | अल्लूरी सीताराम राजू का इतिहास |
अल्लूरी सीताराम राजू को सम्मान
वर्ष 1974 में अल्लूरी सीताराम राजू नामक एक तेलुगू फिल्म जो अल्लूरी के जीवन पर आधारित थी इस फिल्म के प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय अभिनेता कृष्णा को दिखाया गया था आंध्र प्रदेश सरकार हर साल 4 जुलाई को उनके जन्मदिन के अवसर पर राज्य उत्सव मनाती है वर्ष 1986 में भारत सरकार द्वारा अल्लूरी सीताराम राजू की एक तस्वीर के साथ डाक टिकट जारी किया
जिसमें भारत की स्वतंत्रता, संघर्ष और योगदान के लिए उन्हें सम्मानित किया गया था अल्लूरी के प्रसिद्ध क्रिकेट स्टेडियम का नाम भी उनके नाम पर रखा गया था 9 अक्टूबर 2017 को भारतीय संसद के परिसर में अल्लूरी सीताराम राजू की एक मूर्ति स्थापित की गई थी अल्लूरी की एक और प्रसिद्ध प्रतिमा हैदराबाद, तेलंगाना में टैंक बड रोड पर स्थापित है भारतीय लेखक “शेख अब्दुल हकीम जानी” ने 2019 में अल्लूरी सीताराम राजू की जीवन यात्रा पर तेलुगू भाषा में ‘अल्लूरी सीताराम राम राजू’ नामक पुस्तक लिखी थी
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